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    रोंगटे खड़े कर देने वाली है वीरता पुरस्कार पाने वाले 22 बच्चों की कहानियां

    22 बच्चों को राष्ट्रीयता वीरता पुरस्कार देने के लिए चयन किया गया है। इन सभी बच्चों की कहानियां अपने आप में रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं।

    By Vinay TiwariEdited By: Updated: Wed, 22 Jan 2020 04:04 PM (IST)
    रोंगटे खड़े कर देने वाली है वीरता पुरस्कार पाने वाले 22 बच्चों की कहानियां

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देशभर में कई बार छोटे बच्चे इस तरह के बहादुरी के काम कर जाते हैं कि वैसे काम बड़े और समझदार लोग भी करने में एकबारगी हिचकिचा जाते हैं। ऐसे ही बहादुर बच्चों की पहचान करने के बाद उनको वीरता पुरस्कार दिया जाता है जिससे उनका उत्साह बना रहे और वो ऐसे काम करने में हिचकिचाएं नहीं।

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    ऐसे ही 22 बच्चों को राष्ट्रीयत वीरता पुरस्कार देने के लिए चयनित किया गया है, जिनमें 10 लड़कियां और 12 लड़के शामिल हैं। इनमें से एक लड़के को यह पुरस्कार मरणोपरांत दिया जा रहा है। हम आपको इस खबर के माध्यम से इन्हीं में से बहादुर बच्चों के कारनामे बता रहे हैं। इसके अलावा इन पुरस्कारों के लिए इन बच्चों का चयन किस तरह से किया जाता है इसकी भी जानकारी देंगे।

    कैसे होता है चयन 

    विजेताओं को विभिन्न विषयों जैसे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, गणित, विज्ञान, कला, संगीत और खेल के विशेषज्ञों की एक समिति तैयार की जाती है। जिसके महत्वपूर्ण विश्लेषण और मुश्किल प्रक्रिया के माध्यम से इन बहादुरों का चयन किया जाता है। जिसके बाद महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी की निगरानी में अंतिम सूची तैयार की जाती है।

    कब हुई शुरूआत 

    राष्ट्रीय वीरता पुरस्कारों की शुरुआत भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा 1957 में बच्चों के बहादुरी और मेधावी सेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए पहचानने और दूसरों के लिए उदाहरण बनने को ध्यान में रखकर की गई थी। आईसीसीडब्‍ल्‍यू ने अब तक 1,004 बच्चों को पुरस्कार के साथ सम्मानित किया है, जिसमें 703 लड़के और 301 लड़कियां शामिल हैं। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक पदक, एक प्रमाण पत्र और निर्धारित नकद रकम का पुरस्कार मिलता है। चयनित बच्चों को तब वित्तीय सहायता दी जाती है जब तक कि वे स्नातक पूरा नहीं कर लेते हैं। इंजीनियरिंग और चिकित्सा जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए चयन करने वालों को छात्रवृत्ति योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता मिलती है।

    कौन करता है आवेदन 

    जो बच्चा भारत का नागरिक हो वह अपना रजिस्ट्रेशन कर सकता है। इसके अलावा भारत का कोई नागरिक ऐसे किसी बच्चे का रजिस्ट्रेशन कर सकता है जिसने समाज सेवा, शैक्षिक क्षेत्र, खेल, कला एवं संस्कृति में ऐसा काम किया हो जिसका सकारात्मक प्रभाव डाला हो।

    केंद्र सरकार ने इन पुरस्कारों से किया था अलग 

    साल 2018 तक परिषद द्वारा चुने गए बच्चों को यह पुरस्कार प्रधानमंत्री के हाथों मिलता था। वहीं, इन्हें गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का मौका भी मिलता था। लेकिन पिछले साल आइसीसीडब्ल्यू पर लगे वित्तीय गड़बड़ि‍यों के आरोपों के बाद केंद्र सरकार ने स्वयं को इन पुरस्कारों से अलग कर लिया। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अलग से अपने पुरस्कार देता है। सरकारी स्तर पर अलगाव के बाद परिषद ने अपने पुरस्कारों के नाम भी बापू गयाधनी, संजय चोपड़ा, गीता चोपड़ा की बजाय मार्कंडेय, ध्रुव एवं प्रह्लाद अवार्ड कर दिया है।

