सियाचिन का वो शूरवीर जिसने -30 डिग्री पर ऐसे पाकिस्तानी सेना को चटाई थी धूल
सियाचिन मोर्चे के हीरो कैप्टन बाना सिंह का जन्मदिन आज। पढ़िए, बाना सिंह की शौर्यगाथा, इस तरह पाकिस्तान के कब्जे से फतह की कायद चौकी।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनिया का सबसे ऊंचा रण क्षेत्र...तापमान शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे...जहां पानी के लिए भी बर्फ को पिघलाना पड़ता है। जहां अगर खुले हाथ किसी राइफल के ट्रिगर को छू लिया जाए, तो महज 15 सेकेंड में हाथ हमेशा के लिए सुन्न हो सकता है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में जहां हम और आप जैसे लोग पांच मिनट भी नहीं टिक सकते, वहां हमारे सैनिक 365 दिन अदभ्य साहस का परिचय दे रहे हैं। बर्फीले तूफान में यहां कोई कब, कौन और कैसे दफन हो जाए, यह कोई नहीं जानता। इन सब की परवाह किए बगैर हमारे सैनिक ऐसे अदभ्य साहस का परिचय दे रहा हैं, जिनका जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने 'कैप्टन बाना सिंह' हैं। जब भी सियाचिन मोर्चे का जिक्र होता है, परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह का नाम सबसे पहले सुनाई पड़ता है।
बाना सिंह की बहादुर गाथा
पाकिस्तानी सेना के साथ भारतीय सेना की चार मुलाकातें युद्धभूमि में तो हुईं ही हैं, कुछ और भी मोर्चे हैं, जहां हिन्दुस्तान के बहादुरों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर कर रख दिया। सियाचिन का मोर्चा भी इसी तरह का एक मोर्चा है, जिसमें जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के आठवें दस्ते के नायब सूबेदार बाना सिंह को उनकी चतुराई, पराक्रम और साहस के लिए भारत सरकार द्वारा परमवीर चक्र दिया गया। बाना सिंह को सम्मान देने व उनकी वीरता को याद रखने के लिए सियाचिन में जिस चौकी को बाना सिंह द्वारा फतह किया गया था, उसका नाम 'बाना पोस्ट' रख दिया गया। उनकी इस बहादुरी के लिए बाना सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
बाना सिंह का जन्म
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह का जन्म 6 जनवरी, 1949 को जम्मू और कश्मीर के काद्याल गांव में हुआ था। 6 जनवरी, 1969 को उनका सैनिक जीवन जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में शुरू हुआ।
भारत के लिए महत्वपूर्ण है सियाचिन
सियाचिन के बारे में दूर बैठकर केवल कल्पना ही की जा सकती है। समुद्र तट से 21,153 फीट की ऊचांई पर स्थित पर्वत श्रेणी, जहां 40 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बर्फानी हवाएं चलती ही रहती हैं और जहां का अधिकतम तापमान -35° C सेल्सियस होता है, वहां की परिस्थितियों का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 24 घंटे हड्डी को चीर देने वाली ठंडी हवाएं यहां चलती रहती हैं। जहां नहाना तो दूर की बात हैं, यहां खून तक जम जाए। इन सब के बावजूद यह सच है कि यह भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण जगह है।
यहां मिलती हैं भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाएं
दरअसल, 1949 में कराची समझौते के बाद, जब युद्ध विराम रेखा खींची गई थी, तब उसका विस्तार जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में उत्तर की तरफ खोर से लेकर दक्षिण की ओर मनावर तक था। इस तरह यह रेखा उत्तर की तरफ NJ9842 के हिमशैलों (ग्लेशियर्स) की तरफ जाती है। इस क्षेत्र में घास का एक तिनका तक नहीं उगता है, सांस लेना तक सर्द मौसम के कारण बेहद कठिन है। लेकिन कुछ भी हो, यह ठिकाना ऐसा है जहां भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाएं मिलती हैं, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है।
