चुनाव के दौरान राजकोषीय संतुलन ताक पर रख देते हैं राज्य, एमके ग्लोबल की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
कोरोना के बाद केंद्र सरकार के साथ ही राज्यों में राजकोषीय संतुलन स्थापित करने की कोशिश अच्छी चल रही थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष के दौरान केंद्र की चाल तो सही दिशा में बढ़ रही है लेकिन कई राज्यों की स्थिति ठीक नहीं दिखती। इसके पीछे एक बड़ी वजह लोकलुभावन वादे और उन पर अमल करना है। पिछले दो सालों में देश के दस राज्यों में चुनाव हुए हैं।
माधवी अरोड़ा, चीफ इकोनोमिस्ट जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: कोरोना के बाद केंद्र सरकार के साथ ही राज्यों में राजकोषीय संतुलन स्थापित करने की कोशिश अच्छी चल रही थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष के दौरान केंद्र की चाल तो सही दिशा में बढ़ रही है लेकिन कई राज्यों की स्थिति ठीक नहीं दिखती। इसके पीछे एक बड़ी वजह लोकलुभावन वादे और उन पर अमल करना है।
यह बात देश की एक प्रमुख आर्थिख शोध एजेंसी एमके ग्लोबल की तरफ से मंगलवार को जारी रिपोर्ट में बताई गई है। पिछले दो सालों में देश के दस राज्यों में चुनाव हुए हैं और इन सभी राज्यों में बड़े आकर्षक लोक-लुभावन वादे किये गये हैं जिनका अमल इन राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य पर बोझ डालेगा।
'चुनाव में मुफ्त की रेवड़ी बांटने की परंपरा पुरानी है'
साथ ही कई राज्य ऐसे हैं जो अपने राजस्व संग्रह को लेकर बहुत ही ज्यादा आशावादी आकलन पेश कर रहे हैं। यह भी इन पर उल्टा पड़ेगा। एमके ग्लोबल की चीफ इकोनोमिस्ट माधवी अरोड़ा का कहना है कि भारतीय राज्यों में होने वाले चुनाव में मुफ्त की रेवड़ी बांटने की परंपरा बहुत पुरानी है।हमारा आकलन बताता है कि पिछले दो दशकों में 20 राज्यों में जब चुनाव हुए हैं तब उनका राजकोषीय घाटा (राज्य के सकल घरेलू उत्पादन—सजीडीपी) के मुकाबले सामान्य से 0.5 फीसद तक ज्यादा रहा है। जबकि राजस्व व्यय भी 0.4 फीसद चुनावी साल में देखे गये हैं। इनका आकलन यह भी बताता है कि चुनावी साल में ज्यादा राजकोषीय घाटे की स्थिति सबसे ज्यादा छत्तीसगढ, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडीसा, झारखंड और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में रही है।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इनमें से कई राज्यों में फिर से अगले साल 2025 के अंत तक चुनाव होने वाले हैं। सुश्री अरोड़ा का आकलन बताता है कि राज्यों का संयुक्त सब्सिडी बिल इनके वर्ष 2024-25 के बजट में 3.7 लाख करोड़ रुपये रहने की बात कही गई है।
राज्यों की तरफ से कोरोना काल में दी गई थी राशि
यह राज्यों के कुल राजस्व संग्रह का 8.6 से 8.7 फीसद है। सब्सिडी के तौर पर राज्यों की तरफ से इतनी बड़ी राशि सिर्फ कोरोना काल में वर्ष 2020-21 में दी गई थी। एक साल में सब्सिडी बिल में 26 फीसद की वृद्धि हुई है और यह मुफ्त की योजनाओं की घोषणाओं की वजह से ही हुई हैं। ऐसे में एमके ग्लोबल की रिपोर्ट यह बी कहती है कि मौजूदा स्थिति में राज्यों की तरफ से ज्यादा कर्ज लिए जाने की संभावना है। राज्यों की उधारी पहले से ही बढ़ रही है। इस साल इसमें 8-10 फीसद तक वृद्धि हो सकती है। वित्त वर्ष 2025 के अंत तक राज्यों की कुल उधारी 11 लाख करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है जो पिछले वित्त वर्ष से 9 फीसद ज्यादा होगी।