कुछ हफ्तों बाद पीएम मोदी-पुतिन की होगी बैठक, पेट्रोलियम पाइपलाइन पर होगी बात; भारत के लिए कितना अहम?
रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बीच चीन और भारत को पेट्रोलियम आपूर्ति जारी रखने के लिए प्रयासरत है। “पावर ऑफ साइबेरिया-1” पाइपलाइन के बाद, भारत के साथ भी पाइपलाइन परियोजना पर विचार हो रहा है। आगामी मोदी-पुतिन वार्ता में इस पर विमर्श होगा। पहले भारी लागत के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई थी, लेकिन रूस भारत के लिए एक भरोसेमंद तेल साझेदार है, इसलिए इस पर फिर से विचार किया जा रहा है।

रूस-भारत पाइपलाइन पर फिर होगी बात। फाइल फोटो
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। एक तरफ अमेरिका व यूरोपीय संघ रूस के पेट्रोलियम कारोबार पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं दूसरी तरफ रूस इसका काट भी खोजने में जुटा हुआ है। रूस की तरफ से कोशिश है कि चीन व भारत जैसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को निर्बाध पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति होती रहे। रूस इसके के लिए चीन के साथ “पावर ऑफ साइबेरिया-1'' पाइपलाइन बिछा चुका है और अब इसके दूसरे चरण के पाइपलाइन परियोजना पर विमर्श जारी है।
इसके जरिए वैश्विक प्रतिबंधों के बावजूद रूस चीन को गैस की आपूर्ति करता रहेगा। अब कुछ ऐसे ही प्रस्ताव पर अगले कुछ हफ्तों के भीतर पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच होने वाली बैठक में विमर्श होगा। यह पहली बार नहीं है कि भारत और रूस के बीच पाइपलाइन से पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति पर विमर्श हुआ है। इस बारे में दोनों देशों के बीच एक संभाव्यता रिपोर्ट भी तैयार की गई लेकिन भारी लागत को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
रूस-भारत पाइपलाइन पर फिर होगी बात
कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि भारत-रूस के बीच होने वाली आगामी शिखर सम्मेलन में पेट्रोलियम कारोबार को जारी रखना एक अहम मुद्दा होगा। पिछले ढ़ाई वर्षों में यह साबित हो चुका है कि रूस भारत के लिए एक भरोसमंद व किफायती तेल साझेदार है। ऐसे में भारत इस कारोबार को आगे भी जारी रखना चाहेगा जो इसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी भी है। दूसरी तरफ इस बात का संकेत है कि अमेरिका व यूरोपीय देशों का रूस के साथ विवाद काफी लंबा चलेगा। ऐसे में पाइपलाइन एक बढि़या विकल्प हो सकता है। पाइपलाइन के जरिए होने वाले कारोबार पर वैश्विक प्रतिबंध बहुत असर नहीं करता। दोनों देशों को इसकी लागत और दूरी की समस्या का समाधान निकालना होगा।
गोवा में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (अक्टूबर, 2016) के दौरान पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच हुई बैठक में दोनों में गैस व तेल पाइपलाइन बिछाने को लेकर एक सहमति बनी थी। भारत की सरकारी कंपनी ईआइएल और रूसी कंपनी गैजप्रोम ने बाद में जो संभाव्यता रिपोर्ट बनाई उसमें तीन मार्ग का प्रस्ताव दिया जिनकी लंबाई 5,000 से 6,000 किलोमीटर लंबी थी। लेकिन लंबी दूरी और भारी लागत (25 अरब डॉलर) की वजह से दोनों देशों ने इसे आगे नहीं बढ़ाया। हालांकि इसके बाद रूस ने चीन के साथ पाइपलाइन बिछाने (पावर ऑफ साइबेरिया-एक) का समझौता किया और इसे अमल में भी ला दिया गया। पावर ऑफ साइबेरिया-दो पर अब बात हो रही है जिससे रूस और ज्यादा गैस चीन को दे सकेगा।
मोदी-पुतिन वार्ता में होगा विमर्श
वर्ष 2016 के समझौते के बाद के अध्ययन रिपोर्ट में ईआइएल और गैजप्रोम ने तीन रूट का विकल्प दिया था। इसमें सबसे छोटा मार्ग 4500 किलोमीटर का (साइबेरिया से उत्तर भारत तक) का था और सबसे लंबा मार्ग 6,000 किलोमीटर (साइबेरिया से चीन व म्यांमार होते हुए पूर्वोत्तर भारत तक) का था। इसकी लागत कम से कम 25 अरब डॉलर बताई गई थी । लेकिन इससे भारत को मिलने वाले गैस की कीमत चार डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमएमबीटीयू- गैस मापने का मापक) का अनुमान लगाया गया था। राष्ट्रपति पुतिन जल्द ही भारत के दौरे पर आने वाले हैं। वह पीएम मोदी के साथ भारत-रूस सालाना शिखर बैठक में हिस्सा लेंगे।

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