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    ...तो यह है प्लास्टिक पर प्रतिबंध के सफल न हो पाने का सबसे बड़ा कारण

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 04 Jul 2022 12:31 PM (IST)

    Single-Use Plastic Ban सिंथेटिक या नेचुरल आर्गेनिक तत्वों का ऐसा समूह जो नचीले गुण के साथ सख्त होने की भी खूबी रखता सामान्य रूप से प्लास्टिक कहलाता है। रसायन शास्त्र के अनुसार प्लास्टिक बड़े अणु होते हैं जिन्हें पालीमर कहा जाता है।

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    Single-Use Plastic Ban: अब प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर जैविक पदार्थों से बने उत्पादों का इस्तेमाल हो रहा है।

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। Plastic Ban देश में पतले पालीथीन बैग पर प्रतिबंध का पहला कदम 1999 में उठाया गया था। तब से इन 23 वर्षों में केंद्र एवं राज्यों के स्तर पर कई प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई। अब सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाया गया है। यह कदम भी पहले की तरह निष्प्रभावी न हो, इसके लिए पड़ताल जरूरी है।

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    आदत बदलने की आवश्यकता: प्लास्टिक का विकल्प तलाशने के साथ ही लोगों को सिंगल यूज प्लास्टिक वाली आदत से बाहर आने की आवश्यकता है। किसी उत्पाद को यथासंभव ज्यादा से ज्यादा बार प्रयोग करना पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से प्रभावी कदम है। सिंगल यूज प्लास्टिक के बदले सिंगल यूज विकल्पों को ही बढ़ावा देने से समस्या का स्थायी हल नहीं निकल सकता है।

    तो इसलिए होती है मुश्किल

    • प्लास्टिक पर प्रतिबंध के सफल न हो पाने का सबसे बड़ा कारण है विकल्प की कमी। एसयूपी के विकल्प में लोगों को ऐसा ही सुगम और सस्ता विकल्प भी मिलना चाहिए।
    • कुल प्लास्टिक का करीब तिहाई हिस्सा एसयूपी है। सालाना करीब 70 लाख टन एसयूपी की खपत है। इतनी मात्रा में एसयूपी को हटाते हुए लोगों को दूसरे माध्यमों की ओर ले जाना आसान नहीं है।
    • एसयूपी के उत्पादन में कई उद्योग और हजारों कर्मचारी लगे हैं। उनके कारोबार को अवैध करार देते समय वैकल्पिक आजीविका के बारे में भी विचार करना आवश्यक है।
    • विकल्प और वैकल्पिक आजीविका न होने के कारण ही बाजार प्रतिबंध के लिए तैयार नहीं हो पा रहा है। यही इस प्रयास के विफल होने का कारण बन जाता है।

    लाइफ साइकिल एनालिसिस पर विचार जरूरी: एसयूपी को प्रतिबंधित करने और उनके विकल्प के बारे में निर्णय लेते समय लाइफ साइकिल एनालिसिस (एलसीए) की भूमिका अहम है।

    एलसीए से यह पता चलता है कि किसी उत्पाद के प्रयोग से पर्यावरण पर कितना प्रभाव पड़ा। इससे मिलने वाले कुछ निष्कर्षों पर नजर:

    • पालीथीन बैग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए सिंगल यूज पेपर र्शांपग बैग को चार से आठ बार प्रयोग करना होगा।
    • प्रयोग के बाद फेंक दिया जाने वाला कुल्हड़ रोजाना लाखों एसयूपी कप का विकल्प नहीं बन सकते हैं। इनका प्रयोग मृदा की ऊपरी परत को खराब कर देगी।
    • बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के प्रयोग से माइक्रो प्लास्टिक की समस्या का समाधान नहीं निकल सकता है।

    परदेस में पहल

    कड़े कानूनों और अपने नागरिकों को जागरूक करके दुनिया के कई देशों में प्लास्टिक रूपी भस्मासुर से निजात पाई जा रही है।

    फ्रांस : 2016 में प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का कानून बनाया। चरणबद्ध तरीके से प्लास्टिक की प्लेटें, कप और सभी तरह के बर्तनों को 2020 तक पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया। फ्रांस पहला देश है जिसने प्लास्टिक से बने रोजमर्रा की जरूरत के सभी उत्पादों पर पूरी तरह रोक लगाई। अब प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर जैविक पदार्थों से बने उत्पादों का इस्तेमाल हो रहा है।

    आयरलैंड : देश ने 2002 में प्लास्टिक बैग टैक्स लागू किया जिसके तहत लोगों को प्लास्टिक बैग इस्तेमाल करने पर ज्यादा टैक्स देना पड़ा। लिहाजा कुछ दिन बाद ही वहां प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल में 94 फीसद कमी आ गई।

    रवांडा : अन्य विकासशील देशों की तरह यहां भी प्लास्टिक की थैलियों ने जल निकासी के रास्ते अवरुद्ध कर दिए थे जिससे यहां के इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचने लगा था। इस विकट स्थिति से निपटने के लिए यहां की सरकार ने देश से प्राकृतिक रूप से सड़नशील न होने वाले सभी उत्पादों को प्रतिबंधित कर दिया। यह अफ्रीकी देश 2008 से प्लास्टिक मुक्त है।

    स्वीडन : यहां प्लास्टिक बैन नहीं किया गया है बल्कि प्लास्टिक को अधिक से अधिक रिसाइकिल किया जाता है। यहां हर तरीके के कचरे को रिसाइकिल करके बिजली बनाई जाती है। इसके लिए यह पड़ोसी देशों से कचरा खरीदता है।

    रक्तबीज रसायन

    पालीमर को दो खास समूहों में बांटा जाता है। पहले को थर्मोप्लास्टिक कहते हैं जिन्हें मोड़ा जा सकता है। दूसरे समूह को थर्मोसेट्स कहते हैं। इसे मोड़ा नहीं जा सकता है। पहली बार मानव निर्मित प्लास्टिक को इंग्लैंड के आविष्कारक और धातु विशेषज्ञ अलेक्जेंडर पाक्र्स ने तैयार किया था। ये पीतल के ताले बनाने वाले के बेटे थे। पहली बार तैयार पाक्र्साइन नामक प्लास्टिक को 1862 में लंदन में दिखाया गया।