'तेलंगाना में वन भूमि पर सालार जंग III के वारिसों का कोई दावा नहीं'; सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सालार जंग III के वारिसों का तेलंगाना में वन भूमि पर कोई दावा नहीं है। अदालत ने इस मामले में दायर याचिकाओं को खारिज कर ...और पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया। देश के शीर्ष न्यायालय ने रंगा रेड्डी जिले में 102 एकड़ वन भूमि पर तेलंगाना वन विभाग के अधिकारों को बरकरार रखा। वहीं, इस दौरान सालार जंग III के वारिस होने का दावा करने वाले व्यक्तियों के मालिकाना हक के दावों को खारिज कर दिया।
दरअसल, ये फैसला साहेबनगर कलां में जमीन को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद से जुड़ा है। इस जमीन को लेकर तीन लोगों ने सालार जंग III के कानूनी वारिस या नॉमिनी के तौर पर मालिकाना हक का दावा किया था। हालांकि, की कोर्ट ने उनके दावे को खारिज कर दिया।
बता दें कि सालार जंग III हैदराबाद के इतिहास की एक प्रमुख हस्ती थे, जिन्हें 1912 में निज़ाम के शासन में प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये अहम आदेश
जस्टिस पंकज मिथल और एसवीएन भट्टी की बेंच ने आदेश दिया कि इस जमीन को दो महीने के अंदर आरक्षित वन विभाग घोषित किया जाए। कोर्ट का कहना है कि यह आम जानकारी की बात है कि सभी शहरों में हरियाली वाली जगहें कम हो रही हैं और हैदराबाद और सिकंदराबाद के जुड़वां शहर भी इसके अपवाद नहीं हैं।
किसने जमीन पर किया था दावा?
गौरतलब है कि दावा करने वालों में दो से दो लोगों ने खुद को दिवंगत अब्दुल्ला का जीवित बेटा बताया, जो सालार जंग III के मामा थे। वहीं, एक अन्य दावेदार मीर जफर अली ने कहा कि वह दिवंगत सालार जंग III की संपत्तियों से जुड़े मामलों को देखने के लिए कोर्ट द्वारा नियुक्त जीवित नॉमिनी हैं।
उल्लेखनीय है कि यह आदेश कई मायनों में खास है। इससे पहले हाईकोर्ट और निचली अदालतों ने पहले तीनों दावेदारी के पक्ष में फैसला सुनाया था और 102 एकड़ ज़मीन पर उनके मालिकाना हक को मान्यता दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दावेदारों की ओर से पेश किए दस्तावेजों की अंदरूनी जांच से यह साबित नहीं होता कि जमीन सालार जंग III की खुद की खरीदी हुई संपत्ति थी। बेंच ने कहा कि जागीरों के खत्म होने के बाद, जमीन सरकार के पास चली गई थी।
अपने फैसले के दौरान ऐतिहासिक घटनाओं को याद करते हुए कोर्ट ने सितंबर 1948 का जिक्र किया, जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो शुरू किया था, जिसके परिणामस्वरूप हैदराबाद के निजाम ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद हैदराबाद राज्य भारत संघ का हिस्सा बन गया और 1949 में जागीर उन्मूलन विनियमन लागू किया गया, जिससे तत्कालीन राज्य में सभी जागीरें खत्म हो गईं।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद करते हुए साफ किया कि तेलंगाना फॉरेस्ट एक्ट के तहत की गई कार्रवाई जागीर एबोलिशन रेगुलेशन, जागीर एबोलिशन कम्यूटेशन, और इनम्स एक्ट को खत्म करने के तहत शुरू की गई कार्रवाई को रद्द करने के लिए इतनी आगे नहीं जा सकती।

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