'सिविल जज बनने के लिए 3 साल वकालत अनिवार्य नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त किया MP High Court का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया है जिसमें सिविल जज के पद के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य की गई थी। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को स्वीकार कर लिया।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में सिविल जज बनने के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को मंगलवार को निरस्त कर दिया, जिसमें सिविल जज के पद के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य कर दी गई थी।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट द्वारा अपनी खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को स्वीकार कर लिया। हाई कोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता अश्वनी कुमार दुबे ने तर्क किया कि पुन: परीक्षा असंवैधानिक, अव्यवहारिक है।
तीन साल की वकालत पर अटका मामला
शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें तीन वर्ष की अनिवार्य वकालत की शर्त के बिना दीवानी न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया रोक दी गई थी। मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 को 23 जून 2023 को संशोधित किया गया था ताकि राज्य में दीवानी न्यायाधीश प्रवेश स्तर की परीक्षा में बैठने के पात्र होने के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य की जा सके।
हाई कोर्ट ने संशोधित नियमों को बरकरार रखा था, लेकिन संशोधित नियमों के लागू होने के बाद दो असफल उम्मीदवारों ने दावा किया कि वे चयन के लिए पात्र हैं और कट-ऑफ की समीक्षा की मांग की। इसके बाद कई मुकदमे किए गए। भर्ती को रोकते हुए हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रारंभिक परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को संशोधित भर्ती नियमों के तहत पात्रता मानदंडों को पूरा न करने पर बाहर रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा दायर की गई अपील की सुनवाई कर रहा था, जिसमें 13 जून, 2024 को उसकी डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें निर्देश दिया गया था कि 14 जनवरी, 2024 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में सफल सभी उम्मीदवारों को बाहर किया जाए, जिन्होंने संशोधित नियमों के तहत पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं किया।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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