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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- सरकारी नौकरी के चयन में मेरिट की अनदेखी संविधान का उल्लंघन

झारखंड में 2008 की पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती मामले में पहली चयन सूची और नियुक्ति में अनियमितताएं पाए जाने के बाद नए सिरे से मेरिट के आधार पर तैयार की गई दूसरी चयन सूची और नियुक्तियों से उपजा था।

By Arun kumar SinghEdited By: Published: Thu, 25 Feb 2021 08:31 PM (IST)Updated: Thu, 25 Feb 2021 09:36 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- सरकारी नौकरी के चयन में मेरिट की अनदेखी संविधान का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी में चयन के मामले में दिए गए एक फैसले

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी में चयन के मामले में दिए गए एक अहम फैसले में कहा है कि चयन का आधार मेरिट ही होना चाहिए। मेरिट में नीचे स्थान वालों की नियुक्त करना और ऊंचा स्थान पाने वालों की अनदेखी करना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 16 (सरकारी नौकरी में समान अवसर) में दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने झारखंड में 2008 की पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती मामले में झारखंड हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए अपने आदेश में यह टिप्पणी की।

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झारखंड में 2008 की पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती का मामला

इस मामले में सारा विवाद 2008 की पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती में पहली चयन सूची और नियुक्ति में अनियमितताएं पाए जाने के बाद नए सिरे से मेरिट के आधार पर तैयार की गई दूसरी चयन सूची और नियुक्तियों से उपजा था। मेरिट के आधार पर बनाई गई दूसरी चयन सूची और नियुक्तियों के बाद पहली सूची के आधार पर नियुक्त हुए कम मेरिट वाले 42 लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया और ऊंची मेरिट के 43 अन्य को शामिल कर लिया गया। निकाले गए लोग न सिर्फ ट्रेनिंग कर चुके थे बल्कि अच्छे खासे समय तक नौकरी भी कर चुके थे।

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया

झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि जिन्हें नौकरी से निकाला गया है उन्हें फिर से समायोजित किया जाए क्योंकि वे ट्रेनिंग कर चुके हैं और काफी दिन नौकरी भी कर चुके हैं। इसके अलावा चयन और भर्ती में हुई अनियमितताओं में उनका कोई दोष नहीं है। इस फैसले को झारखंड सरकार के अलावा उन लोगों ने भी चुनौती दी थी, जिन्होंने मामले में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर नई चयन सूची के हिसाब से दोबारा बहाल किए गए लोगों से ज्यादा नंबर पाने का दावा करते हुए नौकरी पर रखे जाने की मांग की थी।

जस्टिस एल नागेश्वर राव व जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने गत 18 फरवरी को दिए फैसले में झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए झारखंड सरकार और हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने वाले नौकरी पाने में असफल रहे अभ्यर्थियों की याचिकाएं खारिज कर दीं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये माना कि हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने वाले अभ्यर्थियों ने उन 42 लोगों से ज्यादा अंक प्राप्त किए थे जिन्हें बर्खास्तगी के बाद हाई कोर्ट के आदेश पर दोबारा नौकरी में समायोजित किया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने वाले अभ्यर्थियों और हाईकोर्ट के आदेश से दोबारा नौकरी में समायोजित किए गए लोगों की स्थिति समान नहीं है। उसमें अंतर है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस में कोई संदेह नहीं कि सरकारी नौकरी में चयन का आधार मेरिट होना चाहिए। कम मेरिट वाले लोगों को नियुक्ति देना और ज्यादा मेरिट वालों की अनदेखी से संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में मिले अधिकारों का उल्लंघन होता है। यह सही है कि हस्तक्षेप करने वाले याचिकाकर्ताओं के नंबर उन लोगों से अधिक हैं जिन्हे हाईकोर्ट के आदेश पर दोबारा नौकरी पर रखा गया। लेकिन एक बात यह भी है कि जिन 43 लोगों को नई मेरिट लिस्ट के आधार पर नियुक्ति दी गई उनसे याचिकाकर्ताओं के नंबर कम हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 43 नई नियुक्तियों के बाद 384 पदों पर भर्ती के निकाले गये विज्ञापन के सभी पद भर चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि हस्तक्षेप करने वाले अर्जीकर्ताओं को विज्ञापन में निकाले गए पदों से ज्यादा पर नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है। उनकी यह दलील ठीक नहीं है कि जब उनसे कम मेरिट वालों को नौकरी दी गई है तो उन्हें भी नियुक्ति दी जाए क्योंकि उनकी स्थिति में अंतर है। कोर्ट ने कहा कि दोबारा समायोजन का आदेश सिर्फ इस आधार पर दिया गया कि उन लोगों की पहले नियुक्ति हो चुकी थी और वे काफी समय तक नौकरी कर चुके थे। उनकी स्थित भिन्न थी। अर्जीकर्ता उनसे बराबरी का दावा नहीं कर सकते।


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