'प्रक्रियागत पहलुओं को ज्यादा नहीं देखा जा सकता...' SIR की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी
सुप्रीम कोर्ट में 'SIR' की वैधानिकता पर बहस जारी है, जिसमें प्रक्रियागत पहलुओं पर विचार किया जा रहा है। अदालत इस मामले की गहराई से जांच कर रही है और व ...और पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। याचिकाकर्तओं ने गुरुवार को देश में चल रही मतदाता सूची सघन पुनरीक्षण (एसआइआर) प्रक्रिया की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि शक के आधार पर मतदाता सूची से नाम हटाना, नागरिकता निलंबति करने के समान है। ये दलीलें तमिलनाडु सीपीआइ (एम) के राज्य सचिव पी.शनमुगम की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने दीं।
इन दलीलों पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि एसआइआर में प्रक्रियागत पहलुओं को ज्यादा नहीं देखा जा सकता। अगर वो हर साल मतदाता सूची को कॉपी पेस्ट करना शुरू कर दें तब क्या होगा? हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि वह कोई निष्कर्ष नहीं निकाल रहे, बस पूछ रहे हैं। मामले में 16 दिसंबर को फिर सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ आजकल एसआइआर की वैधानिकता पर सुनवाई कर रही है। तमिलनाडु सीपीआइ (एम) के राज्य सचिव पी. शनमुगम की ओर से वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि चुनाव आयोग का मुख्य संवैधानिक उद्देश्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार सुनिश्चित करना है। यानी संविधान के मुताबिक चुनाव आयोग का काम सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को सुविधाजनक बनाना है।
अब देखना होगा कि चुनाव आयोग अपनी भूमिका को कैसे देखता है क्योंकि उसी के अनुसार वह काम करेगा। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के लिए मतदान के तीन न प्रमुख योग्यता कारक हैं। उम्र, निवास और नागरिकता। तीनों का समान महत्व है यदि ये शर्तें पूरी होती हैं तो चुनाव आयोग का काम है उन लोगों को वोट देने में सक्षम बनाना जो इन शर्तों को पूरा करते हैं।
राजू रामचंद्रन ने कहा कि यहां उद्देश्य गैर- नागरिकों को हटाना नहीं है। लेकिन शक की भावना से काम शुरू करना मुद्दा है। इसका नतीजा क्या होगा। उन्होंने कहा कि शक के आधार पर मतदाता सूची से नाम हटाना नागरिकता निलंबित करने की शक्ति देने जैसा है। लेकिन पीठ ने इन दलीलों पर कहा कि एसआइआर को प्रक्रियागत पहलुओं पर बहुत ज्यादा नहीं देखा जा सकता। यह बात दिमाग में रखनी होगी कि वे 20 साल बाद ये काम कर रहे हैं।
एसआइआर वार्षिक कार्यक्रम नहीं हो सकता। अगर वो साल दर साल मतदाता सूची को कापी पेस्ट करना शुरू कर दें तब क्या होगा। पीठ ने स्पष्ट करते हुए कहा कि वह कोई निष्कर्ष नहीं निकाल रहे बस पूछ रहे हैं। रामचंद्रन ने धारा 21(3) का हवाला देते हुए कहा कि यह कहती है कि कारण दर्ज करने होंगे।

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