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    भौगोलिक परिवर्तन से बदलता है सांप का विष, सॉ-स्केल्ड वाइपर के जहर से बनती हैं विषरोधी दवाएं

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 17 Aug 2020 09:22 PM (IST)

    दुनियाभर में पाई जाने वाली सांपों की सबसे विषैली प्रजातियों में सॉ-स्केल्ड वाइपर को उसके खतरनाक जहर के लिए जाना जाता है। ...और पढ़ें

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    भौगोलिक परिवर्तन से बदलता है सांप का विष, सॉ-स्केल्ड वाइपर के जहर से बनती हैं विषरोधी दवाएं

    नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। यह तो आपने सुना ही होगा कि जहर को जहर ही काटता है। विषरोधी दवाओं के मामले में यह बात बिलकुल फिट बैठती है। सॉ-स्केल्ड वाइपर को दुनिया के सबसे अधिक विषैले सांपों में गिना जाता है। पर, यह सांप अपनी औषधीय उपयोगिता के लिए भी जाना जाता है। जैसा देश, वैसा वेष! सांप के विष का मामला भी कुछ ऐसा ही होता है। एक ताजा अध्ययन में, हैदराबाद स्थित सीएसआइआर-कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाने वाली सॉ-स्केल्ड वाइपर की भौगोलिक रूप से भिन्न आबादी के विष का संयोजन, क्षेत्र विशेष के अनुसार अलग-अलग होता है। विज्ञानियों का कहना है कि यह जानकारी प्रभावी विषरोधी दवाएं विकसित करने में उपयोगी हो सकती है।

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    तीन राज्यों से एकत्रित किए गए सॉ-स्केल्ड वाइपर के विष नमूनों में भिन्नता

    इस अध्ययन में विभिन्न क्षेत्रों के सॉ-स्केल्ड वाइपर के विष नमूनों में काफी विविधता देखी गई है। शोधकर्ताओं में शामिल सीसीएमबी के विज्ञानी डॉ. काíतकेयन वासुदेवन ने बताया कि इस अध्ययन में, तमिलनाडु, गोवा, राजस्थान समेत तीन राज्यों से एकत्रित किए गए सॉ-स्केल्ड वाइपर के विष नमूनों में भिन्नता देखी गई है। विष नमूनों में इस अंतर के लिए मुख्य रूप से विष-परिवारों की संरचनात्मक भिन्नता जिम्मेदार है। राजस्थान के सॉ-स्केल्ड वाइपर सांपों के विष में निम्न आणविक भार के विषैले तत्वों की प्रचुरता पाई गई है। इनमें फॉस्फोलिपेस-ए2 (पीएलए2) और सिस्टीन की प्रचुरता से युक्त स्त्रावी प्रोटीन (क्रिस्प) जैसे विषैले तत्व शामिल हैं, जो सर्पदंश के स्थान पर सूजन के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।

    सांप का जहर कई विषैले तत्वों से मिलकर बना होता है

    इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने विभिन्न स्थानों से एकत्रित सॉ-स्केल्ड वाइपर के विष की संरचना को स्पष्ट किया है, ताकि प्रोटीओम स्तर पर इसकी भिन्नता को समझा जा सके, और पता लगाया जा सके कि इससे सर्पदंश के लक्षण कैसे बदल सकते हैं। सांप का जहर कई विषैले तत्वों से मिलकर बना होता है, जो उसके शिकार को निष्क्रिय करने में मददगार होते हैं। शोधकर्ताओं ने इस संयोजन में शामिल विभिन्न प्रोटींस की पहचान के लिए विष-प्रोटीन को विशिष्ट तकनीकों की मदद से एक सरल मिश्रण में विभाजित किया है। अध्ययन में, इन प्रोटींस को विभिन्न खंडों में विभाजित करने के साथ-साथ प्रत्येक विषैले तत्व की प्रचुरता का आकलन भी किया गया है।

    सभी विष नमूनों में मेटालोप्रोटीनेज और सेरीन प्रोटीज के कई आइसोफॉर्म पाए गए

    डिस्इंटेग्रिन परिवार के विषैले तत्व, जो कोशिकाओं के बीच संपर्क को विखंडित कर सकते हैं, सिर्फ तमिलनाडु के सांपों के जहर में पाए गए हैं। सभी विष नमूनों में, मेटालोप्रोटीनेज और सेरीन प्रोटीज के कई आइसोफॉर्म पाए गए हैं, जिसके बारे में माना जा रहा है कि यह रक्त के थक्के बनाने के लिए जिम्मेदार तंत्र में शामिल लक्ष्यों की एक किस्म हो सकती है। डिस्इंटेग्रिन, वाइपर सांपों के विष में पाए जाने वाले प्रोटीन का एक परिवार है, जो प्लेटलेट एकत्रीकरण और इंटेग्रिन प्रोटीन पर निर्भर कोशिकाओं को बंधने से रोकने में अवरोधक के रूप में कार्य करता है। वहीं, मेटालोप्रोटीनेज या मेटालोप्रोटीज, प्रोटीज एंजाइम हैं। इसी तरह, सेरीन एक अमीनो एसिड है, जो प्रोटीन के जैव-संश्लेषण में भूमिका निभाता है।

    तमिलनाडु में विषरोधी दवाएं बनाने के लिए सांपों का विष प्राप्त किया जाता है 

    इस तंत्र को समझाने के लिए शोधकर्ता तमिलनाडु की इरुला कोऑपरेटिव सोसाइटी का उदाहरण देते हैं, जहां विषरोधी दवाएं बनाने के लिए सांपों का विष प्राप्त किया जाता है। वे कहते हैं कि तमिलनाडु में प्राप्त विष पर आधारित विषरोधी दवाओं का उपयोग अन्य स्थानों के पीड़ितों पर किए जाने से इसके असर में अंतर देखने को मिल सकता है।

    भारत में हर साल सर्पदंश की 12-14 लाख घटनाएं होती हैं

    भारत में हर साल सर्पदंश की 12-14 लाख घटनाएं होती हैं, जिनमें करीब 58 हजार लोगों की मौत होने का अनुमान लगाया गया है।

    विश्व में सांपों की सबसे विषैली प्रजातियों में सॉ-स्केल्ड वाइपर को खतरनाक जहर के लिए जाना जाता है

    दुनियाभर में पाई जाने वाली सांपों की सबसे विषैली प्रजातियों में सॉ-स्केल्ड वाइपर को उसके खतरनाक जहर के लिए जाना जाता है। यह अध्ययन शोध पत्रिका टॉक्सिकोन एक्स में प्रकाशित किया गया है।