आवारा कुत्तों के टीकाकरण में बहुत पीछे हैं राज्य, झारखंड की स्थिति सबसे बुरी; क्या है अन्य राज्यों का हाल?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी, भारत में आवारा कुत्तों की समस्या बनी हुई है, और कई राज्य टीकाकरण और आश्रय स्थल बनाने में पीछे हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे कुछ राज्य काम कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश राज्य एबीसी नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, जिसके अनुसार 70% कुत्तों को टीका लगाया जाना चाहिए। झारखंड में स्थिति विशेष रूप से खराब है, जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी टीकाकरण की दर कम है।

बीज को रोकने के लिए आवश्यक टीकाकरण की व्यवस्था भी पूरी नहीं (फाइल फोटो)
जागरण टीम, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद आवारा कुत्तों की समस्या भले ही राष्ट्रीय चिंता का विषय है, लेकिन राज्यों की तैयारी बहुत कमजोर है। आश्रय स्थल बनाना तो दूर कुत्तों के काटने से होने वाले रेबीज को रोकने के लिए आवश्यक टीकाकरण की व्यवस्था भी पूरी नहीं है।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा व उत्तराखंड समेत कुछ राज्य जरूर इस दिशा में कार्य कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातर की प्राथमिकता में यह नहीं है। पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) के नियमों के अनुसार, कुल आबादी के 70 प्रतिशत कुत्तों को रेबीज का सालाना टीका लगाया जाना आवश्यक है, ताकि यह कुत्तों से कुत्तों में न फैले। कोई भी राज्य इस मानक को पूरा नहीं कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में 20 लाख से अधिक आवारा कुत्ते
उत्तर प्रदेश में 20 लाख से अधिक आवारा कुत्ते हैं, जिनमें से 5.32 लाख का बंधियाकरण और टीकाकरण किया जा चुका है, जो लगभग एक चौथाई है। गत 1 अप्रैल से 31 अक्टूबर तक 80 हजार आवारा कुत्तों का बंधियाकरण और टीकाकरण किया गया है। इसके लिए केंद्र या राज्य सरकार की ओर से अलग से कोई बजट नहीं दिया जाता है, बल्कि नगर निगम अपने स्तर पर यह कार्य करते हैं।
एक बंधियाकरण और टीकाकरण पर लगभग 1,100 से 1,200 रुपये का खर्च आता है। राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों की वास्तविक संख्या का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक कुत्तों का बंधियाकरण किया जाता है। उसी समय टीकाकरण भी होता है। 20 केंद्र हैं, जहां प्रतिदिन 500 कुत्तों का बंधियाकरण होता है। इसके लिए 13 करोड़ रुपये बजट का प्रविधान है।
देहरादून शहर में करीब 50 प्रतिशत का ही टीकाकरण
हरियाणा सरकार के मुताबिक, राज्य में 2 लाख 30 हजार 675 आवारा कुत्ते हैं। इनमें 60 हजार 812 कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और टैगिंग की जा चुकी है। 90 आश्रय स्थल हैं। 11 जिलों में कोई आश्रय स्थल नहीं बना है और 13 जिलों में नसबंदी का कार्य रुका हुआ है। उत्तराखंड में ढाई लाख से अधिक आवारा कुत्ते होने का अनुमान है। देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी (नैनीताल), अल्मोड़ा और ऊधम सिंह नगर के रुद्रपुर व काशीपुर में पशु जन्म नियंत्रण केंद्र बनाए गए हैं, जहां एनजीओ के माध्यम से 53 हजार कुत्तों का बंध्याकरण और टीकाकरण किया जा चुका है।
देहरादून शहर में करीब 50 प्रतिशत का ही टीकाकरण होने का अनुमान है। जम्मू-कश्मीर में 2.80 लाख आवारा कुत्ते हैं, जिनमें से करीब एक तिहाई का टीकाकरण हो चुका है। जम्मू शहर में लगभग 50 हजार आवारा कुत्ते हैं, जिनमें 47 हजार का टीकाकरण किया गया है। श्रीनगर नगर निगम में जून, 2023 से सितंबर, 2025 के बीच 27,400 कुत्तों का टीकाकरण किया गया है। हिमाचल प्रदेश में 76 हजार कुत्ते हैं, जिनमें से लगभग सात हजार का टीकाकरण किया गया है। इसके लिए अलग से बजट नहीं है।
झारखंड में स्थिति संतोषजनक नहीं
झारखंड में स्थिति संतोषजनक नहीं है। कुत्तों की नसबंदी तो नियमित तौर पर हो रही है, लेकिन एंटी रैबीज टीका लगाने का काम वर्षों से रुका पड़ा है। दो महीने पहले छिटपुट रूप से टीकाकरण शुरू हुआ है। मध्य प्रदेश में वर्ष 2022 में आवारा कुत्तों की संख्या 10 लाख 9 हजार आंकी गई थी। अधिकारियों का अनुमान है कि बीते तीन वर्षों में इनकी संख्या दो गुना हो गई होगी। भोपाल में ही 1.20 लाख कुत्ते हैं।
एक एनजीओ के प्रयास से वर्ष 2024 -25 में 22,000 और एक अप्रैल 2025 से लेकर 31 अक्टूबर 2025 तक 16,000 कुत्तों का टीकाकरण हुआ। इंदौर में दो लाख 35 हजार के लगभग कुत्ते हैं। छह माह में 15 हजार कुत्तों को एंटी रेबीज टीके लगाए जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ में 3,94,686 आवारा कुत्ते हैं। बीते 30 अक्टूबर तक 22,057 कुत्तों का टीकाकरण, 13,199 का बंधियाकरण और 16,451 का डिवर्मिंग किया गया है। राज्य में सिर्फ नौ आश्रय स्थल बने हैं।
राज्य : आवारा कुत्तों की संख्या : टीकाकरण
उप्र : 20 लाख : 5.32 लाख
हरियाणा : पौने तीन लाख : 60,812
हिप्र : 76,000 : 7000
उत्तराखंड : 2.5 लाख : 53000
छत्तीसगढ़ : 3,94,686 : 22,057

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