नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया जिसमें पुलिस हिरासत या जेल में मौत अथवा दुष्कर्म अथवा गुमशुदगी से जुड़े मामलों की अनिवार्य रूप से न्यायिक जांच कराने की मांग की गई है।
जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एस. रविंद्र भट की पीठ ने मानवाधिकार कार्यकर्ता सुहास चकमा की इस याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब तलब किया है। याचिका में कहा गया है कि हालांकि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-176(1ए) में ऐसे मामलों में न्यायिक जांच का प्रावधान किया गया है, लेकिन इस प्रावधान को लागू नहीं किया जा रहा है। याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसके मुताबिक 2005 से 2017 के दौरान 1,303 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई या वे लापता हो गए। इनमें से 827 लोगों को अदालत ने पुलिस रिमांड में नहीं भेजा था, जबकि 476 लोगों को अदालतों ने पुलिस रिमांड में भेजा था। 827 मामलों में से सिर्फ 166 और 476 मामलों में से सिर्फ 104 मामलों में न्यायिक जांच के आदेश दिए गए थे।
असम में इसको लेकर सबसे पहले विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था। यहां पर ये विरोध प्रदर्शन बाद में हिंसा में बदल गया था जिसको लेकर राजनीतिक दलों के बीच तीखी बयानबाजी भी हुई थी। असम में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान कुछ लोगों की मौत भी हुई थी। कई लोगों को हिरासत में लिया गया था।
चकमा का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार को इस बारे लोगों की राय जाननी चाहिए। इसके अलावा उनका ये भी कहना है कि अगले संसद के सत्र में इस पर बहस की जानी चाहिए। आपको बता दें कि चकमा उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनका ये भी कहना है कि केंद्र सरकार को इस कानून के बाबत बांग्लादेश और नेपाल से भी बात करनी चाहिए।