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    यहां रामायण को लेकर है अलग मान्‍यता, सीता को माना जाता है रावण की बेटी

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Wed, 28 Aug 2019 12:28 PM (IST)

    मान्‍यता ऐसी भी है कि त्रिलोकीनाथ मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति के ऊपर स्‍थापित मूर्ति को माता सीता का रूप भी माना जाता है जबकि कुछ लोग इसे भगवान शिव का रूप मानते हैं।

    यहां रामायण को लेकर है अलग मान्‍यता, सीता को माना जाता है रावण की बेटी

    केलंग, जेएनएन। हिमाचल के लाहौल स्पीति में रामायण को लेकर अलग मान्‍यता है। यहां सीता को रावण की बेटी माना जाता है। ऐसा किसी पुस्‍तक में उल्‍लेख नहीं मिलता, लेकिन लोगों में ऐसी कहानियां प्रचलित हैं। लाहुल के इतिहासकारों की माने तो लाहुली रामायण हालांकि लिखा नहीं गया है। लेकिन इसका कथा वाचन अवश्य होता रहा है। जिसमें सीता को रावण की बेटी बताया गया है। वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे कहते हैं कि लाहुली बोली में कोई रामायण नहीं लिखा गया है। इतिहासकार प्रेम का कहना है लाहुली रामायण हालांकि, लिखा नहीं गया है। लेकिन इसका कथा वाचन अवश्य होता रहा है, जिसमें सीता को रावण की बेटी बताया गया है।

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    त्रिलोकीनाथ मंदिर लाहौल स्पीति

    यहां दसवीं शताब्‍दी से स्‍थापित त्रिलोकीनाथ मंदिर के पुजारी बीर सिंह ठाकुर का कहना है यहां माता सीता को धरती पुत्री कहा जाता है। मान्‍यता ऐसी भी है कि त्रिलोकीनाथ मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति के ऊपर स्‍थापित मूर्ति को माता सीता का रूप भी माना जाता है, जबकि कुछ लोग इसे भगवान शिव का रूप मानते हैं। इस मंदिर में बौद्ध और हिंदू दोनों धर्म के लोग अपने रीति-रिवाज के हिसाब से पूजा करते हैं।

    जानिए त्रिलोकीनाथ मंदिर के बारे में

    मान्‍यता है कि त्रिलोकीनाथ मंदिर 10वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह देश का ऐसा इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर हिंदू और बौद्ध समुदाय के लोग एक साथ अपने रिवाज से पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। मंदिर में स्थापित मूर्ति को हिंदू शिव के रूप में पूजते हैं, जबकि कुछ लोग इसे माता का रूप भी मानते हैं। वहीं बौद्ध धर्म के लोग इसे भगवान बुद्ध अवलोकतेश्वर के रूप में मानते हैं। जानकारों का मानना है भगवान त्रिलोकीनाथ मंदिर का इतिहास अपने आप में कई रहस्यों को छुपाए है। त्रिलोकीनाथ मंदिर में एक ही छत के नीचे शिव और बुद्ध के लिए दीये जलते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर बने दो खंभों को पाप-पुण्य का तराजू माना जाता है। मान्यता है कि खंभों के बीच से भीमकाय शरीर वाला वही शख्स गुजर पाता है जो पाप से मुक्त हो। जबकि अधर्मी भले ही दुबले शरीर वाला क्यों न हो, खंभों के बीच फंस जाता है।

    सीता के जन्‍म को लेकर मान्‍यता

    स्‍थानीय लोगों में प्रचलित कथा के अनुसार एक ब्राह्मण लक्ष्मी माता को खुश करने को पूजा पाठ कर रहा था। उसने वहां कलश में पूजा का सामान रखा था। ब्राह्मण का ध्यान बंटते ही रावण कलश को अपने घर ले आया और पत्नी मंदोदरी को यह कहकर रखने को दे दिया की कलश में विष है, इसे संभाल कर रखें। यह कहकर रावण तपस्या में चला जाता है। मंदोदरी एक दिन पति से तंग आकर कलश में रखे जहर को पी जाती है, जिससे वह गर्भवती हो जाती है। गर्भवती होने से मंदोदरी घबरा जाती है और अपने गर्भ में पल रही कन्या को धरती में दबा दिया। कुछ समय बाद जब राजा जनक खेतों में हल चलाने लगा तो उसे वह कन्या जीवित मिली। इस तरह सीता जनक की पुत्री कहलाई। लेकिन लाहुल के लोग सीता को रावण की भी पुत्री मानते हैं।