लघु एवं मध्यम उद्यमों का भारत की आर्थिकी में है व्यापक योगदान जिसे मिल रहा पर्याप्त प्रोत्साहन
भारत के सामान्य जन अवधारणा में औद्योगिक विकास एवं शहरीकरण को एक दूसरे के पर्यायवाची जैसा मान लिया गया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद देश के प्रथ ...और पढ़ें

शिवेश प्रताप। वर्तमान सदी का एक वास्तविक तथ्य है कि बिना औद्योगिक विकास के कोई देश आगे नहीं बढ़ सकता है। परंतु इसका ढांचा और प्रारूप कैसा हो, ताकि विकास समग्रता में और सतत रूप में हो, इस बारे में मतभिन्नता रही है। गांधीजी का स्वप्न एक ऐसे विकेंद्रीकृत आर्थिक ढांचे का था जिसमें गांवों को एक आत्मनिर्भर उद्यम के रूप में विकसित किया जाना था। उन्होंने कुटीर उद्योगों एवं घरेलू निर्माण उद्यमों को बल देने की बात कही थी।
देश के आर्थिक विकास की नींव
वर्तमान में इन्हीं ग्रामीण इकाइयों को हम सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के रूप में जानते हैं। ये सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम भारत की अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक क्रांति का मेरुदंड बने रहे हैं। नेशनल सैंपल सर्वे के डाटा के अनुसार देशभर में कुल 6.33 करोड़ सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम हैं। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि देश की 93 प्रतिशत एमएसएमई उद्यम सूक्ष्म उद्योगों की श्रेणी में आते हैं। इनमें सबसे अधिक उद्यम उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में कार्यरत हैं। यह दोनों प्रदेश अकेले ही ऐसे 28 प्रतिशत उद्यमों का प्रतिनिधित्व करते हैं। थोड़ा पीछे चलें तो भारत देश को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बुरी तरह से लूटकर कंगाल बनाए जाने के बाद जब हमें स्वतंत्रता मिली तो इस देश की खस्ताहाल आर्थिक स्थितियों में किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि एक दिन यही भारत आगे चलकर आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरेगा। कुछ ही गिने-चुने उद्योगपतियों के अलावा समाज के साथ-साथ सरकारों के पास भी इतनी आर्थिक संपन्नता नहीं थी कि वे बड़े उद्योग स्थापित कर सकें। ऐसे में देश के आर्थिक विकास की नींव गांवों में फैले हुए सूक्ष्म उद्योगों द्वारा डाली गई।
वह ऐसा समय था जब बैंकिंग व्यवस्था तथा आर्थिक बाजारों का उदय देश में नहीं हुआ था। विदेशी निवेशकों पर नियंत्रण था। ये सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग बड़े उद्योगों के लिए भी एक जीवन रेखा का कार्य करते हैं। साथ ही इनके साधारण एवं आधारभूत संरचना के कारण बाजार को इनके उत्पादों के रूप में अपेक्षाकृत अच्छी गुणवत्ता का सामान बहुत ही प्रतिस्पर्धी मूल्य पर प्राप्त होता है जिसका सीधा सा अर्थ है कि बड़े उद्योगों द्वारा बनाए जाने वाले सामानों के मूल्य को कम रखने के पीछे भी इन छोटे उद्योगों का महत्वपूर्ण हाथ है। साथ ही भारत सरकार के द्वारा कई लाभों को सुनिश्चित करने तथा कर्ज लेने के उदारवादी नियमों के कारण बड़े उद्योगों को इनसे बहुत अच्छा सहयोग मिल रहा है। यह एमएसएमई उद्योग देश के विकास में सबसे उत्कृष्ट योगदान दे रहे हैं, चाहे अर्थव्यवस्था की मजबूती की बात हो, रोजगार पैदा करने, निर्यात द्वारा लाभ कमाने या फिर सकल घरेलू उत्पाद के विकास बात की हो।
सामाजिक-आर्थिक न्याय में अहम किरदार
सामाजिक आर्थिक न्याय को देश में सुनिश्चित करने के मामले में एमएसएमई का योगदान सर्वश्रेष्ठ है। यह सेक्टर भारत के विकास की रीढ़ है। भारत के संपूर्ण सकल घरेलू उत्पाद में एमएसएमई क्षेत्र का योगदान 37.5 प्रतिशत है। देशभर में फैले हुए गुमनाम एमएसएमई उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में 1.3 लाख करोड़ डालर का योगदान करते हैं। ग्रामीण विकास में इनका योगदान इस प्रकार से समझा जा सकता है कि 6.33 करोड़ उद्यमों में से 51 प्रतिशत भारत के ग्रामीण इलाकों में फैले हैं। शेष छोटी इकाइयां भी छोटे-छोटे शहरों में स्थापित हैं एवं उन शहरों के आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका का निर्वहन करते हैं।
