जब एक मंच पर आए मरे, मूंगफली और धुंआधार, जानें आखिर क्या हुआ कवि सम्मेलन का हाल
एक ही मंच पर हास्य कवि मरे मूंगफली और धुंआधार का होना एक गजब का अहसास था। लेकिन श्रोता इसको पचा नहीं सके और फिर...।
अरविंद तिवारी। दिनों का फेर है साहब, वरना हर होली पर हास्य रस के कवियों का सीजन होता था लेकिन इस बार हास्य के कवि ‘सिजंड’ लकड़ी की तरह पड़े हैं! आलम यह है कि महामूर्ख सम्मेलन तक में वीर रस की कविताएं सुनी जा रही हैं। हास्य के कवियों को कतई उम्मीद नहीं थी कि इस बार होली पर वीर रस के कवि उन्हें खो खो के खेल की तरह ‘खो’ दे देंगे। पूरे देश में वीर रस का ज्वार आया है और इस ज्वार के बरक्स, हास्य कवियों को ज्वर चढ़ आया है। होली के अवसर पर जिस शहर में कवि सम्मेलन हो रहा था, वह शहर कवियों की हूटिंग करने के लिए बदनाम था। होली कवियों का श्राद्ध पक्ष होता है। कवि सम्मेलन के न्योते पर न्योते चले आते हैं। सालभर की कमाई फागुन में हो जाती है। आज के आयोजन का हाल सुना रहा हूं। संचालक जी ने माइक थाम लिया है। वह इस ऐतिहासिक शहर के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में, ऐतिहासिक कवियों का ऐतिहासिक श्रोताओं से उसी तरह परिचय करवा रहे हैं, जैसे किसी दंगल से पूर्व पहलवानों का करवाया जाता है!
...और लीजिए कवि सम्मेलन शुरू हो गया। संचालक जी ने सर्वप्रथम गीतकार ‘मरे’ जी को बुलाया। ‘मरे’ जी देखने में भले ही मरे हुए लग रहे थे पर उनका माइक तक चलना, उन्हें जीवित होने का प्रमाण पत्र दे रहा था। गले को साफ करके श्रोताओं को सहमी नजरों से देखते हुए गीत पढ़ा, ‘मैं दर्द पी रहा हूं। मैं दर्द पी रहा हूं....’ इतना सुनते ही श्रोताओं ने फील्डिंग टाइट कर दी और बोले, ‘झूठ बोलते हो। हमने देखा था आप थोड़ी देर पहले मादक द्रव पी रहे थे।’ संचालक जी ने हस्तक्षेप किया, ‘आप विश्व के सर्वश्रेष्ठ श्रोता हैं।’ श्रोता बोले ‘तो विश्व की सर्वश्रेष्ठ कविता आने दो।’ संचालक के आदेश पर ‘मरे’ जी ने दूसरा गीत पढ़ा, ‘मैं जिंदा क्यों हूं। मैं जिंदा क्यों हूं...’
श्रोताओं ने कहा, ‘आप जिंदा इसलिए हैं, क्योंकि मंच पर खड़े हैं। मंच से नीचे आ जाएंगे तो जिंदा नहीं रह पाएंगे।’ इस तरह ‘मरे’ जी बिना रन दिए आउट हो गए। उन्हें इस तरह आउट होता देख एक कवयित्री बिना गीत पढ़े ही अपना बैग लेकर खिसक लीं। संचालक जी ने श्रोताओं से कहा, ‘आप लोग शहर की परंपरा बिगाड़ रहे हैं। एक ऐतिहासिक कवि सम्मेलन को उखाड़ रहे हैं। यहां हिंदी के दिग्गज कवि बैठे है।’ एक श्रोता चिल्लाया, ‘हम भी तो बैठे है, हमारा भी नाम लो, अच्छाई इसी में है कि हास्य के कवि को थाम लो!’ श्रोताओं की मांग पर संचालक जी ने हास्य कवि ‘मूंगफली’ को बुलाया। ‘मूंगफली’ कवि ने मुक्तक सुनाया। ‘मैं इश्क में अंधा हो गया। हुस्न का बंदा हो गया। फिर इतने जूते पड़े सिर पर, मैं सिर से गंजा हो गया।’ उनके मुक्तक पर दंगा हो गया। अंडे-टमाटर से मंच गंदा हो गया।
‘मूंगफली’ के आउट होते ही वीर रस के कवि ‘धुआंधार’ को बुलाया गया। उनकी कविताओं के बारे में कहा गया कि अगर इनकी कविताएं दुश्मन पर गिरा दी जाएं तो वह नष्ट हो जाएगा! होली थी, सो श्रोता चिल्लाए, ‘सभी वीर रस के कवियों को लड़ाकू विमान में ले जाकर आतंकवादी ठिकाने पर गिरा देते तो दो फायदे होते। एक तो दुश्मन नष्ट हो जाता, दूसरे, भारत के श्रोताओं का इन्हें सुनने से पैदा हुआ कष्ट दूर हो जाता।’ इतना सुनकर भी ‘धुआंधार’ का कलेजा देखो कि वो फिर भी कविता सुनाने लगे। ‘मुझसे टक्कर लेने वाले, ध्वस्त करूंगा तेरी काया। है कोई माई का लाल! जो मुझसे कुश्ती लड़ने आया!’ श्रोता बोला ‘क्या गला पाया आपने। दशहरे के दंगल में जरूर बुलाएंगे। कुश्ती जीतने पर एक सौ एक रुपए दिए जाएंगे।’ ‘धुआंधार’ के आउट होने पर होली का हुड़दंग शुरू हो गया, जो कवि सम्मेलन को अपने साथ बहा ले गया।
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