'जज बदलते ही फैसला खारिज नहीं होना चाहिए...', सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना ने क्यों कहा ऐसा?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना ने बेंच के जज बदलने पर केस के फैसले बदलने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि फैसलों को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्हें लिखने वाले जज बदल गए हैं। जस्टिस नागरत्ना ने न्यायिक स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा कि न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय बदलते समय के साथ भी बरकरार रहना चाहिए, क्योंकि ये फैसले स्याही से लिखे जाते हैं, रेत से नहीं।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना। फाइल फोटो
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अदालत में जज के बदलते ही केस के फैसले भी बदल जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना ने इसपर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बेंच के जज बदलने के बाद फैसलों में बदलाव करना सही नहीं है।
जस्टिस नागरत्ना शनिवार को हरियाणा के सोनीपत में स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पहुंची थी। इस दौरान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि फैसलों को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्हें लिखने वाले जज बदल गए हैं।
जस्टिस नागरत्ना ने क्या कहा?
जस्टिस नागरत्ना के अनुसार, "न्यायिक स्वतंत्रता की विकसित समझ हमें इस बात की गारंटी देती है कि न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय बदलते समय के साथ भी बरकरार रहेगा। यह फैसले स्याही से लिखे जाते हैं, रेत से नहीं।"
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा-
कानून, शासन और प्रशासन में मौजूद सभी का दायित्व है कि वो फैसलों का सम्मान करें और फैसलों से जुड़ी आवश्यक चीजों पर ही आपत्तियां उठाएं। जज बदलने के कारण इन फैसलों को खारिज न किया जाए।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता जरूरी: जस्टिस नागरत्ना
बता दें कि वर्तमान में जस्टिस नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट में एकमात्र महिला न्यायाधीश हैं। न्यायपालिका को देश के शासन का अभिन्न अंग बताते हुए वो कहती हैं, "न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वो कानून का शासन सुनिश्चित करे। न्यायपालिका की स्वतंत्रता फैसलों के अलावा न्यायाधीशों के आचरण से भी सुरक्षित रहती है। वहीं, निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली के लिए न्यायपालिका को राजनीति से अलग रखना आवश्यक है।"
सुप्रीम कोर्ट कई बार अपने ही फैसलों को पलट चुका है। इसी साल मई में सर्वोच्च न्यायालय ने विकास कार्यों के लिए पर्यावरण मंजूरी को अनिवार्य बताया था। 28 नवंबर को CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला पलटते हुए इस प्रतिबंध को हटा दिया था।

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