    सामान्‍य पुरस्‍कार में कई बच्‍चे शामिल 

    सामान्य सम्मान के तहत प्रत्येक बहादुर बच्चे को 20-20 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है। सामान्य पुरस्कार पाने वालों में मणिपुर की आठ वर्षीय लारेंबम याईखोंबा मंगांग, मिजोरम की पौने 17 वर्षीय लालियानसांगा, कर्नाटक की 11 साल की बेंकटेश, छत्तीसगढ के 9 साल के कांति पैकरा, जम्मू कश्मीर के 18 साल के मुदासिर अशरफ, कर्नाटक की 9 साल की आरती किरण शेट, मिजोरम की 11 साल की कैरोलिन मलसामतुआंगी, छत्तीसगढ की 12 साल की भामेरी निर्मलकर, मेघालय के 11 साल की एवरब्लूम के नोंगरम, हिमाचल प्रदेश के 13 साल की अलाईका, असम के 11 साल के कमल कृष्णा दास, केरला के 13 साल के फतह पीके, मिजोरम के 13 साल के बनलालरियातरेंगा, महाराष्ट्र के 11 साल के जेन सदावरते व 15 साल के आकाश मच्छिंद्रा खिल्लारे शामिल हैं।

    बहादुर बच्चों की कहानियां

    तीन बच्‍चों को गहरे समुद्र में डूबने से बचाया 

    केरल के रहने वाले 17 साल के मोहम्मद मुहसिन ईसी ने अपने तीन दोस्तों को गहरे समुद्र में डूबने से बचाया लेकिन खुद समुद्र में डूब गया। उसका शव अगले दिन मिला। इस बहादुर बच्चे को मरणोपरांत अभिमन्यु अवार्ड से नवाजा जाएगा।

    बस में आग लगने से 40 लोगों को बचाया 

    परिषद का सबसे बड़ा सम्मान भारत अवार्ड केरला के ही रहने वाले आदित्य के. को प्रदान किया जाएगा। आदित्य ने पर्यटकों से भरी एक बस मे आग लग जाने पर बहादुरी दिखाते हुए उस बस के शीशे तोड़ कर 40 से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाई। आदित्य उस बस में सवार था और आग लगने के बाद बस का ड्राइवर बस छोड़ कर भाग गया था और यात्री धुआं भरने की वजह से चीख पुकार करने लगे थे। ऐसे में आदित्य ने सूझबूझ दिखाते हुए बस के शीशे को तोड़ दिया जिससे यात्री बाहर निकल पाए। भारत पुरस्कार के तहत परिषद की ओर से 50 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है। जबकि अभिमन्यु पुरस्कार के तहत 40 हजार रुपये।

    राखी की बहादुरी 

    बता दें कि उत्तराखंड जिले के बीरोंखाल ब्लॉक के देवकुंडाई तल्ली गांव की रहने वाली 11 साल की राखी 4 अक्टूबर को अपने चार साल के भाई राघव को तेंदुए से बचाने के लिए उससे भिड़ गई थी और संघर्ष में गंभीर रूप से घायल हो गई थी। वहीं राखी की मौसी मधु देवी ने बताया कि राखी का परिवार उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले गया, जहां अधिकारियों ने उसे कथित रूप से भर्ती करने से मना कर दिया।

    इसके बाद परिवार ने प्रदेश के पर्यटन मंत्री और स्थानीय सांसद सतपाल महाराज से संपर्क किया, जिनके हस्तक्षेप से उसे सात अक्टूबर को राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। सतपाल महाराज की ओर से राखी के उपचार के लिए एक लाख रुपये की सहायता भी दी। पौड़ी के जिलाधिकारी डी एस गरब्याल ने बताया था कि राखी का नाम बहादुरी पुरस्कार के लिए भेजा जाएगा।

    केरल के रहने वाले 17 साल के मोहम्मद मुहसिन ईसी 

    कर्नाटक के बाढ़ग्रस्त इलाके में एक 12 साल के लड़के ने बहादुरी की जबरदस्त मिसाल पेश की है। बाढ़ में डूबे रास्ते पर एक एंबुलेंस को रास्ता दिखाने के बाद यह लड़का लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया। रायचूर जिले के हीरेरायनकुंपी गांव के रहने वाले इस बच्चे ने एक एम्बुलेंस को रास्ता दिखाने के लिए पानी की तेज धार की परवाह भी नहीं की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस समय ऐम्बुलेंस में 6 बच्चों समेत एक मृत महिला का शव भी था। 12 साल के बच्चे वेंकटेश की इस बहादुरी पर प्रशासन ने 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

    वेंकटेश ने एक एंबुलेंस को उस वक्त रास्ता दिखाया, जब उसे एक पुल से गुजरना था। बाढ़ की वजह से पुल पूरी तरीके से डूब चुका था। ड्राइवर के लिए पुल की सटीक स्थिति और पानी की गहराई का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था। उस वक्त वेंकटेश वहां आस-पास ही खेल रहा था। एंबुलेंस को असमंजस कीस्थिति में देखकर उसने मदद करने का फैसला किया।

