'सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन है', एक कार्यक्रम में बोले मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि सबका हित साधते हुए अपना विकास करना, यह वर्तमान समय की आवश्यकता है। पूरे विश्व में अनेक बार आर्थिक उठापटक होती है। लेकिन, भारत पर इसका असर सबसे कम होता है, क्योंकि भारत के अर्थतंत्र का आधार यहां की परिवार व्यवस्था है।

'सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन है'- मोहन भागवत (फाइल फोटो)
जागरण संवाददाता,जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक डॉ.मोहन भागवत ने कहा है कि सबका हित साधते हुए अपना विकास करना, यह वर्तमान समय की आवश्यकता है। पूरे विश्व में अनेक बार आर्थिक उठापटक होती है। लेकिन, भारत पर इसका असर सबसे कम होता है, क्योंकि भारत के अर्थतंत्र का आधार यहां की परिवार व्यवस्था है।
उन्होंने कहा,सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन है। इस एकात्म मानव दर्शन में अतिवाद नहीं है। डॉ. भागवत शनिवार को एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से '' वर्तमान वैश्विक दृश्य एवं एकात्म मानवदर्शन '' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाघ्याय ने देश,काल एवं स्थिति के अनुसार एकात्मक मानव दर्शन का नया नाम लोगों के समक्ष रखा है। 60 वर्ष बाद भी वर्तमान समय में यह एकात्मक मानव दर्शन पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है। एकात्मक मानव दर्शन को एक शब्द में समझना है तो वह शब्द धर्म है। इस धर्म का अर्थ रिलिजन,मत,पंथ और संप्रदाय नहीं है। इस धर्म का तात्पर्य गंतव्य से है। सब की धारणा करने वाला धर्म है। धर्म में अनुशासन चाहिए। वर्तमान समय में दुनिया को इसी एकात्म मानव दर्शन के धर्म से चलना होगा।
संघ प्रमुख ने कहा कि वैश्विक स्तर पर केवल चार प्रतिशत जनसंख्या 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग कर रही है। विकसित एवं अविकसित में भेद बढ़ रहा है।

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