महाटूट के बाद महाकलह: शिवसेना ने भाजपा को कौआ बताया
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की राजनीति का दौर समाप्त होने के अगले ही दिन से महाकलह की भी शुरुआत हो गई। गठबंधन टूटने की टीस लिए सभी दल एक दूसरे को अलगाव के लिए जिम्मेदार ठहराने में जुट गए। 25 साल पुराना गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने तो संयम रखा लेकिन आक्रामक शिवसेना ने भाजपा को पितृपक्ष का कौआ तक कह डाला।
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की राजनीति का दौर समाप्त होने के अगले ही दिन से महाकलह की भी शुरुआत हो गई। गठबंधन टूटने की टीस लिए सभी दल एक दूसरे को अलगाव के लिए जिम्मेदार ठहराने में जुट गए। 25 साल पुराना गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने तो संयम रखा लेकिन आक्रामक शिवसेना ने भाजपा को पितृपक्ष का कौआ तक कह डाला।
पंद्रह साल पुराना गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस ने तो शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर पिछले कुछ महीनों से भाजपा से मेलजोल रखने तक का आरोप लगा दिया। यह भी कह दिया कि वह 15 अक्टूबर के विधानसभा चुनाव में अकेले उतर कर खुश है। इस बीच राकांपा के समर्थन वापसी के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
उल्लेखनीय है कि भाजपा-शिवसेना कई स्थानीय निकायों से लेकर केंद्रसरकार तक में मिलकर सत्ता चला रहे हैं। गुरुवार को गठबंधन तोड़ने की घोषणा करते समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस ने साफ कर दिया था कि गठबंधन टूटने का अर्थ दुश्मन बन जाना कतई नहीं है। इसलिए भाजपा न तो शिवसेना पर कोई विपरीत टिप्पणी करेगी, न ही उसकी टिप्पणियों का जवाब देगी। लेकिन शिवसेना के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं ने जहां गठबंधन टूटने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और महाराष्ट्र प्रभारी राजीव प्रताप रूड़ी के विरुद्ध नारेबाजी की, वहीं शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में भाजपा को पितृपक्ष का कौवा करार दिया गया। हालांकि, उद्धव ठाकरे एवं उनके पुत्र आदित्य ठाकरे की ओर से संयत प्रतिक्रियाएं आई थीं। शनिवार को होने वाली उद्धव ठाकरे की रैली के बाद हो सकता है इनकी आक्रामकता भी और बढ़ जाए।
मुंबई और ठाणे महानगरपालिकाओं सहित महाराष्ट्र के कई और स्थानीय निकायों में दोनों गठबंधन करके ही सत्ता में हैं। स्थानीय निकायों में चुनाव से पहले गठबंधन करनेवाले दलों को नगरविकास विभाग में हलफनामा देना पड़ता है कि वे अगले पांच साल तक साथ रहेंगे। इस कारण दोनों दलों का स्थानीय निकायों से अलग होना फिलहाल संभव नहीं है। केंद्रसरकार से भी संभवत: शिवसेना अलग नहीं होगी। शिवसेना सूत्रों के अनुसार, चूंकि दोनों दल साथ मिलकर चुनाव लड़े हैं, इसलिए जनमत का सम्मान करते हुए पार्टी राजग गठबंधन का हिस्सा बनी रहेगी। यदि किसी कारणवश उसके एकमात्र मंत्री अनंत गीते से इस्तीफा दिलवाने की नौबत आई तो भी शिवसेना सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं लेगी।
यह पहला अवसर नहीं है, जब सीट समझौता टूटने पर शिवसेना-भाजपा अलग हुई हों। 1992 के मुंबई महानगरपालिका चुनाव में भी दोनों अलग हो चुके हैं। तब एक-दूसरे पर प्रहार की मर्यादाओं का खयाल रखकर ही 1995 के विधानसभा चुनाव में दोनों दल पुन: साथ आ सके थे। संभवत: इसीलिए भाजपा संयमित व्यवहार करना चाहती है। यदि भाजपा ने उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ पेंगे मारने की कोशिश की तो शिवसेना की आक्रामकता और बढ़ सकती है।
इस बीच, राकांपा के समर्थन वापसी से अल्पमत में आई कांग्रेस के नेतृत्ववाली महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री चह्वाण ने शुक्रवार की शाम को राजभवन जाकर राज्यपाल विद्यासागर राव को अपना इस्तीफा सौंप दिया। अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि उन्हें चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहने को कहा गया है या कुछ समय के लिए महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू होगा।
ज्ञातव्य है कि राकांपा राज्य विधानसभा की 288 सीटों में से 144 सीटें कांग्रेस से मांग रही थी और मुख्यमंत्री पद भी ढाई-ढाई साल रखने के लिए कह रही थी जिस पर बात नहीं बनी और 15 साल पुराना गठबंधन टूट गया। शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूटने के कारण पर महाराष्ट्र भाजपा के प्रभारी महासचिव राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि संभवत: उनके दिमाग में मुख्यमंत्री वाली बात थी इसलिए उन्होंने जिस फार्मूला का हमें प्रस्ताव दिया इसमें हमारे साथ जुड़े छोटे दलों का पूरा सफाया हो रहा था।
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