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    'जब तक हमारे पास आखिरी गोली और आखिरी फौजी है, एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा'

    Major Somnath Sharma Birth Anniversary लड़ाई पर जाने से पहले मेजर सोमनाथ ने अपनी बहन मनोरमा शर्मा यानी कूक्कू के नाम पर अपनी वसीयत की थी।

    By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 31 Jan 2020 11:08 AM (IST)
    'जब तक हमारे पास आखिरी गोली और आखिरी फौजी है, एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा'

    धर्मशाला, दिनेश कटोच। Major Somnath Sharma Birth Anniversary: भारत में इस बार ऐसा गणतंत्र दिवस हुआ जब जम्मू कश्मीर में सिर्फ तिरंगा फहराया गया। इसी कश्मीर पर कब्जा करने आए पाकिस्तानी सेना और कबायलियों से भारत माता के जिस सपूत ने लोहा लिया था, वह थे परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा। देश के पहले परमवीर चक्र विजेता। ऐसा वीर... जिसकी रग-रग में बहादुरी थी। जिसने अपने आखिरी संदेश में कहा था, 'दुश्मन हम से सिर्फ 50 गज के फासले पर है, हमारी तादाद न के बराबर है और हम जबरदस्त गोलाबारी से घिरे हैं...मगर एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, जब तक हमारे पास आखिरी गोली और आखिरी फौजी है।' उस वक्त उम्र थी केवल 24 साल। आज कश्मीर के उस नायक को उनकी जयंती पर याद करते हुए ख्याल आता है...वह 97 साल के होते।

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    आज ही के दिन वर्ष 1923 में देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव डाढ़ के एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा नैनीताल में और देहरादून के प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज में उच्च शिक्षा हुई। 22 फरवरी वर्ष 1942 को उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला। उन्होंने 1947 में पाकिस्तान से हुई जंग में हाथ में फ्रैक्चर के बाद भी हिस्सा लिया। 3 नवंबर 1947 को दुश्मन से लोहा लेते हुए मेजर सोमनाथ बडगाम में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

    सैन्य पृष्ठ भूमि और विरासत में मिले वीरता के गुण ही थे कि दुश्मन देश कश्मीर को नहीं ले पाया। मलाल केवल इतना है कि मेजर शर्मा के घर डाढ में ही सरकारें आज तक उनका स्मारक तक नहीं बना सकीं। शहीद के पिता ने बेटे को मिला परमवीर चक्र 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हाथों प्राप्त किया था। परमवीर चक्र की घोषणा बेशक 1947 में की गई थी लेकिन वह समय विक्टोरिया क्रॉस का था।

    बायें से परमवीर चक्र विजेता शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा, उनकी माता सरस्वती व पिता कर्नल अमर नाथ शर्मा और पीछे खड़े बायें से उनके भाई वीएन शर्मा, बहन मनोरमा शर्मा व भाई सुरेंद्र नाथ शर्मा। यह फोटो रावलपिंडी में जून 1947 की है। सौजन्य शहीद परिवार

    कांगड़ा जिले के डाढ में शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा का घर, जहां उनके परिवार के सदस्य गर्मियों में ठहरते हैं।

    पूरा परिवार सेना में

    हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर विधानसभा क्षेत्र के डाढ गांव में 31 जनवरी,1923 को मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा के घर जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में हुई थी। मेजर जनरल अमर नाथ शर्मा आर्मी मेडिकल कोर, भाई लेफ्टिनेंट जनरल सुरेंद्र शर्मा इंजीनियरिंग कोर, छोटे भाई जनरल वीएन शर्मा आर्म्ड कोर, बहन कमल शर्मा व मनोरमा शर्मा ने आर्टीलरी व सिग्नल्स में सेवाएं दीं। कॉलेज के बाद मेजर सोमनाथ ने प्रिन्स ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन से सैन्य सेवाएं शुरू की थीं।

    मेजर सोमनाथ शर्मा के छोटे भाई मेजर जनरल वीएन शर्मा की फाइल फोटो। सौजन्य स्वजन

    बाजू टूटा था, हौसला नहीं

    26 अक्टूबर, 1947 को जब मेजर सोमनाथ की कंपनी को कश्मीर जाने का आदेश मिला तो उनके बाएं हाथ की हड्डी टूटी हुई थी, बाजू पर प्लास्टर चढ़ा था। वह कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कमांडर थे। साथियों ने रोकने की कोशिश की तो जवाब मिला, 'सैन्य परंपरा के अनुसार जब सिपाही युद्ध में जाता है तो अधिकारी पीछे नहीं रहते हैं।' श्रीनगर के दक्षिण पश्चिम में युद्ध भूमि से करीब 15 किलोमीटर दूर बडग़ांव में 3 नवंबर, 1947 को दुश्मनों से लोहा लेते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा ने शहादत पाई थी। मेजर सोमनाथ ने लगातार छह घंटे तक सैनिकों को लडऩे के लिए उत्साहित किया और नतीजा अपने हक में किया। इसी दौरान दुश्मन का गोला मेजर सोमनाथ शर्मा के पास रखे गोला बारूद के ढेर में गिर गया और इस महान योद्धा ने सदा के लिए भारत माता की गोद में शरण ले ली।

    मेजर सोमनाथ शर्मा के पिता मेजर जनरल अमर नाथ शर्मा की फाइल फोटो। सौजन्य स्वजन

    डाढ़ में चलता है चेरीटेबल अस्पताल

    उनके पैतृक निवास डाढ में उनकी याद में चेरीटेबल ट्रस्ट भी कार्यरत है। यहां पर सप्ताह के चार दिन चिकित्सक सेवाएं देते हैं, जिसमें आस-पास के क्षेत्रों के लोगों के स्वास्थ्य की जांच भी की जाती है।

    'मेरे लिए वह बड़े भाई थे और दोस्त भी। बस मेरी अनुशासनहीनता पर उन्हें गुस्सा आता था तो वह डांटते थे। अनुशासन की कमी को देखते मुझे सैन्य स्कूल में भेजा गया। उनकी हिम्मत के क्या कहने। जंग के दौरान एक समय आया कि उन्हें वापस आने का हुक्म दिया गया जो उन्होंने मंजूर नहीं किया।

    -जनरल वीएन शर्मा, सेवानिवृत्त थलसेना प्रमुख।

    बहन कुक्कू के नाम की थी वसीयत

    लड़ाई पर जाने से पहले मेजर सोमनाथ ने अपनी बहन मनोरमा शर्मा यानी कूक्कू के नाम पर अपनी वसीयत की थी। उन्हें चिंता थी कि उनकी बहनें अभी छोटी हैं।