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    छात्र-शिक्षक अनुपात में संतुलन के मायने, जितना कम होगा अनुपात उतनी गुणवत्तापूर्ण होगी शिक्षा

    By Manish PandeyEdited By:
    Updated: Wed, 14 Jul 2021 12:56 PM (IST)

    शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन करने का एक महत्वपूर्ण संकेतक छात्र-शिक्षक अनुपात (student teacher ratio) होता है। यह अनुपात जितना कम होगा शिक्षा उतनी ही गुणवत्तापूर्ण होगी और छात्र उतना ही बेहतर ढंग से शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे।

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    छात्र-शिक्षक अनुपात की रैंकिंग में सिक्किम पूरे देश में अव्वल है

    [सुधीर कुमार] देश के लिए यह गौरव की बात है कि विद्यालयी शिक्षा के हरेक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात ने शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) के तहत निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर लिया है। वर्ष 2019-20 के एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली की ताजा रपट के मुताबिक देश में प्राथमिक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 26.5, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर 18.5 तथा उच्च माध्यमिक स्तर पर 26.1 है। 2009 के शिक्षा के अधिकार कानून में प्राथमिक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1, जबकि उच्च प्राथमिक स्तर पर 35:1 निर्धारित है। इस हिसाब से देखा जाए तो सभी स्तरों पर छात्र-शिक्षक के राष्ट्रीय अनुपात ने निर्धारित मानक को हासिल कर लिया है। छात्र-शिक्षक के कम होते अनुपात से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार का सहज आकलन किया जा सकता है।

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    दरअसल किसी भी प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन करने का एक महत्वपूर्ण संकेतक छात्र-शिक्षक अनुपात होता है। यह अनुपात जितना कम होगा, शिक्षा उतनी ही गुणवत्तापूर्ण होगी और छात्र उतना ही बेहतर ढंग से शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे। छात्र-शिक्षक अनुपात कम होने का तात्पर्य पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की उपलब्धता से भी लगाया जाता है। सामान्यत: एक शिक्षक के कंधे पर जितने कम बच्चों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी होती है, वह उतना ही बेहतर ढंग से यह काम कर पाता है। हालांकि कुछ राज्यों में शिक्षकों के अभाव के कारण छात्र-शिक्षक अनुपात बेमेल है, जिसका असर उस राज्य की शैक्षिक गुणवत्ता पर भी पड़ा है। छात्र-शिक्षक अनुपात की रैंकिंग में सिक्किम पूरे देश में अव्वल है, जहां केवल सात छात्रों पर एक शिक्षक है। वहीं इस श्रेणी में सबसे फिसड्डी राज्य बिहार है, जहां 55.4 बच्चों पर एक शिक्षक उपलब्ध है। प्राथमिक शिक्षा में बिहार के अलावा केवल दिल्ली, झारखंड और उत्तर प्रदेश ही आरटीई कानून की शर्तो की पूर्ति नहीं करते हैं। इन राज्यों में एक शिक्षक के ऊपर 30 से अधिक छात्रों का दायित्व है।

    हालांकि प्राथमिक स्तर पर बिहार के अलावा देश के सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश यूनेस्को द्वारा निर्धारित मानक का पालन करते हैं। यूनेस्को ने छात्र-शिक्षक के 40:1 अनुपात को आदर्श माना है। वहीं नई शिक्षा नीति-2020 में विद्यालयी शिक्षा के हरेक स्तर पर छात्र-शिक्षक के अनुपात को 30:1 करने का लक्ष्य घोषित किया गया है। इसे कई क्षेत्रों में 25:1 भी किया जाना है। 1937 में महात्मा गांधी ने यही सुझाव नई तालीम के संदर्भ में देते हुए कहा था कि किसी कक्षा में बच्चों की संख्या करीब 25 होनी चाहिए। इसे 30 से ज्यादा किसी भी हाल में होना नहीं चाहिए। बहरहाल छात्र-शिक्षक अनुपात को संतुलित करने का एकमात्र समाधान शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने पर निर्भर करता है।

    (लेखक बीएचयू में अध्येता हैं)