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    मुआवजे के लिए RPF कर्मियों को कामगार माना जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    By AgencyEdited By: Shashank Mishra
    Updated: Sat, 30 Sep 2023 01:53 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे सुरक्षा बल (RPF) कर्मियों को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923 के तहत कामगार माना जा सकता है और वे ड्यूटी के दौरान लगी चोट के लिए मुआवजे का दावा कर सकते हैं भले ही यह (आरपीएफ) केंद्र सरकार का एक सशस्त्र बल है। बता दें जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने RPSF की ओर से दायर अपील खारिज कर दी।

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    सुप्रीम कोर्ट ने आरपीएसएफ द्वारा दायर अपील खारिज कर दी।

    नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे सुरक्षा बल (RPF) कर्मियों को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत कामगार माना जा सकता है। वे ड्यूटी के दौरान लगी चोट के लिए मुआवजे का दावा कर सकते हैं, भले ही आरपीएफ केंद्र सरकार का एक सशस्त्र बल है।

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    गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को दी गई थी चुनौती

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने रेलवे सुरक्षा विशेष बल (RPSF) के एक कमांडिंग अधिकारी की ओर से दायर अपील खारिज कर दी, जिसमें गुजरात हाई कोर्ट के 2016 के आदेश को चुनौती दी गई थी।

    हाई कोर्ट ने ड्यूटी के दौरान शहीद हुए कांस्टेबल के परिजनों को कर्मचारी मुआवजा आयुक्त की ओर से जारी मुआवजा आदेश बरकरार रखा था। पीठ की ओर से जस्टिस मिश्रा ने फैसला लिखा। पीठ ने विचार के लिए दो प्रश्न तैयार किए जिसमें यह भी शामिल था कि क्या एक आरपीएफ कांस्टेबल को 1923 के कानून के तहत एक कामगार माना जा सकता है, भले ही वह रेलवे सुरक्षा बल अधिनियम 1957 के आधार पर केंद्र के सशस्त्र बलों का सदस्य था।

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    पीठ ने विभिन्न प्रविधानों और अधिनियमों पर गौर करने के बाद कहा कि हमारे विचार में आरपीएफ को केंद्र के सशस्त्र बल के रूप में घोषित करने के बावजूद इसके सदस्यों या उनके उत्तराधिकारियों को 1923 के अधिनियम या रेलवे अधिनियम, 1989 के तहत देय मुआवजे के लाभ से बाहर करने का विधायी इरादा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने आरपीएफ की इस दलील को खारिज कर दिया कि मृत कांस्टेबल के उत्तराधिकारियों का मुआवजा दावा स्वीकार करने योग्य नहीं है।

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