PAK ने बनाई थी कायद चौकी, जिसका मिला माकूल जवाब
वर्ष 1987 में पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सीमा के अंदर अपनी एक चौकी बनाने का आदेश अपनी सेनाओं को दिया था। वह जगह मौसम को देखते हुए, भारत की ओर से भी आरक्षित थी। वहां पर पाकिस्तान सैनिकों ने अपनी चौकी खड़ी की और 'कायद चौकी' का नाम दिया। यह नाम पाकिस्तान के जनक कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर रखा गया था। उस चौकी की संरचना समझना भी बड़ा रोचक है। वह चौकी, ग्लेशियर के ऊपर एक दुर्ग की तरह बनाई गई, जिसके दोनों तरह 1500 फीट ऊंची बर्फ की दीवारें थीं। पाकिस्तान ने अपनी 'कायद' चौकी' बड़ी चुनौती की तरह भारत की सीमा के भीतर बनाई थी, जिसे अतिक्रमण के अलावा कोई और नाम नहीं दिया जा सकता। जाहिर है, भारत के लिए इस घटना की जानकारी पाकर चुप बैठना संभव नहीं था।
आसान नहीं था 'कायद' चौकी तक पहुंचना
भारतीय सेना ने यह प्रस्ताव बनाया कि हमें इस चौकी को वहां से हटाकर उस पर अपना कब्जा कर लेना है। इस प्रस्ताव के जवाब में नायब सूबेदार बाना सिंह ने खुद आगे बढ़कर यह कहा कि वह इस काम को जाकर पूरा करेंगे। वह आठ जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेस्टरी में नायब सूबेदार थे। उन्हें इस बात की इजाज़त दे दी गई। नायब सूबेदार बाना सिंह ने अपने साथ चार साथी और लिए, और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गए। योजना के अनुसार, बटालियन के दूसरे लोग पाकिस्तान दुश्मन के सैनिकों को उलझा कर रखे रहें और उधर, बाना सिंह और उनके साथियों ने उस चौकी तक पहुंचने का काम शुरू कर दिया। 'कायद पोस्ट' की सपाट दीवार पर, जो कि बर्फ की बनीं थी, उस पर चढ़ना बेहद कठिन और जोखिम भरा काम था।
इस तरह तय किया 'कायद' चौकी तक का सफर
इसके पहले भी कई बार इस दीवार पर हिंदुस्तानी सैनिकों ने चढ़ने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। रात का तापमान शून्य से भी तीस डिग्री नीचे गिरा हुआ था। तेज हवाएं चल रही थी। पिछले तीन दिनों से लगातार जबरदस्त बर्फ गिर रही थी। भयंकर सर्दी के कारण बन्दूकें भी ठीक काम नहीं कर रहीं थीं। खैर, अंधेरे का फायदा उठाते हुए बाना सिंह और उनकी टीम आगे बढ़ रही थी। रास्ते में उन्हें उन भारतीय बहादुरों के शव भी पड़े दिख रहे थे, जिन्होंने यहां पहुंचने के रास्ते में प्राण गंवा दिए थे। जैसे-तैसे बाना सिंह अपने साथियों को लेकर ठीक ऊपर तक पहुंचने में कामयाब हो गये। वहां पहुंचकर उन्होंने अपने दल को दो हिस्सें में बांटकर, दो दिशाओं में तैनात कर दिया और फिर 'कायद पोस्ट' पर ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए।
एक तरफ ग्रेनेड ने अपना काम कर दिखाया, दूसरी ओर दूसरे दल के जवानों ने दुश्मन के सैनिकों को, जोकि उस चौकी पर थे, बैनेट से मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। वहां पर पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप के कमांडो तैनात थे, जो अचानक हुए इस हमले में मारे गए और कुछ चौकी छोड़कर भाग निकले। कुछ ही देर में वह चौकी दुश्मनों के हाथ से भारतीय बहादुरों के हाथ में आ गई। मोर्चा फ़तह हुआ। बाना सिंह समेत उनका दल सही सलामत था और 'कायद पोस्ट' पर भारत फलह हासिल कर चुका था।