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    18 साल का युवक प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने के लिए स्वतंत्र, माता-पिता को दे सकता है चुनौती; सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

    Updated: Thu, 23 Oct 2025 05:42 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अब 18 वर्ष के बाद किशोर, माता-पिता द्वारा संपत्ति की बिक्री को चुनौती दे सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि वयस्क होने पर संपत्ति खरीदकर या हस्तांतरण करके ऐसे हस्तांतरण को रद्द किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में औपचारिक मुकदमे की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला के. एस. शिवप्पा बनाम के. नीलाम्मा मामले में आया है।

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    18 साल बाद संपत्ति पर अधिकार: SC


    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। फैसले के मुताबिक 18 साल की उम्र के बाद किशोर अपने माता-पिता या अभिभावक द्वारा किए गये संपत्ति की बिक्री या ट्रांसफर को बिना किसी मुकदमे के चुनौती दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि वयस्क लोग स्वयं संपत्ति खरीदकर या उसे ट्रांसफर करके ऐसे हस्तांतरण को रद कर सकते हैं।

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    न्यायमूर्ति मिथल ने फैसला लिखते हुए कहा, नाबालिग के माता-पिता या अभिभावक द्वारा किए गए किसी शून्यकरणीय लेन-देन को नाबालिग द्वारा वयस्क होने पर अस्वीकार किया जा सकता है।"

    18 साल बाद संपत्ति पर अधिकार: SC

    यह फैसला के. एस. शिवप्पा बनाम श्रीमती के. नीलाम्मा मामले में लिया गया है। मामला कर्नाटक के शामनूर गांव का है, जहां दो प्लॉटों को लेकर विवाद था। दरअसल ये प्लॉट रुद्रप्पा ने साल 1971 में अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर खरीदा था। रुद्रप्पा ने अदालत की अनुमति के बिना अपने प्लॉट बेच दिए थे। बेटों के वयस्क होने के बाद, उन्होंने प्लॉट एक अन्य व्यक्ति के. एस. शिवप्पा को बेच दिए। जिस तीसरे पक्षों ने पहले प्लॉट खरीदा था, उसने इस प्लॉट पर मालिकाना हक का दावा किया, जिससे विवाद पैदा हो गया।

    मुकदमे की आवश्यकता नहीं: SC

    निचली अदालतों में इस बात को लेकर बहस चल रही थी कि क्या नाबालिगों को मूल बिक्री को रद करने के लिए मुकदमा दायर करने की आवश्यकता है? इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया कि औपचारिक मुकदमे की आवश्यकता नहीं है। वयस्क स्वयं संपत्ति बेचकर, अभिभावक की बिक्री को अस्वीकार कर सकते हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि कभी-कभी नाबालिगों को मूल बिक्री के बारे में पता भी नहीं होता है कि संपत्ति अभी भी उनके कब्जे में हो सकती है, इसलिए मुकदमा दायर करना हमेशा आवश्यक नहीं होता है।