Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय को सौंपी गईं सांचीपत पांडुलिपियां, असमिया की शास्त्रीय भाषा के रूप में एक और उपलब्धि

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 09:34 PM (IST)

    राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में कलाक्षेत्र के सचिव सुदर्शन ठाकुर ने राष्ट्रपति भवन की सचिव दीप्ति उमाशंकर को अमूल्य सांचीपत पांडुलिपियां आधिकारिक रूप से सौंपीं। इस दौरान नई दिल्ली के असम भवन के वरिष्ठ अधिकारियों और असम सरकार तथा भारत सरकार के प्रतिनिधि वहां पर मौजूद थे। राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय की भव्यता बढ़ाने में कई सांचीपत पांडुलिपियां सौंपी गईं।

    Hero Image
    राष्ट्रपति भवन की सचिव दीप्ति उमाशंकर को अमूल्य सांचीपत पांडुलिपियां आधिकारिक रूप से सौंपीं।

    डिजिटल टीम, नई दिल्ली। असमिया भाषा को गौरवान्वित करने के उद्देश्य से श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र सोसाइटी ने मंगलवार को औपचारिक रूप से पांच प्राचीन सांचीपत पांडुलिपियों का एक संग्रह राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय को संरक्षण और प्रदर्शन के लिए सौंपा।

    राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में कलाक्षेत्र के सचिव सुदर्शन ठाकुर ने राष्ट्रपति भवन की सचिव दीप्ति उमाशंकर को अमूल्य सांचीपत पांडुलिपियां आधिकारिक रूप से सौंपीं। इस दौरान नई दिल्ली के असम भवन के वरिष्ठ अधिकारियों और असम सरकार तथा भारत सरकार के प्रतिनिधि वहां पर मौजूद थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्वा सरमा के मार्गदर्शन और संरक्षण में और मुख्य सचिव रवि कोटा के निर्देश पर श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र सोसाइटी ने इन सांचीपत पांडुलिपियों को इकट्ठा करने के लिए असमभर में विभिन्न सत्रों (वैष्णव मठों) के साथ समन्वय किया।

    राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय की भव्यता बढ़ाने में निम्न सांचीपत पांडुलिपियां हैं-

    महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव द्वारा रचित 'कीर्तन घोष', श्री श्री दक्षिणपत सत्र, माजुली के श्रद्धेय सत्राधिकार श्री श्री नानीगोपाल देव गोस्वामी द्वारा योगदान दिया गया है।

    भागवत पुराण के दसवें स्कंध पर आधारित श्रीमंत शंकरदेव का काव्यात्मक अनुवाद 'आदि दशम', श्री श्री नरूआ कुजी सत्र (वैकुंठपुर थान), मोरीगांव के श्रद्धेय सत्राधिकार श्री श्री नित्यानंद देव गोस्वामी द्वारा योगदान दिया गया है।

    महापुरुष श्री श्री माधवदेव द्वारा रचित 'नाम घोक्सा', श्री श्री उत्तर कमलाबाड़ी सत्र, माजुली के श्रद्धेय सत्राधिकार श्री श्री जनार्दन देव गोस्वामी द्वारा योगदान दिया गया है।

    'भक्ति रत्नावली', विष्णुपुरी साधुओं द्वारा रचित एक संस्कृत कृति है, जिसका असमिया में अनुवाद महापुरुष श्री श्री माधवदेव ने किया है, जिसका योगदान श्री श्री कमलाबारी सत्र, टीटाबोर के श्रद्धेय सत्राधिकार श्री श्री भवकांत देव गोस्वामी द्वारा किया गया है।

    इसके अलावा 'गीत गोविंद' की एक सांचीपत पांडुलिपि, जो मूल रूप से जयदेव द्वारा संस्कृत में रचित थी और स्वर्गदेव रुद्र सिंह के शाही दरबार में कवि कबीराज चक्रवर्ती द्वारा असमिया में अनुवादित थी, जोरहाट के श्री सुरेन फुकन द्वारा श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के अभिलेखागार को दान कर दी गई थी और इसे संरक्षण और प्रदर्शन के लिए राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय में भी प्रस्तुत किया गया है।

    कलाक्षेत्र के सचिव ने इन शास्त्रीय असमिया पांडुलिपियों के संरक्षण और प्रदर्शनी में शामिल आदरणीय सत्राधिकारियों और अन्य व्यक्तियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।

    इस अवसर पर सुदर्शन ठाकुर ने कहा कि आशा है कि कि इस महत्वपूर्ण कदम से असमिया भाषा की समृद्ध विरासत को नई दिशा मिलेगी।