'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द बारूदी सुरंगे', RSS से जुड़ी मैग्जीन में की गई इन्हें हटाने की मांग
आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में छपे लेख के अनुसार आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़े गए समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द वैचारिक बारूदी सुरंगें हैं। लेख में कहा गया है कि इन शब्दों का मकसद धार्मिक मूल्यों को खत्म करना और राजनीतिक तुष्टिकरण को बढ़ावा देना था। अब इन्हें हटाकर मूल संविधान को वापस लाने का समय आ गया है।

पीटीआई, नई दिल्ली। आरएसएस से संबद्ध साप्ताहिक पत्रिका 'ऑर्गनाइजर' में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द ''वैचारिक बारूदी सुरंगें'' हैं, जिनका उद्देश्य ''धार्मिक मूल्यों'' को नष्ट करना और ''राजनीतिक तुष्टिकरण'' करना है।
लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि अब इन्हें हटाने और मूल संविधान को पुन: प्राप्त करने का समय आ गया है। यह टिप्पणी आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले की ओर से इस बात पर राष्ट्रीय बहस का आह्वान करने के कुछ दिनों बाद आई है कि क्या प्रस्तावना में ये दो शब्द बने रहने चाहिए।
'हुई संवैधानिक धोखाधड़ी'
उन्होंने कहा कि ये दोनों शब्द कभी भी मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। शनिवार को ऑर्गनाइजर की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में प्रस्तावना में इन दो शब्दों को शामिल करने को ''संवैधानिक धोखाधड़ी का कार्य'' करार दिया गया और कहा गया कि इन्हें सिर्फ शाब्दिक सौंदर्य के लिए समायोजित नहीं किया गया था, बल्कि यह ''एक विचारधारा को थोपना'' भी था जो भारत की सभ्यतागत पहचान और संवैधानिक लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत हैं।
'संविधान सभा ने नहीं दी मंजूरी'
लेख में कहा गया है, ''स्पष्ट कर दें कि किसी भी संविधान सभा ने इन शब्दों को कभी मंजूरी नहीं दी। 42वां संशोधन आपातकाल के दौरान पारित किया गया था, जब संसद दबाव में काम कर रही थी, विपक्षी नेता जेल में थे और मीडिया पर प्रतिबंध लगा हुआ था।'' लेख में आगे कहा गया है कि यह ''संवैधानिक धोखाधड़ी'' का कृत्य था, जो किसी के बेहोश होने पर उसकी वसीयत बनाने जैसा था।
डा. निरंजन बी. पूजार ने 'प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्षता का पुनरावलोकन: भारत की संवैधानिक अखंडता को पुन: प्राप्त करना' शीर्षक से लिखे गए अपने लेख में कहा, ''भारत को मूल प्रस्तावना पर वापस लौटना होगा, जैसा कि संविधान के निर्माताओं ने कल्पना की थी.. आइए, हम आपातकाल के संवैधानिक पाप को समाप्त करें और भारत के लोगों के लिए प्रस्तावना को पुन: प्राप्त करें।''
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