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सबसे ज्यादा घातक है कैंसर का यह प्रकार, सिर्फ नौ फीसद मरीज ही पांच साल से ज्यादा बच पाते हैं

वैज्ञानिकों ने इसकी नई दवा ईजाद की है और शुरुआती प्रयोगों में इसे काफी कारगर पाया गया है। रेडिएशन और कीमोथेरेपी के जरिये अग्नाशय के कैंसर का इलाज किया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 16 Aug 2019 12:29 PM (IST)Updated: Sat, 17 Aug 2019 08:40 AM (IST)
सबसे ज्यादा घातक है कैंसर का यह प्रकार, सिर्फ नौ फीसद मरीज ही पांच साल से ज्यादा बच पाते हैं
सबसे ज्यादा घातक है कैंसर का यह प्रकार, सिर्फ नौ फीसद मरीज ही पांच साल से ज्यादा बच पाते हैं

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वैज्ञानिकों ने पैंक्रियाटिक (अग्नाशय) कैंसर के इलाज की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वैज्ञानिकों ने इसकी नई दवा ईजाद की है और शुरुआती प्रयोगों में इसे काफी कारगर पाया गया है। रेडिएशन और कीमोथेरेपी के जरिये अग्नाशय के कैंसर का इलाज किया जाता है। दोनों ही तरीकों में कैंसर के डीएनए को नुकसान पहुंचाया जाता है। हालांकि अग्नाशय के कैंसर में इस नुकसान को सही करने की क्षमता भी होती है। इस कारण से इलाज का असर सीमित हो जाता है।

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अब वैज्ञानिकों ने पाया है कि दवा एजेडडी1775 की मदद से डीएनए की मरम्मत करने की कैंसर की क्षमता को खत्म किया जा सकता है। रेडिएशन और कीमोथेरेपी के साथ मरीजों को यह दवा देने से इलाज का असर बढ़ जाता है। आमतौर पर अग्नाशय के कैंसर का शिकार होने के बाद महज नौ प्रतिशत मरीज ही पांच साल से ज्यादा जीवित रह पाते हैं।

पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा
पैंक्रियाटिक कैंसर बहुत ही गंभीर रोग है। यह कैंसर का ही एक प्रकार है। अग्‍नाशय में कैंसर युक्‍त कोशिकाओं के जन्‍म के कारण पैंक्रियाटिक कैंसर की शुरूआत होती है। यह अधिकतर 60 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले लोगों में पाया जाता है। उम्र बढ़ने के साथ ही हमारे डीएनए में कैंसर पैदा करने वाले बदलाव होते हैं। इसी कारण 60 वर्ष या इससे ज्‍यादा उम्र के लोगों में पैंक्रियाटिक कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इस कैंसर के होने की औसतन उम्र 72 साल है।

धूम्रपान करने वालों में कैंसर का खतरा ज्यादा
महिलाओं के मुकाबले पैंक्रियाटिक कैंसर के शिकार पुरुष ज्‍यादा होते हैं। पुरुषों के धूम्रपान करने के कारण इसके होने का ज्‍यादा खतरा रहता है। धूम्रपान करने वालों में अग्‍नाशय कैंसर के होने का खतरा दो से तीन गुने तक बढ़ जाता है। रेड मीट और चर्बी युक्‍त आहार का सेवन करने वालों को भी पैंक्रियाटिक कैंसर होने की आशंका बनी रहती है। कई अध्‍ययनों से यह भी साफ हुआ है कि फलों और सब्जियों के सेवन से इसके होने की आशंका कम होती है।

पैंक्रियाटिक कैंसर के लक्षण
इसे 'मूक कैंसर' भी कहा जाता है। इसे मूक कैंसर इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि इसके लक्षण छिपे हुए होते हैं और आसानी से नजर नहीं आते। फिर भी अग्‍नाशय कैंसर के कुछ लक्षण निम्‍नलिखित हैं।

