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    आनंदपुर साहिब में होला महल्ला का रंगीला आगाज जांबाजों की होली...

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 01 Mar 2018 11:05 AM (IST)

    सिखों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब मे होली पर लगने वाले मेले को होला महल्ला कहते हैं। यहां पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है।

    आनंदपुर साहिब में होला महल्ला का रंगीला आगाज जांबाजों की होली...

    आनंदपुर साहिब (अजय अग्निहोत्री)। यहां होली का अंदाज जुदा है। इसे जांबाजों की होली कहते हैं। इसमें वीरता और पौरुष का चटख रंग मिला होता है। जो रग-रग में उत्साह भर देता है। जांबाजी और श्रद्धा का ऐसा रंग जो तन-मन को सराबोर कर दे। सिखों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब मे होली पर लगने वाले मेले को होला महल्ला कहते हैं। यहां पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है।

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    आनंदपुर साहिब में निर्मल अखाड़ा के संतों के अलौकिक नगर कीर्तन के साथ बुधवार को होला महल्ला का आगाज हुआ। कीर्तन में करीब बीस हजार लोग शामिल हुए। उत्सव में शामिल होने के लिए पंजाब के रूपनगर जिले में स्थित आनंदपुर साहिब में करीब 35 लाख लोगों के जुटने का अनुमान है।

    दंग कर देने वाले अनोखे रंग...

    इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त हो घोड़ों पर सवार जांबाज (निहंग), हाथ में निशान साहब उठाए और तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का हैरतअंगेज प्रदर्शन करते हैं। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल... के नारे बुलंद करते हैं।

    गुरु ने की थी शुरुआत...

    सिखों के दसवें गुरुगोबिंद सिंह जी ने होली उत्सव को होला महल्ला नाम दिया था। वह इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग को मुख्यधारा में लाना चाहते थे।

    प्रभु के संग होली...

    अमृतसर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल ने बताया कि राष्ट्रीय पर्व होला महल्ला खालसा पंथ की चढ़दी कला का प्रतीक है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस त्योहार को परमात्मा के प्रेम रंग में सराबोर कर अधिक आनंददायी स्वरूप दिया।

    श्री गुरुग्रंथ साहब में होली का उल्लेख करते हुए प्रभु के संग रंग खेलने की कल्पना की गई है। लौंगोवाल ने बताया कि होला महल्ला मनाने लाखों की संख्या में श्रद्धालु आनंदपुर साहिब पहुंच रहे हैं।

    विशेष है अर्थ...

    होला शब्द होली की सकारात्मकता का प्रतीक था और महल्ला का अर्थ उसे प्राप्त करने का पराक्रम। रंगों के त्योहार के आनंद को मुखर करने के लिए गुरु जी ने इसमें व्याप्त हो गई कई बुराइयों जैसे कीचड़ फेंकने, पानी डालने, मद्यपान आदि का निषेध किया।

    उड़ रहे रंग...

    छह दिवसीय आयोजन की पारंपरिक शुरुआत कीरतपुर साहिब से 25 फरवरी को हुई, जबकि 28 फरवरी से दो मार्च तक श्री आनंदपुर साहिब में मुख्य आयोजन पूरे होंगे। यहां सुबह विशेष दीवान में गुरुवाणी के गायन से इसकी शुरुआत हुई। दोपहर बाद गुलाब के फूलों, गुलाब से बने रंगों की होली के बीच खेल और पराक्रम के आयोजन हुए।