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    आंध्र और तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की कहानी

    By Edited By:
    Updated: Wed, 31 Jul 2013 10:54 AM (IST)

    तेलंगाना के लोगों का मानना है कि हैदराबाद नए राज्य का अभिन्न हिस्सा है जबकि बाकी आंध्र किसी भी सूरत में इस पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है। संभवतया इसीलिए फिलहाल अगले 10 वर्षो तक यह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की संयुक्त रूप से राजधानी होगा। देश के छठे बड़े इस शहर में ऐतिहासिक विरासत के साथ गूगल, माइक्रोसाफ्ट और डेल जैसी

    तेलंगाना के लोगों का मानना है कि हैदराबाद नए राज्य का अभिन्न हिस्सा है जबकि बाकी आंध्र किसी भी सूरत में इस पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है। संभवतया इसीलिए फिलहाल अगले 10 वर्षो तक यह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की संयुक्त रूप से राजधानी होगा। देश के छठे बड़े इस शहर में ऐतिहासिक विरासत के साथ गूगल, माइक्रोसाफ्ट और डेल जैसी दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनियों के ऑफिस हैं। विवाद की जड़ रहे हैदराबाद की अपनी दास्तां हैं:

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    क्षेत्रफल: 650 वर्ग किमी

    जनसंख्या: 70 लाख

    प्रति व्यक्ति आय: 3.40 लाख सालाना

    साक्षरता दर: 81 प्रतिशत

    कुतुब शाही

    बहमनी साम्राज्य के विघटन के बाद पांच राज्य अस्तित्व में आए। उनमें से कुतुब शाही वंश ने गोलकुंडा साम्राज्य स्थापित किया। इस वंश के पांचवें शासक मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने 1591 में गोलकुंडा से पांच मील पूर्व में मुसी नदी के किनारे हैदराबाद शहर की स्थापना की। कुली कुतुब ने अपनी पत्नी हैदर महल के नाम पर इस शहर का नाम हैदराबाद रखा। 1687 में औरंगजेब ने गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।

    निजाम

    1707 में औरंगजेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। मौके का लाभ उठाकर 1724 में दक्कन के गवर्नर मीर कुमारुद्दीन ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। वह निजाम-उल-मुल्क फिरोज जंग आसिफ जाह के नाम से हैदराबाद की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार वह पहला निजाम हुआ और उसने आसिफ जाही वंश को स्थापित किया। अंग्रेजों के दौर में हैदराबाद सबसे बड़ी शाही रियासत थी। आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारत में मिला लिया गया। एक नवंबर, 1956 को भाषाई आधार पर राज्यों का गठन हुआ और हैदराबाद आंध्र प्रदेश की राजधानी बनी।

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