300 फाइलों में संतोष वर्मा की पदोन्नति मामले में फर्जी फैसला तलाश रही SIT, 4 साल बाद भी हाथ खाली
ब्राह्मण बेटियों को लेकर असभ्य टिप्पणी करने वाले पदोन्नत आइएएस अधिकारी संतोष वर्मा के लिए फर्जी अदालती निर्णय बनाने की जांच में जुटी एसआइटी ने निलंबित ...और पढ़ें

निलंबित स्पेशल जज की 300 फाइलों में संतोष वर्मा का फर्जी फैसला तलाश रही एसआइटी (फाइल फोटो)
जेएनएन, इंदौर। ब्राह्मण बेटियों को लेकर असभ्य टिप्पणी करने वाले पदोन्नत आइएएस अधिकारी संतोष वर्मा के लिए फर्जी अदालती निर्णय बनाने की जांच में जुटी एसआइटी ने निलंबित स्पेशल जज विजेंद्र रावत की कोर्ट की 300 से ज्यादा फाइलें जब्त की हैं। इनमें फर्जी फैसले की मूल प्रति की तलाश की जाएगी।
दरअसल, एसआइटी के पास सत्यापित छाया प्रति तो है, लेकिन मूल प्रति नहीं है। जब्त की गईं फाइलों में विजेंद्र वर्मा द्वारा किए गए हस्ताक्षर की जांच की जा रही है। इस बीच, एसआइटी ने रावत की कोर्ट से जब्त कंप्यूटर से फैसले की प्रति रिकवर कर ली है।
रावत की कोर्ट में कार्यरत रहे टाइपिस्ट नीतू सिंह चौहान के शिक्षक नगर स्थित घर पर गुरुवार रात पुलिस ने छापा मारकर कंप्यूटर व पेन ड्राइव की तलाश की। पेन ड्राइव में भी फैसले की प्रति मिल गई है। टावर लोकेशन से सुबह चार से सात बजे के बीच फैसला टाइप होने की पुष्टि हुई है।
जांच में शामिल एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, जज रावत ने इस फैसले पर जानबूझकर अन्य फैसलों से भिन्न हस्ताक्षर किए हैं। इसे बकायदा आवक-जावक शाखा भेजा गया और संतोष वर्मा को सत्यापित प्रति भी दिलवाई गई, ताकि वह राज्य सेवा से आइएएस में पदोन्नति के लिए उसका प्रयोग कर सके।
बता दें कि इंदौर के एमजी रोड थाने में दर्ज इस प्रकरण में निलंबित स्पेशल जज विजेंद्र रावत और आइएएस अधिकारी संतोष वर्मा को जमानत मिल चुकी है। रावत की कोर्ट में कार्यरत रहा टाइपिस्ट नीतू ¨सह चौहान पुलिस रिमांड पर है। विजेंद्र रावत और संतोष वर्मा को भी नोटिस जारी कर पूछा गया है।
शुक्रवार को नीतू के वकीलों ने रिमांड अवधि में ही जमानत अर्जी लगा दी। दिनभर चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने जमानत देने से इन्कार कर दिया। वहीं, जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, कई अन्य कर्मचारी भी जांच की जद में आते जा रहे हैं।
एसआइटी ने नीतू से कोर्ट प्रक्रिया के संबंध में पूछा तो आवक-जावक और नकल शाखा के कर्मचारियों के नाम सामने आए। बता दें कि जज रावत और वर्मा ने साजिश के तहत दो फैसले तैयार किए। पहला फैसला समझौता के आधार पर प्रकरण समाप्त करने का था। डीपीसी द्वारा उस फैसले को मान्य न करने पर बरी होने का फैसला बनाया गया।

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