    मुदासिर ने बालाकोट के बाद हेलिकॉप्टर क्रैश के दौरान दिखाई थी बहादुरी 

    बीते साल 26 फरवरी को बालाकोट एयरस्ट्राइक के एक दिन बाद जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर के आसमान में भारत और पाकिस्तान के लड़ाकू विमान आमने-सामने थे। तब एक MI-17 हेलिकॉप्टर के बड़गाम में क्रैश होने की खबर आई। हेलिकॉप्टर क्रैश होने के बाद इस हादसे में 6 भारतीय वायुसैनिकों और एक नागरिक की मौत हो गई थी।

    ये घटना जहां विवादों में घिरी रही, वहीं इसी घटना में 17 वर्ष का लड़का मुदासिर अशरफ हीरो बनकर उभरा। मुदासिर ने बताया कि उस वक्त उसके दिमाग में ये नहीं था कि उसे खुद भी खतरा हो सकता है। मुदासिर ने आग में फंसे शख्स (किफायत हुसैन) को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की लेकिन दुर्भाग्य से हुसैन ने बाद में दम तोड़ दिया। मुदासिर ने बाकी ग्रामीणों को भी बचाव टीमों की मदद करने के लिए प्रेरित किया था। जबकि कुछ स्थानीय लोग बचाव अभियान में सशस्त्र बलों की मदद करने का विरोध कर रहे थे।

    चोटिल होकर भी परिजनों को बचाया 

    जम्मू और कश्मीर से राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार के लिए चुने गए दूसरे बच्चे सरताज की बहादुरी की कहानी भी कुछ कम नहीं। 16 साल 7 महीने का सरताज कुपवाड़ा के तुमिना गांव में अपने घर की पहली मंजिल पर था कि आर्टिलरी का एक गोला वहां आकर फटा, ये घटना 24 अक्टूबर 2019 की है।

    उस वक्त पाकिस्तानी सेना की ओर से चौकीबल और तुमिना में बिना किसी उकसावे के भारी गोलाबारी की जा रही थी। सरताज ने पहली मंजिल से छलांग लगा दी। सरताज को तब अहसास हुआ कि उसके माता-पिता और दो बहनें-सानिया (8 वर्ष) और सादिया (2 वर्ष) घर के अंदर फंसे हुए हैं। छलांग लगाने से टांग में गंभीर चोट आने के बावजूद सरताज घर में घुसा और माता-पिता, बहनों को सुरक्षित बाहर ले आया फिर देखते ही देखते सरताज का घर मलबे में बदल गया।

    बच्ची ने बचाई माता-पिता और दादा की जान 

    महज 13 साल की अलाइका उस वक्त अपने माता, पिता और दादा के लिए फरिश्ता बन गईं, जब उनकी कार अचानक रोड से नीचे खाई में गिरने लगी। अलाइका की मां सविता बताती हैं, 'हम एक बर्थडे पार्टी में जा रहे थे। पालमपुर के पास हमारी कार अचानक खाई में जाने लगी। किस्मत अच्छी थी कि एक पेड़ के तने से टकराकर वह रुक गई। इस हादसे के बाद अलाइका सबसे पहले होश में आई और लोगों को मदद के लिए बुलाया। यदि वह न होती तो आज हम लोग जिंदा न बचते।'

    जलती बस से 42 लोगों को बचाया 

    अलाइका जैसा ही हादसा आदित्य के. के साथ भी हुआ था। बीते साल एक मई को 15 साल के आदित्य केरल के 42 अन्य पर्यटकों के साथ नेपाल की यात्रा से लौट रहे थे। भारतीय सीमा से करीब 50 किलोमीटर पहले बस में आग लग गई। आग लगते ही ड्राइवर मौके से फरार हो गया, जबकि 5 बच्चों और कुछ बुजुर्गों समेत तमाम यात्री बदहवास थे। बस के दरवाजे बंद थे। इस बीच आदित्य ने हथौड़े से बस का पिछला शीशा तोड़ दिया। इस दौरान उनके हाथ और पैरों में शीशे से चोटें भी लगीं। आदित्य की यह वीरता ही थी कि बस के डीजल टैंक के फटने से पहले सभी यात्री निकल पाए।

