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    नाबार्ड के सर्वे में सामने आई ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव की तस्वीर, 42.2 फीसद परिवारों ने कहा- उनकी आय बढ़ी

    Updated: Thu, 11 Dec 2025 10:00 PM (IST)

    नाबार्ड के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण भारत में मांग तेजी से बढ़ रही है, जीएसटी दरों में कटौती से पहले ही यह रुझान दिख रहा था। पिछले एक साल मे ...और पढ़ें

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    ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव की तस्वीर। (तस्वीर-एआई जनरेटेड)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकार ने हाल ही में जीएसटी दरों में कटौती करने के बाद उम्मीद जताई है कि पूरे देश में मांग तेजी से बढ़ेगी लेकिन राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) का ताजा अध्ययन बताता है कि जीएसटी दरों में कमी से पहले ही ग्रामीण भारत में मांग की रफ्तार तेज है।

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    नाबार्ड की तरफ से गुरूवार को जारी आठवें चरण के ग्रामीण आर्थिक स्थिति एवं भावना सर्वेक्षण (आरईसीएसएस) में बताया है कि पिछले एक साल में ग्रामीण परिवारों की खर्च करने की क्षमता और इच्छा दोनों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।

    नाबार्ड के मुताबिक यह ग्रामीण परिवारों की वास्तविक क्रय शक्ति में वृद्धि का सीधा प्रमाण है। ग्रामीण परिवारों के मासिक आय का दस फीसद सरकारी सब्सिडी से आने की बात कही है। सर्वे सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि लगातार 80 फीसद ग्रामीण परिवारों ने पिछले एक साल में अपनी खपत में वृद्धि की सूचना दी है।

    सर्वे शुरू होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रो में खपत इस रफ्तार से कभी नहीं बढ़ी दिखी है। साथ ही, मासिक आय का 67.3 फीसद हिस्सा अब खपत पर खर्च हो रहा है, जो सर्वे की शुरुआत से अब तक का सबसे ऊंचा अनुपात है।

    माना जा रहा है कि जीएसटी दरों में हाल ही में की गई कटौती के बाद उपभोग की रफ्तार और ऊंचाई छू सकती है। इन परिवारों में भविष्य को लेकर भी आशावाद है। 42.2 फीसद परिवारों ने कहा कि उनकी आय पिछले एक साल में बढ़ी है।

    हालांकि 15.7 फीसद ने आय में किसी तरह की गिरावट की बात कही है लेकिन यह स्तर अभी का सबसे न्यूनतम स्तर है। अगले एक साल में आय बढ़ने की उम्मीद करने वालों का प्रतिशत 75.9 फीसद तक पहुंच गया, जो सितंबर 2024 से अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।

    सर्वे यह भी बताती है कि निवेश और औपचारिक ऋण में भी रिकॉर्ड तेजी दर्ज की गई है जो बढ़ती आय के समानुपातिक माना जा सकता है। 29.3 फीसद ग्रामीण परिवारों ने पिछले एक साल में पूंजीगत निवेश (खेती और गैर-खेती दोनों क्षेत्रों में) बढ़ाया है। केवल औपचारिक स्त्रोतों (बैंक, सहकारी संस्थाएं आदि) से कर्ज लेने वाले परिवारों का हिस्सा 58.3 फीसद हो गया, जो सितंबर 2024 के 48.7 फीसद था।

    ग्रामीण परिवारों की महंगाई धारणा घटकर 3.77 फीसद रह गई है यानी ये लोग समझ रहे हैं कि महंगाई कम हो रही है। सर्वे शुरू होने के बाद पहली बार यह स्तर चार फीसद से नीचे गई है। 84.2 फीसद परिवारों को लगता है कि महंगाई पांच फीसद या उससे कम है और लगभग 90 फीसद को उम्मीद है कि निकट भविष्य में भी यह 5 फीसद से नीचे रहेगी।

    औसतन ग्रामीण परिवार की मासिक आय का 10 फीसद हिस्सा सब्सिडी वाले खाद्य, बिजली, पानी, रसोई गैस, उर्वरक, पेंशन, शिक्षा सहायता आदि के सरकारी हस्तांतरण से आ रहा है। कई परिवारों में यह हिस्सा 20 फीसदी से भी ज्यादा है। इसने भी मांग को स्थिर बनाये रखने में मदद की है।

    नाबार्ड अध्यक्ष शाजी के.वी. ने कहा है कि, “यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि ग्रामीण भारत में मांग का पुनरुत्थान न तो मौसमी है और न ही किसी खास वर्ग तक सीमित। यह वास्तविक आय वृद्धि, कम महंगाई और मजबूत सरकारी समर्थन का संयुक्त परिणाम है।'' मांग की यह तस्वीर आने वाले दिनों में एफएमसीजी, दोपहिया वाहनों, ट्रैक्टर, मोबाइल फोन, आवासीय निर्माण में जरूरी वस्तुओं आदि की मांग में तेजी का संकेतक है।

    2025 में ग्रामीण-शहरी भारत का नया क्रेडिट ट्रेंड

    वर्ष 2025 में देश के क्रेडिट बाजार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। अब लोग सिफऱ् स्मार्टफोन या फ्रिज खरीदने के लिए ही नहीं, बल्कि अपना बिजनेस शुरू करने या उसका विस्तार देने के लिए भी आत्मविश्वास के साथ कर्ज ले रहे हैं। नवीनतम क्रेडिट बिहेवियर स्टडी में यह साफ दिख रहा है। उपभोक्ता वित्त कंपनी होम क्रेडिट इंडिया की तरफ से गुरुवार को जारी वार्षिक अध्ययन रिपोर्ट “हाउ इंडिया बारोज'' के सातवें संस्करण में इस बारे में तथ्य हैं।

    इसके मुताबिक सबसे ज्यादा 46 फीसद लोगों ने स्मार्टफोन या घरेलू उपकरमों की खरीद के लिए कर्ज लिया है। पिछले वर्ष 48 फीसद लोगों ने ऐसा किया था। जबकि कारोबार विस्तार के लिए 25 फीसद लोगों ने कर्ज लिया है जो पिछले साल के 21 फीसद से चार फीसद ज्यादा है।

    घर बनाने या उसमें मरम्मत करने वालों का हिस्सा 15 से घट कर 12 फीसद हो गया है। जबकि वाहन खरीदने वालों की हिस्सेदारी छह फीसद से घट कर चार फीसद हो गई है। साथ ही शादी समारोह के लिए कर्ज लेने वालों का हिस्सा पिछले एक वर्ष में पांच फीसद से घट कर दो फीसद पर आ गया है।