पेट के ऊपरी भाग में दर्द रहना

  • कमजोरी महसूस होना और वजन का घटना
  • भूख न लगना, जी मिचलाना और उल्‍टियां होना
  • स्किन, आंख और यूरिन का कलर पीला हो जाना

पैंक्रियाटिक कैंसर होने का कारण

चिकित्‍सा विज्ञान अग्‍नाशय कैंसर होने का सटीक कारण अभी तक नहीं खोज पाया है। फिर भी इसके होने के कुछ प्रमुख कारण माने जाते हैं-

  • ज्‍यादा मोटापा भी पैनक्रीएटिक कैंसर का कारण हो सकता है
  • अधिक धूम्रपान करने से अग्‍नाशय कैंसर का खतरा बना रहता है
  • लंबे समय तक अग्‍नाशय में जलन भी इसका कारण हो सकती है
  • रेड मीट और चर्बी युक्‍त भोजन का सेवन करने से पैनक्रीएटिक कैंसर होने का खतरा रहता है
  • पीढ़ी दर पीढ़ी अग्‍नाशय की चली आ रही समस्‍या को भी अग्‍नाशय कैंसर का कारण माना जाता है
  • कीटनाशक दवाईयों की फैक्‍ट्री या इससे संबंधित काम करने वालों को भी अग्‍नाशन कैंसर होने की आशंका रहती है

अग्‍नाशय कैंसर का उपचार
यदि आप नियमित रूप से अपना स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण और स्‍क्रीनिंग कराते हैं तो इस रोग के खतरे से काफी हद तक बचा जा सकता है। आजकल कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के द्वारा डॉक्‍टर अग्‍नाशय कैंसर का उपचार करते हैं। इससे कई रोगियों को जीवन मिला है। फिर भी इस प्रकार के कैंसर से बचाव के कुछ घरेलू उपाय निम्‍न लिखित हैं।

फलों का रस: ताजे फलों का और ज्‍यादा से ज्‍यादा मात्रा में सब्जियों का सेवन करने से अग्‍नाशय कैंसर में फायदा मिलता है।

ब्रोकोली: पैनक्रीएटिक कैंसर के उपचार के लिए ब्रोकोली को उत्तम माना जाता है। ब्रोकोली के अंकुरों में मौजूद फायटोकेमिकल, कैंसर युक्‍त कोशाणुओं से लड़ने में सहायता करते हैं। यह एंटी ऑक्सीडेंट का भी काम करते हैं और रक्‍त के शुद्धिकरण में भी मदद करते हैं।

अंगूर: अग्‍नाशय कैंसर के खतरे से बचाने में अंगूर भी कारगर होता हैं। अंगूर में पोरंथोसाईंनिडींस की भरपूर मात्रा होती है, जिससे एस्ट्रोजेन के निर्माण में कमी होती है और फेफड़ों के कैंसर के साथ अग्‍नाशय कैंसर के उपचार में भी लाभ मिलता है।

एलोवेरा: एलोवेरा यूं तो बहुत से रोगों में फायदा पहुंचाता है लेकिन पैनक्रीएटिक कैंसर में भी यह फायदेमंद है। नियमित रूप से इसका सेवन करने से लाभ मिलता है।

सोयाबीन: सोयाबीन के सेवन से अग्‍नाशय कैंसर में फायदा मिलता है। इसके साथ ही सोयाबीन के सेवन से स्‍तन कैंसर में भी फायदा मिलता है।

लहसुन: लहुसन कई रोगों में फायदा पहुंचाता है, इसमें औषधीय गुण होते हैं। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट के साथ ही एलीसिन, सेलेनियम, विटामिन सी, विटामिन बी आदि होते हैं। जिसकी वजह से यह कैंसर से बचाव करता है और कैंसर हो जाने पर उसे बढ़ने से रोकता है। अग्‍नाशय कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए महज घरेलू उपचार पर ही निर्भर न रहें। घरेलू उपचार के अलावा चिकित्‍सक से परामर्श करके उचित इलाज भी करवाएं।


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