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इस गांव के लोगों को दवा पर नहीं, सवा किलो मिठाई और एक कुमड़ा मुर्गे पर भरोसा

इलाज की बजाए झाड़-फूंक के पास ले जाने का हवाला देकर उसे वापस ले गए। परिजनों ने बताया कि वहां सवा किलो मिठाई और एक कुमड़ा मुर्गा देने से सब बाधाएं दूर हो जाती हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 02 May 2018 09:09 AM (IST)Updated: Wed, 02 May 2018 12:23 PM (IST)
इस गांव के लोगों को दवा पर नहीं, सवा किलो मिठाई और एक कुमड़ा मुर्गे पर भरोसा
इस गांव के लोगों को दवा पर नहीं, सवा किलो मिठाई और एक कुमड़ा मुर्गे पर भरोसा

खंडवा [जेएनएन]। क्षेत्र में कुपोषण मिटाने के लिए प्रशासन के प्रयास आदिवासियों में व्याप्त अंधविश्वास के सामने कमजोर साबित हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से तलाश कर पोषण पुनर्वास केंद्र लाए गए अति कम वजन के अधिकांश बच्चों को परिजन यहां भर्ती रखने की बजाए झाड़-फूंक के लिए बाबाओं के पास ले जाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। पिछले तीन दिनों में दो कुपोषित बच्चों को परिजन अपने साथ ले गए हैं।

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मंगलवार को ग्राम नागोतार के डेढ़ वर्षीय बबलू पिता बलिराम को अति कुपोषित होने से इलाज के लिए विभाग की टीम खालवा पुनर्वास पोषण केंद्र लेकर आई। बच्चे का वजन 6 किलो 300 ग्राम था। परिजन उसका इलाज करवाने के लिए तैयार नहीं हुए।

इलाज की बजाए झाड़-फूंक के लिए डवाली (महाराष्ट्र) पड़िहार के पास ले जाने का हवाला देकर उसे वापस ले गए। परिजनों ने बताया कि वहां सवा किलो मिठाई और एक कुमड़ा मुर्गा देने से सब बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसी प्रकार सोमवार को ग्राम लखोरा निवासी कैलाश पिता लालसिंग खालवा पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती अपनी 12 माह की कुपोषित बच्ची प्रियंका को गांव ले गया।

कैलाश ने बताया कि वह घर से बाहर गया हुआ था। इस दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम कुपोषित बच्ची और पत्नी रेशमा वह एक माह की बच्ची सहित उसे खालवा ले आए। यह दो दिनों में बच्ची की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ है। यहां पंखा नहीं होने से बच्चे परेशान हैं। दूध और खाना भी ठीक नहीं मिलता है। मेरी बच्ची को किसी की नजर लगी है। झाड़-फूंक से वह ठीक होगी।

फिर करेंगे प्रयास

सोमवार और मंगलवार को खालवा केंद्र से दो बच्चों को परिजन ले गए। बच्चों को पोषण आहार और जरूरी दवा दी गई है। एक-दिन बाद फिर समझाइश देकर उन्हें लाने का प्रयास किया जाएगा।

- डॉ. शैलेंद्र कटारिया, बीएमओ खालवा 


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