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    'सहमति की आयु कम करना कानूनी रूप से अनुचित, नाबालिगों के लिए खतरा', SC का केंद्र को जवाब

    By Agency Edited By: Piyush Kumar
    Updated: Thu, 07 Aug 2025 11:30 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सहमति की वैधानिक आयु 18 वर्ष निर्धारित करने का बचाव किया है। सरकार का कहना है कि यह फैसला नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के लिए लिया गया है। सहमति की आयु कम करना कानूनी रूप से गलत और खतरनाक होगा क्योंकि इससे बाल शोषण करने वालों को बचाव का मौका मिल जाएगा।

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    केंद्र सरकार ने सहमति की वैधानिक आयु 18 वर्ष निर्धारित करने का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया है। (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सहमति की वैधानिक आयु 18 वर्ष निर्धारित करने का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया है। केंद्र ने कहा कि यह नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के उद्देश्य से सोचा-समझा, सुविचारित और सुसंगत नीतिगत फैसला है।

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    अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के जरिये अपनी लिखित दलील में केंद्र ने कहा कि सहमति की आयु कम करना या किशोर प्रेम की आड़ में अपवाद प्रस्तुत करना न सिर्फ कानूनी रूप से अनुचित होगा, बल्कि खतरनाक भी होगा। यह दु‌र्व्यवहार करने वालों को एक बचाव तंत्र प्रदान करेगी जो बच्चे की भावनात्मक निर्भरता या चुप्पी का फायदा उठाते हैं।

    केंद्र ने कहा कि सहमति की मौजूदा वैधानिक आयु का सख्ती से और समान रूप से पालन किया जाना चाहिए। सुधार या किशोर स्वायत्तता के नाम पर इसमें कोई भी ढील बाल संरक्षण कानून में दशकों की प्रगति को पीछे धकेलने के समान होगी और पोक्सो अधिनियम, 2012 एवं बीएनएस जैसे कानूनों को कमजोर करेगी।

    केंद्र ने कहा कि प्रत्येक मामले के आधार पर विवेकाधिकार न्यायालय के पास ही रहना चाहिए और इसे कानून में एक सामान्य अपवाद या कमजोर मानक के रूप में नहीं होना चाहिए। साथ ही कहा कि सहमति की उम्र कम करने से सहमति की आड़ में तस्करी और अन्य प्रकार के बाल शोषण के ''द्वार'' खुल जाएंगे।

    शीर्ष अदालत के समक्ष इस मामले में किशोर संबंधों में उम्र के मुद्दे को भी उठाया गया है। केंद्र ने कहा, ''सहमति की आयु 18 वर्ष निर्धारित करने और उस आयु से कम के व्यक्ति के साथ सभी यौन गतिविधियों को कथित सहमति के बावजूद अपराध मानने का विधायी निर्णय एक सुविचारित और सुसंगत वैधानिक नीति का परिणाम है।''

    केंद्र ने कहा, जब अपराधी माता-पिता या परिवार का कोई करीबी सदस्य होता है, तो बच्चे की रिपोर्ट करने या विरोध करने में असमर्थता और भी बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में ''सहमति'' को बचाव के रूप में प्रस्तुत करना केवल बच्चे को पीड़ित बनाता है, दोष उन पर डाल देता है और बच्चों को शोषण से बचाने के पोक्सो के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है। लिहाजा सहमति की मौजूदा उम्र को बरकरार रखा जाना चाहिए।