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    प्रकृति की गोद में बसी है ये खूबसूरत जगह, रहना और खाना बिल्कुल फ्री; लेकिन करना होता है इस नियम का पालन

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 05:33 PM (IST)

    बालाघाट से 45 किमी दूर नंदौरा का सुकलदंड प्रकृति प्रेमियों के लिए एक अनोखा ठिकाना है। आठ एकड़ में फैले इस क्षेत्र में भोजन और ठहरने की मुफ्त व्यवस्था है। यहां आने वाले पर्यटकों को भारतीय संस्कृति को करीब से जानने का अवसर मिलता है। 2018 में अनीस चार्ल्स ने इस जगह को विकसित किया।

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    बालाघाट से 45 किमी दूर स्थित है नंदौरा का सुकलदंड (फोटो: जागरम)

    माही महेश चौहान, बालाघाट। नदी का किनारा, प्राकृतिक नजारे, मनोरम वादियों के साथ अगर नि:शुल्क रहने का मौका मिल जाए तो यह सोने पर सुहागा जैसा है। अगर आप प्रकृति के बीच रहकर गांव के ठेठ देसी रंग में कुछ दिन रमना चाहते हैं तो बालाघाट से 45 किमी दूर नंदौरा का सुकलदंड आपके लिए उपयुक्त है।

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    खास बात यह है कि आठ एकड़ में बसे इस मनोहारी स्थान पर भोजन-पानी से लेकर ठहरने तक के इंतजाम हैं। इसके साथ भारतीय सभ्यता और संस्कृति को जानने-समझने का अवसर मिलेगा तो मान लीजिए कि यह अनुभव किसी के लिए भी अविस्मरणीय ही होगा। सुकलदंड में अतिथि देवो भव की परंपरा का निर्वहन इस तरह से होता है कि पर्यटक खिंचे चले आते हैं।

    विदेशी पर्यटक को यहां ठहरने के साथ भारतीय संस्कृति और जीवन पद्धति से रूबरू होने का मौका मिलता है। इस पर्यटक स्थल को विकसित किया है बालाघाट के पर्यावरण प्रेमी अनीस चार्ल्स ने। उन्होंने इसकी शुरुआत 2018 में की थी। तब अनीस ने देव नदी के किनारे की भूमि खरीदनी शुरू की। भूमि लेने के बाद उन्होंने इसे प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया। अब यही क्षेत्र पर्यटकों के घूमने का खूबसूरत स्थल बन चुका है।

    देश का अपमान हुआ तो पर्यटन स्थल बनाने की ठानी

    दरअसल, वर्ष 2015-16 में इजराइल की एक महिला पर्यटक भारत भ्रमण पर आई थीं। कुछ देर की मुलाकात में अनीस चार्ल्स ने उनसे पूछा कि आप कई देशों का भ्रमण कर चुकी हैं। कौन-कौन से देश आपको पसंद आए। जवाब में महिला पर्यटक ने भारत को लेकर नकारात्मक जवाब दिया। उसकी भारत और यहां के नागरिकों को लेकर नकारात्मक धारणा ने अनीस को आहत कर दिया।

    सुकलदंड नंदौरा में प्रकृति प्रेमी अनीस चार्ल्स द्वारा तैयार किया गया जंगल व पारंपरिक परिवेश पुरातन भारत से पर्यटकों को अवगत करता है। यहां अतिथि देवो भव: की परंपरा का निर्वहन अद्भुत है। अमेरिकी पर्यटकों से मिलने पर उन्होंने सराहना की है। ये स्थान मन को सुकून देने वाला है। इस स्थान की ख्याति बढ़ाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है, जिसके लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।

    - वीरेंद्र सिंह गहरवार, अध्यक्ष, इतिहास एवं पुरातत्व संग्रहालय।

    यहीं से उन्होंने विदेशियों को भारत की पहचान, यहां की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं से परिचय कराने और गलत धारणाओं को दूर करने के लिए अपनी निजी भूमि को पर्यटन स्थल बनाना शुरू किया। उन्होंने विदेशियों का स्वागत-सत्कार ‘अतिथि देवो भव’ के भाव से किया तो पर्यटक भी मंत्रमुग्ध होने लगे।

