सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कंटेंट पर SC की सख्ती, दिव्यांगों के खिलाफ अपमानजनक बयान से निपटने की कही बात
सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक सामग्री को नियंत्रित करने के लिए स्वतंत्र नियामक की आवश्यकता बताई। दिव्यांगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर चिंता जताते हुए, अदालत ने केंद्र से सख्त कानून बनाने को कहा, जैसे एससी-एसटी अधिनियम है। अदालत एसएमए क्योर फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिव्यांगों का मजाक उड़ाने वाले इंटरनेट मीडिया इन्फ्लुएंसरों का उल्लेख था। अदालत ने हास्य कलाकारों को भविष्य में सावधान रहने और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया।
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सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कंटेंट पर SC की सख्ती (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आनलाइन प्लेटफार्म पर अश्लील, आपत्तिजनक या अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए एक तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त नियामक की आवश्यकता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने शीर्ष अदालत को बताया कि दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों और उनका मजाक उड़ाने जैसे मामलों से निपटने के लिए कुछ दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं।
अदालत ने मंत्रालय से कहा कि वह दिशा-निर्देशों को चर्चा के लिए सार्वजनिक करे।दिव्यांगों की गरिमा की रक्षा के लिए एक सख्त कानून की आवश्यकता पर जोर देते हुए अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि वह दिव्यांगों और दुर्लभ आनुवंशिक विकारों से ग्रस्त व्यक्तियों का मजाक उड़ाने वाली टिप्पणियों को दंडनीय अपराध बनाए, जैसा कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत किया गया है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 एससी और एसटी समुदायों के लोगों के खिलाफ किए जाने वाले जातिसूचक अपशब्दों, भेदभाव, अपमान और हिंसा को अपराध मानता है। उसके तहत ऐसे मामले गैर-जमानती होते हैं।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि एससी-एसटी अधिनियम में जातिसूचक टिप्पणियों को अपराध माना गया है और सजा का प्रविधान है। उसी तरह का कठोर कानून आप दिव्यांग लोगों के लिए क्यों नहीं ला सकते? केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस टिप्पणी की सराहना की और कहा कि किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाकर हंसी-मजाक नहीं किया जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद की जाएगी।
यह है मामला
सुप्रीम कोर्ट दुर्लभ 'स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी' (एसएमए) रोग से पीडि़त व्यक्तियों के लिए काम करने वाले मेसर्स एसएमए क्योर फाउंडेशन की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इंडियाज गाट लेटेंट के होस्ट समय रैना और अन्य इंटरनेट मीडिया इन्फ्लुएंसरों-विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर द्वारा किए गए मजाकों का उल्लेख किया गया है।
पीठ ने हास्य कलाकार रैना और अन्य को भविष्य में अपने आचरण के प्रति सावधान रहने का निर्देश दिया। साथ ही दिव्यांगों की सफलता की कहानियों के बारे में हर महीने दो कार्यक्रम आयोजित करने का भी निर्देश दिया, ताकि दिव्यांगों, विशेषकर एसएमए से पीडि़त लोगों के उपचार के लिए धन जुटाया जा सके। पीठ ने कहा कि यह सामाजिक दंड का हिस्सा है और उन्हें अन्य दंडात्मक उपायों से मुक्त किया गया है। उन्हें दिव्यांगों के बारे में उनके असंवेदनशील चुटकुलों के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में ऐसा करने के लिए कहा गया है।
विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को कर सकते हैं आमंत्रित
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि इंटरनेट मीडिया इन्फ्लुएंसर एसएमए जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त लोगों को समय पर उपचार प्रदान करने के मकसद से धन जुटाने के लिए अपने मंचों पर विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को आमंत्रित कर सकते हैं।
सुनवाई के दौरान क्योर फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि एसएमए से पीडि़त कई बच्चों ने अपने जीवन में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। इन बच्चों के माता-पिता क्राउड फंडिंग के माध्यम से उनके इलाज के लिए धन जुटा रहे हैं। फाउंडेशन ने रैना द्वारा 2.5 लाख रुपये देने की पेशकश को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि यह उनकी गरिमा का सवाल था।

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