भारत की वर्तमान जनसंख्या का लगभग दो तिहाई हिस्सा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। इससे आप यह समझ सकते हैं कि एमएसएमई उद्योग किस प्रकार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। क्षेत्र विशेष में फैले हुए छोटे उद्योग अपनी परंपरागत क्षेत्रीय विभिन्नता को समेटे हुए देश भर में लगभग समान आर्थिक विकास सुनिश्चित करते हैं। इन सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों का योगदान केवल आर्थिक स्तर पर ही नहीं है, अपितु सामाजिक न्याय एवं समाज के निचले स्तर के लोगों को सशक्त करने में क्रांतिकारी योगदान दिया है। महिला सशक्तीकरण की कितनी भी बड़ी बातें बड़े कारपोरेट करें, परंतु महिलाओं के लिए वास्तव में कोई परिवर्तन आया है तो वह इन्हीं सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों द्वारा संभव हुआ है। देश भर में फैले हुए करोड़ों सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों में 20 प्रतिशत इकाइयों का स्वामित्व महिलाओं के पास है, जबकि भारत के बड़े कारपोरेट्स में महिलाओं का स्वामित्व केवल 11 प्रतिशत है। रोजगार की समस्या का संकट मोचक : यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखा जाए तो भारत दशकों से रोजगार न उत्पन्न कर पाने की समस्या से पीड़ित है। कोविड के बाद संसार के बड़े-बड़े देशों की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर संकेत कर रही है। ऐसे विपरीत समय में भी देश के भीतर एमएसएमई उद्योग रोजगार पैदा करने के मामले में सर्वश्रेष्ठ रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश के एमएसएमई सेक्टर द्वारा 11.1 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है।
निर्यात में 50 प्रतिशत का योगदान
भारत जब कच्चे तेल के आयात में अपने विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी देख रहा है, ऐसे समय में निर्यात को शक्ति प्रदान करने वाले एमएसएमई सेक्टर द्वारा निर्यात के क्रम को निरंतर जारी रखने के दौरान हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को एक शक्ति मिलती रही है। डायरेक्टरेट जनरल आफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स के अनुसार भारत के कुल निर्यात का 50 प्रतिशत यानी आधा हिस्सा अकेले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों के द्वारा होता है। आज केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा उठाए गए क्रांतिकारी कदम ‘मेक इन इंडिया’ का मूल उद्देश्य है विनिर्माण के जरिए भारतीय आर्थिक सुधारों के एक नए युग का सूत्रपात करना। इसके द्वारा आनुपातिक आर्थिक प्रगति के साथ-साथ रोजगार के बेहतर अवसरों को सुनिश्चित करना भी सरकार का मूलभूत लक्ष्य है।
सरकार जब मेक इन इंडिया की सफलता के लिए उद्योगों को देखती है तो भी उसे इन्हीं सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों में संभावनाएं दिखाई देती है, क्योंकि भारत के कुल रजिस्टर्ड एमएसएमई उद्यमों में 38 प्रतिशत इन्हीं निर्माण क्षेत्रों की इकाइयां हैं। साथ ही एमएसएमई में कार्य करने वाले कुल रोजगार का 32 प्रतिशत इन्हीं विनिर्माण क्षेत्रों में लगा हुआ है। उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि एमएसएमई इकाइयों का संवर्धन करके वर्तमान सरकार कई लक्ष्यों की पूर्ति एक साथ कर सकती है। कांग्रेस सरकार द्वारा एमएसएमई मंत्रालय बनाया गया ताकि जीडीपी में एक तिहाई योगदान देने वाले इस क्षेत्र के लिए बेहतर नीतियां बनाई जा सकें। परंतु इस क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुआ वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद। वर्ष 2020 में उद्यम पंजीकरण पोर्टल का प्रारंभ किया गया ताकि कंपनियों के आनलाइन पंजीकरण को सुनिश्चित किया जा सके।
[तकनीकी-प्रबंध सलाहकार]

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