छोटे परमाणु रिएक्टरों की राह अभी भी रहेगी मुश्किल, उच्च लागत बन रही बड़ी अड़चन
छोटे परमाणु रिएक्टरों को लेकर अभी भी कई चुनौतियां बरकरार हैं। इनकी उच्च लागत एक बड़ी बाधा बन रही है, जिससे इनके विकास और उपयोग में मुश्किलें आ रही हैं ...और पढ़ें

छोटे परमाणु रिएक्टर। (रॉयटर्स)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: बुधवार को लोकसभा से पारित सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (शांति) बिल, 2025 में भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की इच्छुक विदेशी कंपनियों की एक बड़ी मांग को स्वीकार करने का प्रावधान है लेकिन अभी भी विशेषज्ञ इस बात से संतुष्ट नहीं है कि इससे भारत में बड़ी मात्रा में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाये जा सकेंगे।
वजह यह है कि भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की लागत अभी भी दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले या भारत में ही अन्य ऊर्जा स्त्रोतों के मुकाबले कई गुणा ज्यादा है। भारत ने कई देशों की सरकारों के साथ छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर (एसएमआर) स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर विमर्श शुरू किया है लेकिन इन देशों ने यहां इस सेक्टर की उच्च लागत और काफी ज्यादा समय लगने को एक बड़ी बाधा के तौर पर चिन्हित किया है। यह एक वजह है कि किसी देश के साथ अभी तक कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है।
इक्रा रेटिंग एजेंसी के वाइस-प्रेसिडेंट अंकित जैन का कहना है कि, “निश्चित तौर पर इस विधेयक ने ऑपरेटरों की दायित्व सीमा को लेकर निजी क्षेत्र की मुख्य आशंका को दूर करने की कोशिश की है, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं, जैसे अत्यधिक उच्च पूंजीगत लागत, लंबी परियोजना अवधि और कुछ अन्य समस्याएं। साथ ही निजी कंपनियों के पास इस क्षेत्र में परिचालन का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है।''
दरअसल, एक मेगावाट क्षमता का परमाणु ऊर्जा संयत्र लगाने में भारत में 18-20 करोड़ रुपये की लागत आती है जबकि सौर ऊर्जा संयंत्र में यह लागत अधिकतम पांच करोड़ रुपये और ताप बिजली संयत्रों के लिए 8-9 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व में जब अमेरिका और फ्रांस की कंपनियों के साथ उनकी भारतीय योजना के बारे में बातचीत हुई है तो इस मुद्दे को बहुत ही प्रमुखता से विदेशी कंपनियों ने उठाया है।
फरवरी 2025 में भारत और फ्रांस ने एसएमआर तथा एडवांस्ड मॉड्यूलर रिएक्टरों (एएमआर) पर साझेदारी के लिए घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए। अमेरिका के साथ भी पुराने सिविल न्यूक्लियर समझौते के तहत एसएमआर पर चर्चा चल रही है, जबकि ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते में भारतीय छोटे रिएक्टरों के निर्यात की संभावनाएं खुली हैं।
लागत एक कारण है कि किसी देश के साथ परमाणु ऊर्जा सहयोग की बातचीत बहुत आगे नहीं बढ़ पाई है। लागत बढ़ने का कारण जमीन अधिग्रहण की भारी लागत और दूर-दराज के इलाकों में इनकी स्थापना को बताया जा रहा है। दुनिया में एसएमआर तकनीक के मामले में अमेरिका (नूस्केल जैसे डिजाइन), रूस (रोसाटॉम), चीन (लिंगलॉन्ग वन), ब्रिटेन (रॉल्स-रॉयस), कनाडा और फ्रांस अग्रणी हैं। इन देशों में कई एसएमआर प्रोजेक्ट डेवलपमेंट या डिप्लॉयमेंट स्टेज में हैं।
भारत में कम लागत वाली 'भारत स्मॉल रिएक्टर' (बीएसआर) को विकसित करने पर काम चल रहा है। वर्तमान में देश में परमाणु ऊर्जा की स्थापित क्षमता लगभग 8,800 मेगावाट है, जिसमें 25 रिएक्टर विभिन्न संयंत्रों में कार्यरत हैं। सरकार ने 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 1 लाख मेगावाट (100 गीगावाट) तक पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
अल्पकालिक लक्ष्य के तहत 2032 तक क्षमता को 22,000 मेगावाट तक बढ़ाने पर जोर है। इसके लिए बजट 2025-26 में न्यूक्लियर एनर्जी मिशन शुरू किया गया और छोटे रिएक्टरों के विकास के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।

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