    सुकलदंड में ये हैं सुविधाएं, सभी सेवाएं नि:शुल्क

    • सुकलदंड नंदौरा में ठहरना, खाना-पीना और भ्रमण जैसी सेवाएं नि:शुल्क हैं।
    • मिट्टी के बर्तन, चूल्हा, जलाऊ लकड़ी, गोबर के कंडों की व्यवस्था है।
    • स्वावलंबन की धारणा के साथ पर्यटकों को अपने सारे काम खुद करने होते हैं, जिससे वे बेहद उत्साहित रहते हैं।
    • तरह-तरह की सब्जियां, दलहन, औषधीय पौधे सहित कई प्रजातियों के पेड़ हैं।
    • विदेशी सैलानियों के लिए मिट्टी के मकान और टेंट बने हैं।
    • यहां इटली, फ्रांस, डेनमार्क, अमेरिका सहित कई देशों से 120 से अधिक विदेशी पर्यटक आ चुके हैं। कुछ दिन पहले अमेरिका के पर्यटक यहां रुके थे।

    स्थानीय लोगों का बदला जीवन

    सुकलदंड नंदौरा से ही गोदरी-बटकरी, भगतपुर, डोंगरगांव पहाड़ी गांव सहित अन्य गांव लगे हैं। ये आदिवासी, बैगा बहुल गांव हैं, जिनकी विशिष्ट वेशभूषा और संस्कृति है। 2018 से पहले यहां के ग्रामीणों का जीवन सामान्य था, लेकिन पर्यटकों के आने से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।

    विदेशी पर्यटकों के बीच रहने से ग्रामीणों की समझ और विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी विकसित हो रहा है। अब वे भी खुलकर जीवन जीना सीख रहे हैं और झिझक दूर हो रही है। मिट्टी के बर्तन, चूल्हा, जलाऊ लकड़ी, गोबर के कंडों की व्यवस्था करने से ग्रामीणों की आमदनी भी हो रही है।

    ये सुविधाएं हों तो और बढ़ जाएगा पर्यटन

    सुकलदंड नंदौरा देवनदी के किनारे स्थित है, लेकिन गर्मी के दिनों में ये नदी सूख जाती है। ऐसे में इस स्थान पर पानी की उपलब्धता कराने की आवश्यकता है। यहां वाटर वेराप (छोटे-छोटे पत्थरों से बना) बनाने की आवश्यकता है, ताकि सालभर यहां पानी रह सके।

    विदेशी पर्यटक गोंदिया व बालाघाट जिला मुख्यालय तक तो आसानी से पहुंच जाते हैं, लेकिन टूरिस्ट केंद्र न होने से स्थानीय भाषा व मेल-मिलाप के साथ ही पर्यटन स्थल तक पहुंचने में उन्हें काफी परेशानी होती है। इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

    ये भी हैं पर्यटक स्थल

    नवरात्रि में लांजी के किरनाई मंदिर में नौ दिन तक मेला लगता है और भव्य दशहरा का आयोजन होता है। बालाघाट में पानीपत की तर्ज पर दशहरा भी मनाया जाता है, जिसके साक्षी भी पर्यटक बन सकते हैं। अगर कान्हा नेशनल पार्क में बाघों और अन्य वन्य प्राणियों का दीदार करना हो तो मुक्की गेट 150 किमी की दूरी पर है।

    लांजी का किला, हट्टा की बावली, किरनाई मंदिर, कोटेश्वर धाम यहां से 30-40 किमी ही दूर है। डोंगरगांव में पहाड़ी के नीचे 300 फीट नीचे भोलेनाथ का गुप्तेश्वर मंदिर है, जिसकी यात्रा भी रोमांचकारी साबित होती है।

    ऐसे पहुंच सकते हैं सुकलदंड नंदौरा

    सुकलदंड नंदौरा के प्राकृतिक वन क्षेत्र स्थल पहुंचने के लिए रेलमार्ग से बालाघाट पहुंचकर बडग़ांव के रास्ते बेनीगांव होते हुए सुकलदंड नंदौरा पहुंचा जा सकता है। महाराष्ट्र से आने की स्थिति में रजेगांव, किरनापुर व बडगांव, बेनीगांव होकर पहुंचा जा सकता है।

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