'क्षमादान न केवल संवैधानिक, बल्कि वैधानिक अधिकार' नाबालिगों से सामूहिक दुष्कर्म मामले में SC की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नाबालिगों से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में उम्र कैद काट रहे दोषियों को क्षमादान मांगने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने पूर्ववर्ती आइपीसी की धारा 376डीए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही। दोषी व्यक्ति राष्ट्रपति या राज्यपाल को अर्जी दे सकता है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नाबालिगों से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में उम्र कैद काट रहे दोषियों को क्षमादान मांगने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने पूर्ववर्ती आइपीसी की धारा 376डीए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही।
गौरतलब है कि धारा 376डीए 16 साल से कम उम्र की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सजा से संबंधित है। वहीं 376डीबी के तहत दोषी को 12 साल की सजा दी जा सकती है। पेश हुए वकील ने इस धारा की व्याख्या के संदर्भ में कहा कि सत्र न्यायालय के पास दोषी को आजीवन कारावास देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल को अर्जी दे सकता है दोषी
इस पर पीठ ने दो पहलुओं की जांच की, जिसमें पहला इस प्रविधान के तहत निर्धारित सजा पर था, जिसे सत्र न्यायालय के मुकदमें के बाद लगाया जाना है और जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। दूसरा पहलू ये है कि अगर दोषी को उम्र कैद दी जाती है, तो उसके पास संविधान के अनुच्छेद 72 या 161 के तहत क्षमादान मांगने का अधिकार है। इसके तहत दोषी व्यक्ति संबंधित राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल को अर्जी दे सकता है।
दोषी के पास क्षमादान मांगने का वैधानिक अधिकार- SC
इसमें जोड़ते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि दोषी के पास क्षमादान मांगने का वैधानिक अधिकार भी है। इस तरह से दोषी को दोनों अधिकार मिले हुए हैं और ऐसा नहीं है कि उम्र कैद की सजा मिलने से उसके ये अधिकार खत्म हो जाते हैं। पीठ ने कहा कि धारा 376डीए का केंद्र भी समर्थन करता है।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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