    आतंकी फायरिंग से पैरेंट्स और बहनों को बचाया 

    बीते साल 24 अक्टूबर की बात है। कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के चौकीबल और तुमिना में पाकिस्तान ने फायरिंग शुरू कर दी। 16 साल के मुगल उस वक्त घर में ही थे। उनके घर की पहली मंजिल पर पाकिस्तान का एक गोला आकर गिरा। वह बाहर निकल आए, लेकिन तभी उन्हें याद आया कि उनके पैरेंट्स और दो बहनें अभी अंदर ही हैं। इसके बाद वह तुरंत घर गए और अपनी दो बहनों को सुरक्षित निकालकर लाए। इसके बाद मकान ढहने से पहले उन्होंने माता और पिता को भी जगाकर बाहर निकलने।

    अशरफ ने हेलिकॉप्टर क्रैश में चलाया बचाव अभियान 

    पिछले साल 27 फरवरी को भारतीय वायुसेना का MI-17 हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया था। बडगाम में हुए इस हादसे के बाद मौके पर पहुंचने वाले लोगों में 18 साल के अशरफ भी थे। उन्होंने उस मलबे में एक व्यक्ति को जिंदा देखा। इसके बाद अपनी जान पर खेलकर घायल शख्स को निकाला। हालांकि उनकी जान नहीं बच सकी। इसके बाद घटनास्थल पर पहुंची एनडीआरएफ की टीम के साथ भी वह बचाव कार्य में जुटे रहे।

    इन्हें भी मिलेगा बहादुरी का पुरस्कार 

    पुरस्कार पाने वाले अन्य बच्चों में असम के मास्टर कमल कृष्ण दास, छत्तीसगढ़ की कांति पैकरा और वर्णेश्वरी निर्मलकर, कर्नाटक की आरती किरण सेठ और वेंकटेश, केरल के फतह पीके, महाराष्ट्र की जेन सदावर्ते और आकाश मछींद्र खिल्लारे को दिया जाएगा। इसके अलावा मिजोरम के तीन बच्चों और मणिपुर व मेघालय से एक एक बच्चे को वीरता पुरस्कार के लिए चुना गया है।

    आतंकी हमले में मां और बहन को बचाया 

    आतंकवादियों के हमले के दौरान मां और बहन की सुरक्षा सुनिश्चित की। गोलियां लगने के चलते 6 महीने से ज्यादा अस्पताल में रहना पड़ा। आज भी वीलचेयर पर चलने को मजबूर सौम्यदीप को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार से नवाजा।

    बच्चों के नाम 

    - मणिपुर की आठ वर्षीय लारेंबम याईखोंबा मंगांग

    - मिजोरम की पौने 17 वर्षीय लालियानसांगा,

    - कर्नाटक की 11 साल की बेंकटेश,

    - छत्तीसगढ़ के 9 साल के कांति पैकरा,

    - जम्मू कश्मीर के 18 साल के मुदासिर अशरफ,

    - कर्नाटक की 9 साल की आरती किरण शेट,

    - मिजोरम की 11 साल की कैरोलिन मलसामतुआंगी,

    - छत्तीसगढ़ की 12 साल की भामेरी निर्मलकर,

    - मेघालय के 11 साल की एवरब्लूम के नोंगरम,

    - हिमाचल प्रदेश के 13 साल की अलाईका,

    - असम के 11 साल के कमल कृष्णा दास,

    - केरला के 13 साल के फतह पीके,

    - मिजोरम के 13 साल के बनलालरियातरेंगा,

    - महाराष्ट्र के 11 साल के जेन सदावरते व 15 साल के आकाश मच्छिंद्रा खिल्लारे

    - जम्मू कश्मीर की रहने वाली 17 वर्षीय सरताज मोहीदीन मुगल

    - उत्तराखंड की रहने वाली 10 वर्षीय राखी

    - ओडिशा की रहने पूर्णिमा गिरी और सबिता गिरी

    - ओडिशा की ही रहने वाली 10 वर्षीय बदरा

    - धमतरी जिले के कानीडबरी गांव में रहने वाली भामेश्वरी निर्मलकर

    - सरगुजा जिले के मोहनपुर गांव की रहने वाली 7 साल की बालिका कांति सिंह

    इन बच्चों को मिलेगा अभिमन्यु अवार्ड 

    मार्कंडेय अवार्ड उत्तराखंड के रहने वाली 10 वर्षीय राखी को मिलेगा, जबकि ध्रुव अवार्ड ओडिशा की रहने वाली पूर्णिमा गिरी और सबिता गिरी को प्रदान किया जाएगा। ओडिशा की ही रहने वाली 10 वर्षीय बदरा को प्रह्लाद अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। जम्मू कश्मीर की रहने वाली 17 वर्षीय सरताज मोहीदीन मुगल को श्रवण अवार्ड प्रदान किया जाएगा। इन सभी पुरस्कारों के तहत 40 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है।