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टू फिंगर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, पीड़ितों के साथ दुष्कर्म की जांच के तरीकों पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म मामले में टू-फिंगर टेस्ट को हटाने का आदेश देते हुए कहा कि दुष्कर्म पीड़िता की जांच की अवैज्ञानिक विधि यौन उत्पीड़न वाली महिला को फिर से आघात पहुंचाती है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 31 Oct 2022 12:41 PM (IST)Updated: Mon, 31 Oct 2022 12:41 PM (IST)
टू फिंगर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, पीड़ितों के साथ दुष्कर्म की जांच के तरीकों पर उठाए सवाल
दुष्कर्म के मामलों में 'टू-फिंगर टेस्ट' पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया प्रतिबंध

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दुष्कर्म के मामलों में 'टू-फिंगर टेस्ट' पर प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि इस तरह के टेस्ट करने वाले व्यक्तियों को दोषी ठहराया जाएगा। जस्टिस चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने फैसला सुनाते हुए दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामलों में 'टू-फिंगर टेस्ट' के इस्तेमाल की निंदा की। जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न के सबूत तौर पर ये अहम नहीं है। यह खेदजनक है कि आज भी इस टेस्ट किया जा रहा है।

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कोर्ट ने कहा कि इस तरह का टेस्ट पीड़िता को दोबारा यातना देने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के बरी करने के आदेश को पलट दिया और उस व्यक्ति को बलात्कार-हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई, जिस पर सुनवाई चल रही थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ही टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए।

क्या था इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने इसे दुष्कर्म पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है। यह टेस्ट पॉजिटिव भी आ जाए तो नहीं माना जा सकता है कि संबंध सहमति से बने हैं।

दिसंबर 2012 के सामूहिक दुष्कर्म के बाद बनी थी कमेटी

16 दिसंबर 2012 के सामूहिक दुष्कर्म के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी बनाई गई थी। इसने अपनी 657 पेज की रिपोर्ट में कहा था कि टू फिंगर टेस्ट में वजाइना की मांसपेशियों का लचीलापन देखा जाता है। इससे यह पता चलता है कि महिला सेक्सुअली एक्टिव थी या नहीं। इसमें यह समझ नहीं आता कि उसकी रजामंदी से या इसके विपरीत जाकर संबंध बनाए गए। इस वजह से यह बंद होना चाहिए।

बैन के बावजूद होता रहा टेस्ट

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के बैन के बाद भी शर्मिंदा करने वाला यह टू-फिंगर टेस्ट होता रहा है। 2019 में ही करीब 1500 दुष्कर्म पीड़िता और उनके परिजनों ने कोर्ट में शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद यह टेस्ट हो रहा है। याचिका में टेस्ट को करने वाले डॉक्टरों का लाइसेंस रद करने की मांग की गई थी।


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