'यह न्याय का उपहास...', अदालतों में लंबित मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, दिए अहम निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे 'न्याय का उपहास' बताया है। कोर्ट ने अधीनस्थ अदालतों को मामलों के त्वरित निपटारे के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। न्यायपालिका से लंबित मामलों को कम करने और समय पर न्याय सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है।

10 अप्रैल तक प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश (फाइल फोटो)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की अदालतों में 8,82,578 एक्जीक्यूशन पिटीशन (निष्पादन याचिकाएं) लंबित होने पर चिंता जताते हुए स्थिति को खतरनाक और बेहद निराशाजनक बताया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डिक्री पारित होने के बाद यदि उसे लागू कराने में वर्षों लगेंगे, तो इसका कोई मतलब नहीं है, और ये न्याय का उपहास होगा।
कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों से कहा है कि वे कोई ऐसी प्रक्रिया विकसित करें और लंबित एक्जीक्यूशन याचिकाओं के प्रभावी और शीघ्र निपटारे के लिए जिला न्यायपालिका का मार्गदर्शन करें। सर्वोच्च अदालत ने इस बात पर नाराजगी जताई कि उसके आदेश के बावजूद इतनी एक्जीक्यूशन याचिकाएं अभी लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लंबित एक्जीक्यूशन याचिकाओं को निबटाने के लिए छह महीने का और समय देते हुए उच्च न्यायालयों को इस संबंध में 10 अप्रैल तक प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
6 महीने में निपटान के दिए थे आदेश
ये आदेश न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और पंकज मित्तल की पीठ ने एक्जीक्यूशन याचिकाओं के लंबित मामले में सुनवाई के दौरान गत 16 अक्टूबर को दिये। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली बार छह मार्च 2025 को पेरियाम्मल बनाम वी. राजामणि मामले में दिए फैसले में देश भर में लंबित एक्जीक्यूशन याचिकाओं को छह महीने में निबटाने का आदेश दिया था। तब कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि वे जिला न्यायपालिकाओं से लंबित निष्पादन याचिकाओं के बारे में जरूरी जानकारी मांगे।
कहा था कि उच्च न्यायालय डेटा एकत्र करने के बाद प्रशासनिक आदेश जारी करेगा जिसमें संबंधित जिला न्यायपालिका को लंबित निष्पादन याचिकाओं का छह महीने में निर्णय और निपटारा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाएगा और ऐसा नहीं होने पर संबंधित जज उच्च न्यायालय के प्रति जवाबदेह होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि उच्च न्यायालय लंबित मामलों और उनके निबटान के आंकड़ो सहित संपूर्ण एकत्रित डेटा, एक रिपोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट भेजेंगे।
6 महीने का अतिरिक्त वक्त मिला
उस आदेश पर ही देश भर के उच्च न्यायालयों से आए आंकड़ों से पता चला है कि देश भर में 8.8 लाख से ज्यादा एक्जीक्यूशन याचिकाएं लंबित हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के छह मार्च के आदेश के बाद देश भर की अदालतों ने 3,38,685 एक्जीक्यूशन याचिकाएं निबटाई हैं। फिर भी इस समय देश भर में 8.8 लाख से ज्यादा एक्जीक्यूशन याचिकाएं लंबित हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट ने ब्योरा नहीं भेजा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से इस पर दो सप्ताह में स्पष्टीकरण मांगा है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों को जिला अदालत में लंबित एक्जीक्यूशन याचिकाओं के निपटारे का फालोअप करने के लिए छह महीने का और वक्त दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में एक्जीक्यूशन याचिकाएं लंबित रहने पर नाराजगी और चिंता जताते हुए कोर्ट ने आदेश में टिप्पणी करते कहा कि जैसा वह पूर्व फैसले में कहा गया है, डिक्री पारित होने के बाद, यदि डिक्री को लागू कराने में वर्षों लगेंगे, तो इसका कोई मतलब नहीं है और यह न्याय का उपहास होगा।
कोर्ट ने कहा कि वह एक बार फिर उच्च न्यायालयों से अनुरोध करते हैं कि वे कुछ प्रक्रिया विकसित करें और जिला न्यायपालिकाओं को लंबित एक्जीक्यूशन याचिकाएं प्रभावी और शीघ्र निबटान में मार्गदर्शन दें। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 10 अप्रैल को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश देते हुए सभी उच्च न्यायालयों को प्रगति रिपोर्ट के साथ ही लंबित और निबटाई गई एक्जीक्यूशन याचिकाओं का पूरा ब्योरा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने रजिस्ट्री को इस आदेश की प्रति सभी उच्च न्यायालयों को भेजने का निर्देश दिया है।
क्या होती है एक्सीक्यूशन याचिका?
किसी भी दीवानी मामले (सिविल केस) में हक में डिक्री (अंतिम फैसला ) आने के बाद मुकदमा जीतने वाला व्यक्ति शुरुआती निचली कोर्ट में एक्जीक्यूशन याचिका दाखिल कर उस फैसले को लागू कराने की मांग करता है।
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