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    असम में 15 महीने में 171 एनकाउंटर... सुप्रीम कोर्ट में पहुंची याचिका, अब मानवाधिकार आयोग करेगा मामले की जांच

    Updated: Wed, 28 May 2025 05:02 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग को मई 2021 से अगस्त 2022 के बीच राज्य में हुए पुलिस एनकाउंटर की स्वतंत्र जांच का आदेश दिया है। यह आदेश 171 से अधि ...और पढ़ें

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    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने की सुनवाई (फोटो: पीटीआई)

    पीटीआई, नई दिल्ली। देश की शीर्ष अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए असम मानवाधिकार आयोग को मई 2021 से अगस्त 2022 के बीच राज्य में हुए पुलिस एनकाउंटर की स्वतंत्र जांच का आदेश दिया है। कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर इस दौरान हुए 171 से अधिक पुलिस एनकाउंटरों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी।

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    याचिका में कहा गया था कि असम पुलिस ने इस दौरान बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए फर्जी एनकाउंटर किए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि कुछ मामलों को छोड़कर सभी मामलों में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि गाइडलाइंस का उल्लंघन हुआ हो।

    पीड़ितों का दावा सुनने का निर्देश

    पीठ ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद यासीन द्वारा मुठभेड़ों की जांच पर 2014 में अदालत द्वारा निर्धारित प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों का कथित रूप से पालन न करने के कई मामलों में से अधिकांश तथ्यात्मक रूप से गलत प्रतीत होते हैं।

    अदालत ने कहा कि हम इस मामले को स्वतंत्र रूप से मानवाधिकार आयोग को सौंप रहे हैं। पीठ ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाले आयोग को पीड़ितों के क्लेम सुनने के लिए पब्लिक नोटिस जारी करने और उसकी गोपनीयता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

    इसलिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

    • सुप्रीम कोर्ट ने असर सरकार में जांच में सहयोग करने और इस दौरान आने वाले किसी भी इंस्टीट्यूशनल बैरियर को दूर करने का आदेश दिया है। साथ ही आयोग शिकायतकर्ताओं की गोपनीयता की रक्षा करने और मामले को संवेदनशीलता के साथ देखने को कहा।
    • बता दें कि इसके पहले अदालत ने 25 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। असम सरकार की तरफ से कहा गया था कि राज्य में हुए पुलिस एनकाउंटर की जांच में 2014 की गाइडलाइन का विधिवत पालन किया गया है।
    • याचिकाकर्ता ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी है, जिसने असम पुलिस द्वारा की गई मुठभेड़ों पर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। पिछले साल 22 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने स्थिति को बहुत गंभीर करार दिया और इन मामलों में की गई जांच सहित विवरण मांगा था।

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