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    HappyPlus Report: कोविड के बाद भारतीयों में बढ़ा गुस्सा और तनाव, 35 प्रतिशत लोग नाखुश; रिपोर्ट में खुलासा

    HappyPlus Report कोविड-19 महामारी के बाद भारतीयों में तनाव गुस्सा उदासी और चिंता जैसी नकारात्मक भावनाएं बढ़ी हैं और हाल के दौर में संघर्ष और पीड़ा बढ़े है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। File Photo

    By AgencyEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Sun, 19 Mar 2023 11:32 PM (IST)
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    कोविड के बाद भारतीयों में बढ़ा गुस्सा और तनाव।

    गुवाहाटी, पीटीआई। कोविड-19 महामारी के बाद भारतीयों में तनाव, गुस्सा, उदासी और चिंता जैसी नकारात्मक भावनाएं बढ़ी हैं और हाल के दौर में संघर्ष और पीड़ा बढ़े है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। कंसल्टिंग फर्म हैप्पीप्लस की 'द स्टेट ऑफ हैप्पीनेस 2023' रिपोर्ट के अनुसार, देश में नकारात्मक या उदासी के अनुभव बढ़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष 35 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने ऐसी भावनाएं महसूस की हैं जबकि 2022 में यह आंकड़ा 33 प्रतिशत था।

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    बच्चों-बुजुर्गों में सबसे अधिक क्रोध और उदासी

    नकारात्मक भावनाओं की सूची में अरुणाचल प्रदेश सबसे ऊपर है। यहां 60 प्रतिशत उत्तरदाता नाखुश हैं। इसके बाद 58 प्रतिशत और 51 प्रतिशत नाखुश उत्तरदाताओं के साथ मध्य प्रदेश और गुजरात-उत्तर प्रदेश का स्थान है। वहीं, भारतीयों में सकारात्मक भावनाएं पिछले वर्ष 70 प्रतिशत से घटकर इस वर्ष 67 प्रतिशत रह गई हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, वित्तीय समस्याएं, कार्यस्थल के दबाव, सामाजिक मानदंड, अकेलापन एवं अलगाव और कोविड-19 महामारी के बाद की अनिश्चितताएं देश में नाखुश होने के पांच सबसे बड़े कारण हैं।

    बता दें कि 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 14,000 लोगों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट में छात्रों में नकारात्मक अनुभवों की सर्वाधिक वृद्धि पाई गई है। देश में सर्वाधिक क्रोध या उदासी 18 वर्ष से कम नाबालिगों या 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों में है।

    नौकरी जाने के डर से बढ़ी असुरक्षा

    रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष मात्र 17 प्रतिशत लोग ही खुश महसूस कर रहे हैं, जबकि पिछले वर्ष 23 प्रतिशत ऐसा महसूस कर रहे थे। पिछले वर्ष महामारी संबंधी लॉकडाउन खत्म होने से जनजीवन सामान्य हो गया, लेकिन नौकरी छूटने के मामले बढ़ने या नौकरी गंवाने के लगातार डर से जीवन में असुरक्षाएं बढ़ी हैं। हैप्पीप्लस के संस्थापक और सीईओ आशीष अंबास्ता ने कहा कि रिपोर्ट में उत्तरदाताओं की प्रतिक्रिया के अलावा सामाजिक सुरक्षा एवं भ्रष्टाचार धारणा के साथ-साथ प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद, साक्षरता दर और स्वास्थ्य सूचकांक जैसे राज्य-स्तरीय मापदंडों पर भी विचार किया जाता है।