सैन फ्रांसिस्को ने सहेज रखी हैं 'गदर' की निशानियां, जहां से भारतीयों ने भरी थी आजादी की हुंकार
अमृतसर के भाकना गांव के बाबा सोहन सिंह व अन्य ने उठाते हुए 21 अप्रैल 1913 को कैलिफोर्निया में रह रहे पंजाबियों के साथ मिलकर गदर पार्टी की स्थापना की थी।
विजय गुप्ता, सैन फ्रांसिस्को से लौटकर। जिन गदरी बाबों की हुंकार से अंग्रेजों के पसीने छूट गए थे, उनकी निशानियों को सैन फ्रांसिस्को ने सहेज कर रखा है। अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने देश की आजादी के लिए जिस गदर पार्टी की स्थापना की थी, उसका मुख्यालय रही यहां की इमारत उनके बलिदान की दास्तां सौ साल बाद भी सुना रही है।
अमेरिका में कामगारों के रूप में आए भारतीयों को देश की आजादी की खातिर आवाज उठाने के लिए प्रेरित करने का बीड़ा अमृतसर के भाकना गांव के बाबा सोहन सिंह व अन्य ने उठाते हुए 21 अप्रैल 1913 को कैलिफोर्निया में रह रहे पंजाबियों के साथ मिलकर गदर पार्टी की स्थापना की थी। लाला हरदयाल इसके सचिव थे। लुधियाना के सराभा गांव से इंजीनियरिंग करने आए करतार सिंह सराभा भी पढ़ाई छोड़कर गदरी बन गए और एक नवंबर 1913 से शुरू किए गए हिंदुस्तान गदर अखबार को प्रकाशित करने में मदद करने लगे। आज भी सैन फ्रांसिस्को में गदरी बाबों की तस्वीरों के साथ-साथ गदर अखबार के कई अंक सहेज कर रखे गए हैं।
पार्टी के मुख्यालय को गदर आश्रम दिया गया था नाम
वैसे 1913 में जब हिंदुस्तान गदर पार्टी की स्थापना हुई थी, उस समय उसका कार्यालय 436 हिल स्ट्रीट में होता था, जिसे युगांतर आश्रम नाम दिया गया था। उसके बाद गदर पार्टी का मुख्यालय यहां 5 वुड स्ट्रीट में आया और इसे गदर आश्रम का नाम दिया गया। भारत की आजादी के बाद इस आश्रम और उससे जुड़ी वस्तुओं को 1949 में भारतीय दूतावास को दे दिया गया। 1975 में यहां गदर मेमोरियल का उद्घाटन किया गया।
बम बनाते समय उड़ गई थी बांह
आज यहां कई ऐसी निशानियां हैं, जो हर किसी को झकझोरती हैं। जैसे कि शीशे के एक बॉक्स में रखी देशभक्त बाबा हरनाम सिंह की कृत्रिम बांह उनके हौसले व जज्बे को दर्शा रही है। हरनाम सिंह की एक बांह बम बनाते समय विस्फोट से उड़ गई थी। बाबा सोहन सिंह, करतार सिंह सराभा, हरदयाल सिंह के अलावा लाला लाजपत राय, गुरदित सिंह, कांशी राम, अमीर चंद, रहमत अली शाह, जगत सिंह, केहर सिंह, वीजी पिंगल, जीवन सिंह के अलावा शहीद भगत सिंह, ऊधम सिंह समेत करीब बीस देशभक्तों की तस्वीरें यहां अदब से संजो कर रखी गई हैं..उनके संक्षिप्त जीवन परिचय के साथ।
गुमनामी की स्थिति में है मेमोरियल
बेशक यहां भारतीय दूतावास द्वारा राष्ट्रीय पवरें पर समारोह का आयोजन किया जाता है, लेकिन विडंबना यह है कि यह मेमोरियल गुमनामी की सी स्थिति में है। यहां बहुत कम भारतीय इसके बारे में जानते हैं। मेमोरियल की विजिटर बुक जो 1981 में शुरू की गई थी, अभी तक चल रही है। लेकिन, कुछ देश प्रेमी इस शहर में हैं, जो हर साल शहीदों की स्मृति में आयोजन करते हैं। नमन करते हैं गदरी बाबों को, जिन्होंने अमेरिका की धरती पर भारत की आजादी की कुछ ऐसी ललकार दी थी जो यहां संजोई गई इन पंक्तियों से समझी जा सकती है-
कोई नामो निशां पूछे तो गदरी उससे कह देना
वतन हिंदोस्तां अपना है, हम हिंदोस्तानी हैं।
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