अंतरिक्ष शिक्षा को नई उड़ान: देश के सात उच्च शिक्षण संस्थानों में स्थापित होंगी अंतरिक्ष प्रयोगशालाएं, वर्ल्ड रैंकिंग होगी बूस्ट
देश में अंतरिक्ष शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। सात उच्च शिक्षण संस्थानों में अंतरिक्ष प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएंगी। इ ...और पढ़ें

अंतरिक्ष प्रयोगशाला। (रॉयटर्स)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 2047 तक अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने के लक्ष्य के साथ भारत ने अपने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ा दिए हैं। इसी कड़ी में देशभर के चुनिंदा उच्च शिक्षण संस्थानों में अत्याधुनिक 'अंतरिक्ष प्रयोगशालाएं' स्थापित की जाएंगी, ताकि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुरूप कुशल और प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार किया जा सके।
इस महत्वाकांक्षी पहल के तहत भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (आइएन-एसपीएसीई या इन-स्पेस) ने सात अंतरिक्ष प्रयोगशालाएं स्थापित करने की योजना तैयार की है। यह अपनी तरह की पहली पहल मानी जा रही है, जिसका उद्देश्य कक्षा आधारित पढ़ाई को प्रयोगशाला के व्यावहारिक अनुभव से जोड़ना है। इन प्रयोगशालाओं के माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से जुड़े पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत छात्रों को न केवल हाथों-हाथ प्रशिक्षण मिलेगा, बल्कि उन्हें वास्तविक अंतरिक्ष परियोजनाओं की कार्यप्रणाली से भी रूबरू होने का अवसर प्राप्त होगा।
इस योजना को लागू करने के लिए 'रिक्वेस्ट फार प्रपोजल' (आरएफपी) जारी कर दी है। इसके तहत चयनित शैक्षणिक संस्थानों में आधुनिक प्रयोगशालाओं की स्थापना की जाएगी, जिससे छात्रों को अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हाथों-हाथ सीखने का अवसर मिलेगा।
उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच बढ़ेगा सहयोग
इन-स्पेस प्रमोशन निदेशालय के निदेशक विनोद कुमार ने बताया कि यह पहल उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच सार्थक सहयोग को बढ़ावा देगी और भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अग्रणी बनाने के दीर्घकालिक लक्ष्य को समर्थन देगी। उन्होंने कहा कि साझा प्रयोगशालाओं के माध्यम से एप्लायड रिसर्च, शुरुआती नवाचार और उद्योग की वास्तविक जरूरतों के अनुरूप कौशल विकास को बढ़ावा मिलेगा।
लैब के लिए अलग-अलग हिस्सों से चुने जाएंगे संस्थान
योजना के तहत देश के सात अलग-अलग क्षेत्रों से चरणबद्ध तरीके से अधिकतम सात संस्थानों का चयन किया जाएगा। इन-स्पेस कुल परियोजना लागत का 75 प्रतिशत तक, अधिकतम पांच करोड़ रुपये प्रति संस्थान की वित्तीय सहायता देगा। आरएफपी के अनुसार, आवेदन के लिए संस्थान का कम से कम पांच वर्ष पुराना होना, एनआइआरएफ रैंकिंग में 200 के भीतर होना और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबंधित पाठ्यक्रम संचालित करना अनिवार्य होगा। चयनित संस्थानों से उद्योग के साथ तकनीकी विकास परियोजनाओं में सहयोग को भी प्रोत्साहित करने की अपेक्षा की जाएगी।
अंतरिक्ष से मिसाइल ट्रैकिंग करेगा स्वदेशी स्टार्टअप
'दिगंतर'अंतरिक्ष में मलबे की निगरानी करनेवाला भारतीय स्टार्टअप 'दिगंतर', अब अंतरिक्ष से ही मिसाइलों की निगरानी के क्षेत्र में भी कदम रखने जा रहा है। इन दोनों ही कामों में उपग्रहों की मदद ली जाती है और दुनियाभर की सरकारें मिसाइलों ट्रैकिग की अवधारणा में दिलचस्पी दिखा रही हैं। ये क्षेत्र अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है।
बेंगलुरु आधारित दिगंतर इंडस्ट्रीज के सहसंस्थापक और सीईओ अनिरुद्ध शर्मा ने बताया कि कंपनी ने इस साल जनवरी में एक अंतरिक्ष सर्विलांस उपग्रह 'स्कॉट' लांच किया था और 2026-27 में 15 ऐसे ही और उपग्रहों को लॉन्च करने की तैयारी में है ताकि अंतरिक्ष निगरानी क्षमताओं को कई गुना बढ़ाया जा सके।
साथ ही कंपनी 2026-27 में दो अल्बाट्रास उपग्रहों को भी लांच करेगी, जिससे मिसाइलों का सटीक तरीके से पता लगाया जा सकेगा और समय रहते चेतावनी जारी की जा सकेगी। साथ ही 'स्काईगेट' भी लॉन्च किया जाएगा, जो जमीन आधारित सेंसर का एक बढ़ता हुआ नेटवर्क है, जो महत्वपूर्ण आपरेशनल क्षेत्रों में लगातार निगरानी में मदद करता है।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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