समय से पहले आ गई गर्मी, जैकेट बेचने वाले कारोबारी बेच रहे टीशर्ट, थाली में रखी रोटी-सब्जी भी होगी महंगी!
फरवरी 2025 का महीना पिछले 125 साल में सबसे गर्म महीना रहा। समय से पहले गर्मी का मौसम आ गया। इसका असर हमारी इकोनॉमी पर भी पड़ेगा। गेहूं फल सब्जियों की पैदावार कम होगी तो कीमतों पर भी असर पड़ेगा। गर्मी बढ़ने का कारण क्या है कारोबार और खेती से डेयरी प्रोडक्ट तक पर इसका क्या असर पड़ेगा यहां पढ़िए पूरी डिटेल।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्दी के मौसम की अवधि कम हो गई और इस बार गर्मी ने जल्द ही दस्तक दे दी। इस मौसमी बदलाव को लेकर मौसम वैज्ञानिक पहले से ही आगाह करते रहे हैं। वक्त से पहले गर्मी की आमद ने भारत में कारोबार पर भी विपरीत असर डाला है।
गर्म कपड़े बनाने वाले कारोबारी अब टीशर्ट बनाने और बेचने पर मजबूर हैं। आम आदमी की थाली में खाने की रोटी भी अब महंगी हो जाएगी। भारत में इस साल फरवरी का महीना पिछले 125 साल में सबसे ज्यादा गर्म रहा।
गर्मी की समय से पहले आमद और इस मौसमी बदलाव के कारण गेहूं की कम पैदावार कम होगी। किसानों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। कपड़ा कारोबारी से लेकर किसानों तक इस मौसमी बदलाव से प्रभावित होंगे।
गर्मी ने कर दिया करोबारी नुकसान
पंजाब के एक कपड़ा व्यापारी का कहना है कि पिछले 50 साल से वे सर्दी में पहने जाने वाले जैकेट, स्वेटर बनाते आ रहे हैं। पूरी सर्दी उनका कपड़े का कारोबार चलता है। अब इस साल गर्मियां जल्दी आ गई। ऐसे में उन्हें बड़ा कारोबारी नुकसान उठाना पड़ा है। इस कारण वे अब कारोबार में बदलाव करने के मूड में हैं।
गर्म कपड़ों की बिक्री 10 फीसदी घट गई
मजबूरी में उन्होंने अपना कारोबार बदला। अब जैकेट और स्वेटर की बजाय उन्हें टीशर्ट बनाना पड़ रहा है। पिछले पांच वर्षों में उनकी बिक्री पहले ही 50 फीसदी गिर गई थी, अब इस बार गर्मी पहले आ जाने से गर्म कपड़ों की बिक्री और 10 प्रतिशत गिर गई है। बड़ा असर यह पड़ा कि बड़े रिटेलर्स ने अपने ऑर्डर को कन्फर्म करने के बाद भी माल उठाने से मना कर दिया।
गेहूं, फल और सब्जियों की आवक पर विपरीत असर
कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि साल में मौसम के हिसाब से फसलें ली जाती हैं। लेकिन मौसम की प्रकृति बदलने से फसलों का पैटर्न बदल रहा है। व्यापार की योजनाएं भी बदल रही हैं।
इस बार उत्तर प्रदेश, मप्र जैसे राज्यों में सर्दी कम पड़ी। इस कारण गेहूं की फसल को क्षति हुई। सर्दी कम होने से गेहूं का दाना पूरी तरह से विकसित यानी 'मोटा' नहीं हो पाया। ऐसे में किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा। उन्हें कम दाम मिलेंगे। फसल को क्षति होने से गेहूं की उपज यदि महंगी हो गई, तो इसका नुकसान थाली में परोसी जाने वाली रोटी की कीमत पर भी पड़ सकता है।
महंगा हो जाएगा फलों का राजा आम!
- आम के शौकीन देशभर के हर कोने में मिल जाएंगे। इस साल सर्दी कम पड़ने और समय से पहले गर्मी की आमद के कारण आम की पैदावार पर भी असर पड़ने की आशंका है।
- देवगढ़ में अल्फांसो आम के बगीचे भी गर्मी के कारण 'बर्बाद' हो गए हैं। आम के बगीचे के मालिक बताते हैं कि इस बार सामान्य पैदावार का सिर्फ 30 फीसदी आम ही हो सकेगा। देश में दूसरी जगहों पर भी आम की दूसरी किस्मों पर भी मौसम में बदलाव का असर दिखाई देगा।
125 साल की सबसे गर्म रही फरवरी
- साल 2025 के फरवरी माह में पड़ी गर्मी पिछले 125 वर्षों में सबसे ज्यादा पड़ने वाली गर्मी रही। वहीं देश के कई इलाकों में न्यूनतम तापमान औसतन 1 से 3 डिग्री तक ज्यादा रहा।
- आईएमडी ने साफतौर पर सचेत कर दिया है कि मार्च और मई महीने के बीच देश के कई इलाकों में तापमान सामान्य ज्यादा रह सकता है। यही नहीं, गर्म हवाएं भी परेशान करेंगी।
गर्मी के कारण पैदावार पर असर को लेकर सरकार की क्या है राय?
