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    मकान मालिक-किराएदार विवाद निपटाने में हो रही देरी, SC ने जताई चिंता; बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से किया ये अनुरोध

    Updated: Thu, 05 Jun 2025 08:35 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट में मकान मालिक-किराएदार विवादों के निपटारे में हो रही देरी पर चिंता व्यक्त की है। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से लंबित मामलों की जाँच करने का आग्रह किया। कोर्ट ने कहा कि देरी से दोनों पक्षों को नुकसान होता है।

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    बांबे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से मामलों की जांच का अनुरोध (फोटो: पीटीआई)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाईकोर्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए मकान मालिक-किराएदार विवादों के निपटारे में देरी पर चिंता जताई है। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध किया कि वे वहां लंबित ऐसे मामलों की जांच करें।

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    सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध अपीलों पर सुनवाई कर रहा था जिसमें 'प्रति वर्ग फुट दर' पर विवाद था। इस पर हिंदुस्तान आर्गेनिक केमिकल्स लिमिटेड के मुंबई स्थित 'हरचंदराय हाउस' के किरायेदार के रूप में कब्जे के संबंध में 'मध्य लाभ' का आंकलन किया जाना था।

    क्या होता है मध्य लाभ?

    'मध्य लाभ' वह धन है जो किसी व्यक्ति द्वारा संपत्ति के वैध मालिक को दिया जाता है, जिसने उस पर गलत तरीके से कब्जा कर लिया है। बहरहाल, पीठ ने कहा कि कुछ मामलों में वादियों को न्यायिक मंचों द्वारा अपने विवादों के समाधान के लिए वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है।

    इसने कहा, 'जहां तक मकान मालिक-किराएदार विवाद की बात है तो इसमें संपत्ति के लाभ से वंचित होने और ऐसी संपत्ति के स्वामित्व से मिलने वाले मौद्रिक लाभों से भी वंचित होने का पहलू भी होता है। अदालतें यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि उनके कारण किसी भी पक्ष को नुकसान न हो।' सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे विवादों में देरी से निर्णय लेने का मतलब है कि दोनों पक्षों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।

    'किराएदार को होता है नुकसान'

    उसने कहा, 'कुछ मामलों में मकान मालिक को संपत्ति नहीं मिलने के कारण नुकसान उठाना पड़ता है, और अन्य मामलों में, उससे मिलने वाली मौद्रिक राशि नहीं मिल पाती है। किराएदार को इस कारण नुकसान उठाना पड़ता है कि मामले में अंतिम निर्णय आने पर उसे थोड़े समय के भीतर बड़ी रकम चुकाने का निर्देश दिया जाता है।'

    कोर्ट ने कहा कि किरायेदारों द्वारा इतनी भारी रकम का भुगतान करने के लिए अपेक्षित व्यवस्था करना एक कठिन काम है।

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