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    SCO में नापाक चाल चल रहा था चीन, साझा घोषणा पक्ष पर भारत ने क्यों नहीं किया हस्ताक्षर? विदेश मंत्रालय ने दिया जवाब

    By JAIPRAKASH RANJANEdited By: Piyush Kumar
    Updated: Thu, 26 Jun 2025 08:53 PM (IST)

    एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत ने आतंकवाद पर अपनी स्पष्ट नीति दोहराई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया क्योंकि इसमें पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं था और यह भारत की चिंताओं को सही ढंग से प्रदर्शित नहीं कर रहा था। उन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों की आलोचना की और कहा कि आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं हो सकता। भारत ने स्पष्ट किया कि वह एससीओ में तभी रहेगा जब उसके हितों की रक्षा होगी।  

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    SCO: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संयुक्त घोषणा पत्र में इस आधार पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।(फाइल फोटो)

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में फिर से स्पष्ट किया कि आतंकवाद को लेकर कोई समझौता नहीं हो सकता है।

    चीन के शिंगदाओ शहर में आयोजित इस बैठक में हिस्सा लेते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक के बाद जारी होने वाले संयुक्त घोषणा पत्र में इस आधार पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया कि इसमें पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं था और आतंकवाद को लेकर भारत की चिंताओं को सही तरह से प्रदर्शित नहीं कर रहा था। जबकि प्रस्तावित घोषणा पत्र में बलूचिस्तान में आतंकी वारदातों का जिक्र था। संभवत: चीन और पाकिस्तान के बीच इस मिली भगत को भांपते हुए भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने संयुक्त घोषणा-पत्र में सहभागी बनने से इनकार कर दिया।

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    रंधीर जायसवाल ने बताया क्या है भारत की मांग

    विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि, “कुछ सदस्यों के बीच सहमति नहीं बनने की वजह से साझा घोषणा पत्र जारी नहीं हो सका। भारत चाहता था कि आतंकवाद को लेकर उसकी जो चिंताएं हैं उनको इस साझा पत्र में सही तरीके से प्रदर्शित किया जाए। इस तरह के तथ्य को एक खास देश स्वीकार नहीं कर सका।'' कूटनीतिक सूत्रों ने बताया कि भारत के विरोध से पहले साझा घोषणा पत्र का जो प्रस्ताव आया था वह पूरी तरह से पाकिस्तान का पक्ष रख रहा था।


    इसमें बलूचिस्तान में आतंकवादी वारदातों के लिए परोक्ष तौर पर भारत को जिम्मेदार ठहराने वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया था।संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करने के फैसले से एससीओ सदस्य स्तब्ध थे। लेकिन उससे पहले भी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में भी पाकिस्तान को आईना दिखाने में कोई कसमें कोई कसर नहीं छोड़ी। बैठक में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ भी मौजूद थे।

    राजनाथ सिंह ने क्या-क्या कहा?

    राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में आतंकवाद और अतिवाद को इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने में सबसे बड़ी अड़चन के तौर पर चिन्हित करते हुए कहा कि, “आतंकवाद और राज्य पोषित आतंकी संगठनों के हाथ में सामूहिक विनाश वाले हथियार सौंपने के साथ शांति और सह-अस्तित्ववाद की स्थापना नहीं हो सकती। इन चुनौतियों से हम निर्णायक फैसलों से ही पार पा सकते हैं।

    जो लोग आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उनका पोषण करते हैं या अपने संकीर्ण मतलब के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इसका खामियाजा भुगतान होगा।'' पाकिस्तान का नाम लिये बगैर उन्होंने कहा कि, “कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को राज्य की नीति के तौर पर बढ़ावा देते हैं और आतंकवादियों को प्रश्रय देते हैं। एससीओ को इन देशों की निंदा करने में हिचकना नहीं चाहिए।''

    फिर राजनाथ ने कहा कि, पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी रक्षा करने के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए आपरेशन सिंदूर शुरू किया। पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लश्करे-तोइबा के एक छद्म संगठन ने किया था। लश्करे-तोइबा इस तरह का हमला पहले भी भारत पर कर चुका है।

    भारत ने एससीओ को लेकर अपना यह कूटनीतिक रुख भी अब साफ कर दिया कि उसके हितों की रक्षा की जाएगी तभी वह इस संगठन के साथ जुड़ा रहेगा। चीन, रूस और मध्य एशिया के कुछ देशों ने मिल कर वर्ष 2001 में एससीओ का गठन किया और भारत व पाकिस्तान को वर्ष 2017 में इसका पूर्णकालिक सदस्य बनाया गया। वर्ष 2023 में भारत ने इस संगठन की अध्यक्षता की थी।

    इस साल भी अगस्त में इस संगठन का शिखर सम्मेलन चीन में आयोजित किया जाने वाला है। रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन के बाद यह देखना होगा कि पीएम नरेन्द्र मोदी शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जाते हैं या नहीं।

    जिस तरह से इस संगठन में पाकिस्तान और चीन के बीच सामंजस्य गहरा हो रहा है, उसे देखते हुए बहुत संभव है कि शिखर सम्मेलन में भारत अपने शीर्ष नेतृत्व को नहीं भेजे। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023 में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने हिस्सा नहीं लिया था। पीएम मोदी ने वर्ष 2018 के बाद चीन का दौरा नहीं किया है।