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स्वामी ने रतन टाटा पर मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया

रतन टाटा पर आरोप है कि उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस हासिल करने के लिए यूनिटेक की कंपनियों के कालेधन को सफेद किया।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Fri, 16 Dec 2016 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 16 Dec 2016 07:21 PM (IST)
स्वामी ने रतन टाटा पर मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया

नई दिल्ली, आइएएनएस। भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यन स्वामी ने टाटा संस के अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा और यूनिटेक के अधिकारियों के खिलाफ मनी लांड्रिंग का एक केस दर्ज कराया है। रतन टाटा पर आरोप है कि उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस हासिल करने के लिए यूनिटेक की कंपनियों के कालेधन को सफेद किया।

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भाजपा नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने शुक्रवार को यह केस सीबीआइ की विशेष अदालत में दर्ज कराया है। इस मामले में उन्होंने उन अज्ञात सीबीआइ अधिकारियों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज की है जिन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में टाटा को बचाने की भरपूर कोशिशें कीं। विशेष न्यायाधीश ओपी सैनी ने इस शिकायत पर सुनवाई और बहस के लिए 11 जनवरी की तारीख तय कर दी है।

2जी घोटाले में यूनिटेक आरोपी

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में यूनिटेक वायरलेस कंपनी भी एक आरोपी है। पहले से ही ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि इस कंपनी ने 2जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस हासिल करने के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार के अधिकारियों को रिश्वत दी थी। जबकि इस कंपनी के पास टेलीकॉम क्षेत्र का कोई अनुभव ही नहीं था। इसका नतीजा यह हुआ कि यह घोटाला सामने आने के बाद अदालत के आदेश पर इस कंपनी के 22 लाइसेंस रद कर दिए गए थे। साथ ही कंपनी के प्रबंध निदेशक संजय चंद्रा को जेल भेज दिया गया था। बाद में चंद्रा ने कंपनी से इस्तीफा दे दिया।

एसबीआइ से 50 अरब का कर्ज

यूनिटेक ने 2009 में नार्वे के टेलनॉर ग्रुप के साथ मिलकर यूनिनॉर कंपनी के साथ यूनिटेक वायरलेस लिमिटेड कंपनी बनाई। इस कारोबार को चलाने के लिए उसने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआइ) से 50 अरब रुपये का कर्ज लिया। लेकिन 2011 में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का खुलासा होने के बाद यह धंधा मंदा पड़ गया।

कौन हैं यूनिटेक के मालिक

दिल्ली में केंद्रित यूनिटेक कंपनी देश की दूसरी सबसे बड़ी रीयल स्टेट कंपनी मानी जाती रही है। हालांकि पिछले दो साल से यह घाटे में चल रही है। इस कंपनी की स्थापना पांच साझीदारों रमेश चंद्रा, डॉ. एसपी श्रीवास्तव, डॉ. पीके मोहंती, डॉ. रमेश कपूर और डॉ. बाहरी ने वर्ष 1972 में की थी। इन्होंने रीयल स्टेट में वर्ष 1986 में कदम रखा। लेकिन इस कंपनी का दबदबा यूपीए शासनकाल के दौरान वर्ष 2010 तक ही कायम हो पाया।

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