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    Sharad Govindrao Pawar: राजनीति के रणक्षेत्र से क्रिकेट के मैदान तक, कौशल से बने किंगमेकर... शरद पवार

    By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya
    Updated: Wed, 03 May 2023 05:30 AM (IST)

    शरद पवार का क्रिकेट से भी करीबी रिश्ता रहा है। उनकी पत्नी प्रतिभा पूर्व टेस्ट क्रिकेटर सदाशिव शिंदे की पुत्री हैं। पवार 2005 से 2008 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के अध्यक्ष और वर्ष 2010 से 2012 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) के अध्यक्ष रहे।

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    Sharad Govindrao Pawar: राजनीति के रणक्षेत्र से क्रिकेट के मैदान तक, कौशल से बने किंगमेकर... शरद पवार

    नई दिल्ली, जेएनएन। शरद गोविंदराव पवार। यह नाम है उस शख्स का जिसके अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा के बाद से राकांपा में हड़कंप की स्थिति है। कार्यकर्ता रो रहे हैं, वरिष्ठ पदाधिकारी इस्तीफा वापस लेने का आग्रह कर रहे हैं और राजनेता इस कदम के निहितार्थ खोजने में जुटे हैं। शरद पवार हैं ही ऐसे। राजनीति के रणक्षेत्र से लेकर क्रिकेट के मैदान तक शरद पवार एक मजबूत व्यक्तित्व, नेतृत्वकर्ता और रणनीतिकार के रूप में ख्यात रहे हैं:

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    पुणे में छात्र राजनीति से शुरुआत

    महाराष्ट्र की राजनीति में बालासाहब ठाकरे के साथ कोई नाम सबसे प्रभावी माना जाता रहा है तो वह हैं शरद पवार। अपने राजनीतिक करियर में उन्होंने दिल्ली के लुटियंस में भी मजबूत स्थान बनाया और महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में भी।

    पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अपने राजनीतिक कौशल से किंगमेकर भी। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे पवार ने 1958 में युवक कांग्रेस से जो राजनीतिक यात्रा आरंभ की थी, वह अब राकांपा के अध्यक्ष पद पर वापस लौटने की कार्यकर्ताओं की मनुहार तक पहुंच चुकी है।

    वर्ष 1956 में गोवा की स्वतंत्रता के लिए युवाओं के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पवार 1962 में पुणे युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बने। अपने कामकाज से जल्द ही वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के चहेते बन गए।

    चुनावी सफलताएं और मंत्री पद

    पवार में महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर नेता यशवंतराव चव्हाण का अक्श देखा जाने लगा। वर्ष 1967 में मात्र 27 वर्ष की आयु में बारामती सीट से वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और फिर वर्ष 1990 तक लगातार यहां से विधायक रहे।

    इस बीच वर्ष 1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय वह इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) से जुड़े रहे। उन्हें महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों और सहकारी समितियों से जुड़ी राजनीति में दक्ष माना जाता रहा है। यशवंतराव चव्हाण के सुझाव पर उन्हें महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्री बनाया गया और वर्ष 1975 से 77 तक वह यह जिम्मेदारी संभालते रहे।

    वर्ष 1977 में केंद्र में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी का फिर विभाजन हुआ और पवार अपने राजनीतिक गुरु यशवंतराव चव्हाण के साथ कांग्रेस (यू) में चले गए। हालांकि वर्ष 1978 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद दोनों गुटों के गठबंधन वाली सरकार बनी तो पवार को उद्योग एवं श्रम मंत्री का पद दिया गया।

    राजनीतिक दांव-पेच की शुरुआत

    वर्ष 1977 के बाद आरंभ हुआ पवार के राजनीतिक दांव-पेच का दौर जो अब तक जारी है। वर्ष 1978 में कांग्रेस (यू) से अलग होकर उन्होंने जनता पार्टी के सहयोग से सरकार बनाई और मात्र 38 की आयु में महाराष्ट्र के सबसे युवा सीएम बने। हालांकि वर्ष 1980 में जब इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता में लौटीं तो पवार की सरकार को बर्खास्त कर दिया।

    इसी वर्ष इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आइ) को महाराष्ट्र में बहुमत मिला और एआर अंतुले सीएम बने जबकि पवार ने कांग्रेस (एस) का अध्यक्ष पद संभाला। राजनीतिक माहौल भांपने में दक्ष पवार ने 1984 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और संसद पहुंचे, लेकिन अगले वर्ष बारामती से ही विधानसभा चुनाव जीतकर राज्य की राजनीति में वापसी की व नेता विपक्ष बने। 1987 में वह कांग्रेस (आइ) में लौट आए।

    राज्य की राजनीति में लौटने का लाभ उन्हें वर्ष 1988 में मिला जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने महाराष्ट्र के सीएम शंकरराव चव्हाण को केंद्र सरकार में मंत्री बना लिया और उनके उत्तराधिकारी के तौर पर शरद पवार दूसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।

    अब पवार के सामने शिवसेना का प्रसार थामना बड़ी चुनौती थी। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महाराष्ट्र में 48 में 28 सीटें मिलीं, लेकिन वर्ष 1990 के विधासभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन के सामने शरद पवार एक सीट से बहुमत पाने से दूर रह गए। राजनीतिक दांव-पेच में दक्ष पवार 12 निर्दलीयों का समर्थन लेकर सीएम बने।

    1991 में नरसिंह राव ने पवार को केंद्र में रक्षा मंत्री बनाया। हालांकि राजीव गांधी की हत्या के बाद पवार पीएम के दावेदार भी माने जा रहे थे, लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने राव के लिए चुनौती पेश नहीं की। वर्ष 1993 में तत्कालीन बंबई में दंगों के बाद पवार को महाराष्ट्र के सीएम पद की कमान सौंपी गई। वर्ष 1995 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और पवार को इस्तीफा देना पड़ा।

    1996 में पवार लोकसभा चुनाव जीतकर फिर दिल्ली आ गए। 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सीताराम केसरी को चुनौती दी। 1998 के मध्यावधि चुनाव में महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए 38 सीटें जीत वह केंद्र की राजनीति में बड़ा कद लेकर उभरे और लोकसभा में नेता विपक्ष भी बने।

    1999 में विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार ने कांग्रेस में सोनिया गांधी का विरोध किया और कांग्रेस से छह वर्ष के लिए निष्कासित किए जाने पर पीए संगमा व तारिक अनवर के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी राकांपा बनाई।

    यह पवार की राजनीति ही है कि टकराव के बावजूद 1999 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन किया और कांग्रेस के विलासराव देशमुख सीएम बने। पवार ने छगन भुजबल को डिप्टी सीएम बनवाकर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत रखी, लेकिन खुद केंद्र की राजनीति में ही रहे। 2004 की यूपीए सरकार में वह कृषि मंत्री रहे और 2009 में यूपीए सरकार की वापसी पर इस पद पर कायम रहे। 2012 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। लगातार दो बार से वह राज्यसभा सदस्य हैं और महाराष्ट्र में अपनी पार्टी को बढ़ाने में जुटे रहे हैं।

    बीसीसीआइ और आइसीसी से रहा नाता

    शरद पवार का क्रिकेट से भी करीबी रिश्ता रहा है। उनकी पत्नी प्रतिभा पूर्व टेस्ट क्रिकेटर सदाशिव शिंदे की पुत्री हैं। पवार 2005 से 2008 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के अध्यक्ष और वर्ष 2010 से 2012 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) के अध्यक्ष रहे। वर्ष 2013 से 2017 तक उन्होंने मुंबई क्रिकेट संघ की कमान भी संभाली।

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