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    Stay Home Stay Empowered : कोरोना से हमें बचा सकता है आत्मनिर्भर गांव, जानें-क्या कहते हैं समाजशास्त्री

    By Vineet SharanEdited By:
    Updated: Fri, 17 Jul 2020 04:35 PM (IST)

    दुनिया भर के समाजशास्त्री इस वायरस को शहरीकरण के लिए खतरा बता रहे हैं। इस वायरस को एंटी-अर्बन तक कह दिया गया है। हालांकि उन्होंने इससे लड़ने पर भी जोर दिया है।

    Stay Home Stay Empowered : कोरोना से हमें बचा सकता है आत्मनिर्भर गांव, जानें-क्या कहते हैं समाजशास्त्री

    नई दिल्ली, विनीत शरण। दुनिया भर के समाजशास्त्री इस वायरस को शहरीकरण के लिए खतरा बता रहे हैं। अमेरिकी लेखक माइकल किमेलमैन ने इस वायरस को एंटी-अर्बन तक कह दिया है। हालांकि, उन्होंने इससे लड़ने पर भी जोर दिया है, क्योंकि यह इंसान के साथ इंसान के जुड़ने की नैसर्गिक प्रक्रिया और स्वभाव के खिलाफ है। उनका मानना है कि आधुनिक विज्ञान और समाज ने हमें इतनी ताकत दी है कि हम बड़ी से बड़ी मुश्किलों से लड़ सकते हैं।

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    वहीं, जेएनयू के असिस्टेंट प्रोफेसर जी एस मीणा का कहना है कि कोरोना ने दुनिया के विकास मॉडल को आईना दिखा दिया है। दुनिया औद्योगीकरण, आधुनिकता और शहरीकरण को चुना है। जबकि महात्मा गांधी जैसे लीडर ग्राम स्वराज के पक्ष में रहे हैं।

    शहरीकरण की शक्ति और समस्याएं

    समाजशास्त्रियों के मुताबिक, शहरों में बढ़ती भीड़ शहरीकरण की एक बड़ी समस्या है। हालांकि, यूरोप के शहरों में कम भीड़ है, पर वे भी कोरोना से नहीं बच पाए। इसीलिए यूरोप में गांवों की ओर मुड़ने पर विचार चल रहा है। पिछले कई साल के अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों में भी शहरीकरण कम करने और गांवों को बढ़ावा देने की बातें उठती रही हैं। शहरों में आत्मकेंद्रित और व्यक्ति-केंद्रित व्यवस्था है। शहरों की पूंजीवादी व्यवस्था मुनाफे पर जोर देती है। हालांकि, वे मानते हैं कि पूंजीवाद और शहरीकरण से लाभ होता है, लेकिन शहरों में अमीर-गरीब के बीच की खाई भी बढ़ी है। राज्य की कल्याणकारी योजनाएं कम हुई हैं। वहीं, माइकल की मानें तो आज हमारे पास सोशल मीडिया, डिजिटल इंट्रैक्शन और रिमोट तकनीक हैं। हमने बहुत पहले ही सामाजिक दूरी बनाकर अपने फोन और वर्चुअल दुनिया में जीना सीख लिया था। पर कोरोना के बाद हमें एक दूसरा तरीका खोजना होगा, जिससे हम शहरी जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

    गांव की अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर

    जी एस मीणा के मुताबिक, गांव की अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर होती है। गांव का संपर्क पास के गांव या शहर के कुछ महीने के लिए कट भी जाए तो वहां के जीवन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। जी एस मीणा के मुताबिक, हमें सोचना होगा कि कोरोना काल में मजदूर क्यों गांव की ओर लौट रहा है। इसका कारण है कि गांव में लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं। भोजन और काम तो मिल ही जाते हैं। ऐसा नहीं है कि गांव समस्या से अछूते हैं। गांव में जीवन का स्तर अच्छा नहीं है। फिर भी गांव में पुरानी गलत प्रथाएं जैसे बंधुआ प्रथा और बेगारी कम हुई हैं। वहीं, गांव तक सरकार की मजबूत पहुंच ने शोषण के तंत्र को कमजोर किया है। गांव में ऊंच-नीच और पदानुक्रम की सोच भी कम हुई है।

    ग्रामीण-आदिवासी मॉडल

    जी एस मीणा के मुताबिक, हम कोरोना से बचने और विकास के लिए ग्रामीण-आदिवासी जीवन का मिलाजुला मॉडल अपना सकते हैं। आदिवासी जीवन से हमें प्रकृति की रक्षा की सीख मिलती है। वहीं, गांव हमें आत्मनिर्भर बनना सिखाता है। इसमें हम शहरों की खूबियां भी समाहित कर सकते हैं।

    कोरोना अलग तरह से फैला

    अब तक ज्यादातर बीमारियां पहले समाज के गरीब तबके में फैलती थीं। कहा जाता रहा कि गरीब साफ-सुथरी जगहों पर नहीं रहते और साफ-सफाई से नहीं रहते, इसीलिए बीमारियां फैलती थीं। पर कोरोना ऐसी बीमारी है, जो ऊपर से नीचे की ओर आई है।