समय से पहले आई गर्मी और बदले मौसमी पैटर्न से फसलों की कम पैदावार की आशंकाओं के बीच कृषि मंत्री ने खराब पैदावार की चिंताओं को नकारा है। उन्होंने दावा किया कि गेहूं की अच्छी फसल होगी। लेकिन विशेषज्ञों की इसकी उम्मीद कम ही दिखाई दे रही है।
28 फीसदी गिर गया जलाशयों का स्तर
गर्मी के कारण आम सिंचाई के लिए जरूरी पानी की उपलब्धता की मुश्किलों का भी सामना भी करना पड़ेगा। CEW के मुताबिक, उत्तर भारत में जलाशयों का स्तर उनकी क्षमता के 28 प्रतिशत तक गिर चुका है।
मौसमी बदलाव से महंगी होंगी फल सब्जियां और दूध!
मौसमी बदलाव का असर फलों और सब्जियों की पैदावार पर पड़ सकता है। CEW के अनुसार दूध के उत्पादन में भी देश के कुछ इलाकों में 15 प्रतिशत गिरावट देखी गई है। आम आदमी की थाली में परोसी गई रोटी और सब्जी महंगी हो सकती है। क्योंकि गेहूं के बाद फल सब्जियों और दूध की आवक भी महंगी हो सकती है।
40 फीसदी इलाके में मौसम का 'स्वैपिंग पैटर्न'
CEW के अनुसार भारत के हर चार जिलों में से तीन में मौसम के स्तर का 'बिग चेंज' देखने को मिल रहा है। इनमें से 40 प्रतिशत क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मौसम में 'स्वैपिंग पैटर्न' देखने को मिल रहा है। यानी जहां बाढ़ वाला इलाका था, अब वहां सूखे की स्थिति बनने लगी है।
वक्त से पहले क्यों पड़ रही है गर्मी?
पद्मभूषण पर्यावरणविद अनिल प्रकाश जोशी ने बेवक्त बदलते मौसम और समय से पहले आने वाली गर्मी को लेकर स्पष्ट कहा कि यह अब गर्मी और मौसमी बदलाव लोकल नहीं बल्कि ग्लोबल फैक्टर हो गया है। उर्जा की जो खपत हो रही है, उस कारण गर्मी व्यापक रूप से बढ़ रही है। साल 2024 में 34.4 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन हुआ था, जो अब बढ़कर 37.4 गीगाटन हो गया। इसके बाद भी हम रूक ही नहीं रहे हैं।
मीथेन और कार्बन उत्सर्जन ग्लोबल फैक्टर
'वेटलैंड' मीथेन पैदा कर रहे हैं, जो गर्मी का बढ़ाने का लोकल फैक्टर हैं। इसके अलावा कंस्ट्रक्शन, ट्रांसपोर्टेशन के कारण मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन हो रहा है।
पहले बहती नदियां तापमान को मेंटेन रखती थी, वो भी हमने खो दी है। कई नदियां अब 'सदानीरा' यानी 12 महीने बहने वाली नहीं रहीं।
अनिल प्रकाश जोशी, पद्मभूषण पर्यावरणविद
गर्मी की लक्ष्मण रेखा हो गई पार
संस्था वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) के अनुसार 1.5 डिग्री की औसत तापमान की लक्ष्मण रेखा को भी तापमान पार कर गया है। विकास के दौर में जैसे ही मीलों में कोयला जलाने की शुरुआत हुई, तब से दुनिया के देशों में गर्मी की शुरुआत हो गई थी। तब तय किया कि तापमान में डेढ़ डिग्री से ज्यादा बढ़ोतरी न हो, लेकिन अब यह इसे भी पार कर गया है।
सीमा जावेद, प्रसिद्ध पर्यावरणविद
विशेषज्ञों की नजर में गर्मी से कारोबार पर पड़ने वाला प्रभाव क्या?
- पर्यावरणविद जोशी बताते हैं कि जहां सेब के उत्पादन पर बदले मौसम का प्रभाव पड़ा, वहीं खेतों की हालत भी खराब होगी।
- गर्म हवाओं के कारण आम की फसल भी प्रभावित होगी। गेहूं की उपज पर भी फर्क पड़ेगा। इसका सीधा सीधा असर उन करोड़ों छोटे किसानों पर भी पड़ेगा, जिनकी 3 या 4 बीघा जमीन है।
- गर्मी अभी से इतनी बढ़ गई है। ऐसे में एसी चलेंगे तो बिजली की खपत भी बढ़ेगी। इसका असर इकोनॉमी पर निश्चित ही पड़ेगा।
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