प्राचीन ज्ञान और भविष्य की तकनीकों के बीच संभावित पुल बन सकती है संस्कृत, AI को बना सकती है सुगम
दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक संस्कृत जर्मनी अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों में बेहद लोकप्रिय हो रही है। ये इसके महत्व को समझ रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मीरा जोशी ने अपने एक लेख में कहा है कि जब विश्व सांस्कृतिक पहचान डिजिटल संचार जैसे मुद्दों से जूझ रहा है तब संस्कृत भविष्य की भाषा के रूप में उभर रही है। इसके पीछे कई कारण हैं।

जेएनएन, नई दिल्ली। दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक संस्कृत जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों में बेहद लोकप्रिय हो रही है। ये इसके महत्व को समझ रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मीरा जोशी ने अपने एक लेख में कहा है कि जब विश्व सांस्कृतिक पहचान, डिजिटल संचार जैसे मुद्दों से जूझ रहा है, तब संस्कृत भविष्य की भाषा के रूप में उभर रही है। इसके पीछे कई कारण हैं।
रोबोटिक्स को भी सुगम बना सकती है
कई लोगों का मानना है कि इसकी सुदृढ़ तार्किक संरचना भाषा प्रसंस्करण, एआइ और यहां तक कि रोबोटिक्स को भी सुगम बना सकती है, जिससे यह प्राचीन ज्ञान और भविष्य की तकनीकों के बीच संभावित पुल बन सकती है।दरअसल, संस्कृत की व्याकरण प्रणाली की परिशुद्धता जटिल विचारों की संक्षिप्त और सुस्पष्ट अभिव्यक्ति को आसान बनाती है।
शोध बताते हैं कि संस्कृत की वाक्य रचना गणितीय रूप से इतनी सुसंगत है कि इसे कंप्यूटर-अनुकूल भाषा के रूप में पहचाना गया है। भारत में प्रौद्योगिकी कंपनियां और शैक्षणिक संस्थान कंप्यूटिंग और एआइ अनुसंधान में संस्कृत को शामिल कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, आइआइटी और अनुसंधान केंद्र इसपर शोध कर रहे हैं कि संस्कृत व्याकरण मशीन लर्निंग एल्गोरिदम को कैसे बेहतर बना सकता है। लेखिका के के अनुसार, गूगल और अन्य तकनीकी दिग्गजों ने भी अधिक कुशल सूचना पुन प्राप्ति और मानव-मशीन संपर्क के लिए संस्कृत की संरचना का उपयोग करने में रुचि दिखाई है।
करियर के नए अवसर
संस्कृत में रुचि केवल शैक्षणिक ही नहीं है। संस्कृत स्नातकों के लिए करियर के नए अवसर खुल रहे हैं। कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान, अनुवाद, योग, आयुर्वेद आदि क्षेत्रों में प्रचुर अवसर उपलब्ध हैं। प्राचीन हिंदू, बौद्ध और जैन ग्रंथों के डिजिटलीकरण के लिए संस्कृत में दक्षता आवश्यक है।
14 जर्मन विश्वविद्यालय में चल रहा पाठ्यक्रम
संस्कृत का बढ़ता आकर्षण इससे समझा जा सकता है कि आज 14 जर्मन विश्वविद्यालय संस्कृत में पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। इसे दुनिया के सबसे बड़े पूर्व-आधुनिक ज्ञान के भंडार तक पहुंचने का तरीका माना जा रहा है।
हीडलबर्ग विश्वविद्यालय में समर स्कूल का आयोजन किया गया। मांग अधिक होने पर कार्यक्रमों का विस्तार स्विट्जरलैंड और इटली तक हो गया। यह जर्मनी तक सीमित नहीं है। हार्वर्ड, आक्सफोर्ड और कैम्बि्रज जैसे प्रमुख संस्थान भी संस्कृत पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में नामांकन में वृद्धि देखी जा रही है।
प्राचीन ग्रंथों तक पहुंच
यह भाषा भारतीय दर्शन, गणित और विज्ञान का प्रवेश द्वार है। पश्चिमी विद्वान संस्कृत को न केवल जिज्ञासा के विषय के रूप में, बल्कि सभ्यता को समझने की कुंजी के रूप में देखते हैं। इसके माध्यम से योग और आयुर्वेद से लेकर खगोल विज्ञान और संगीत पर मौजूद प्राचीन ग्रंथों तक पहुंच प्राप्त होती है।
यह भविष्य की भाषा
संस्कृत को भविष्य की भाषा बताया गया है। इसके पीछे पहला कारण इसकी तार्किक वाक्य रचना और अस्पष्टता का अभाव है। जो इसे कंप्यूटर और वैश्विक संवाद दोनों की जरूरतों के हिसाब से सटीक बनाने के लिए आदर्श है। दूसरा, प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का डिजिटलीकरण और कम्प्यूटेशनल विश्लेषण आज भी प्रासंगिक वैज्ञानिक, चिकित्सा और दार्शनिक अंतर्दृष्टि को उजागर कर सकता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।