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    SC: IPS पत्नी ने अपने पति को झूठे मामले में भेजा था जेल, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Wed, 23 Jul 2025 12:12 AM (IST)

    महिला आईपीएस अधिकारी ने अपने पूर्व पति और ससुराल वालों से वैवाहिक विवाद के दौरान उनको झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल भिजवा दिया था। इस दौरान उनको शारीरिक और मानसिक पीड़ा सहन करनी पड़ी। यह आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी चल रहे मामलों को भी रद कर दिया। वहीं कोर्ट ने कहा कि बेटी अपनी मां के साथ ही रहेगी।

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     सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएस अधिकारी द्वारा दायर सभी आपराधिक मामलों को रद कर दिया (सांकेतिक तस्वीर)

     पीटीआई, नई दिल्ली। एक वैवाहिक विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए महिला आईपीएस अधिकारी से अपने पूर्व पति और ससुर से बिना शर्त माफी का आदेश दिया है। महिला आईपीएस अधिकारी ने अपने पूर्व पति और ससुराल वालों से वैवाहिक विवाद के दौरान उनको झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल भिजवा दिया था।

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    सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया यह फैसला

    इस दौरान उनको शारीरिक और मानसिक पीड़ा सहन करनी पड़ी। यह आदेश देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सभी चल रहे मामलों को भी रद कर दिया। वहीं, कोर्ट ने कहा कि बेटी अपनी मां के साथ ही रहेगी।

    कोर्ट ने विवाह को भी किया खत्म

    भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की खंडपीठ ने इस विवाह को भी भंग कर दिया क्योंकि दंपति 2018 से अलग रह रहे थे। अदालत ने आदेश दिया कि उनकी बेटी अपनी मां के साथ रहेगी और पति और परिवार के सदस्य उससे मिल सकेंगे।

    अपने फैसले में, अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा दायर आपराधिक मामलों के कारण पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े। अदालत ने अधिकारी को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आदेश देते हुए कहा कि उन्होंने जो कुछ सहा है उसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं की जा सकती।

    अखबार में जारी की जाएगी माफी

    न्यायाधीशों ने कहा कि महिला और उसके माता-पिता अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगेंगे, जिसे एक प्रसिद्ध अंग्रेजी और एक हिंदी अखबार के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा।

    सोशल मीडिया पर भी डाला जाएगा माफीनामा

    न्यायाधीशों ने कहा कि यह माफीनामा आदेश के तीन दिनों के भीतर फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और इसी तरह के अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रकाशित और प्रसारित किया जाएगा। इसे दायित्व स्वीकारोक्ति नहीं माना जाएगा और इसका कानून के तहत उत्पन्न होने वाले कानूनी अधिकारों, दायित्वों या परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।