अब नदियों की सेहत से तय होगी शहरों की रैंकिंग, जल शुद्धि बिना टॉप रैंक मुश्किल
स्वच्छ सर्वेक्षण 2025-26 की नई गाइडलाइन के अनुसार, शहरों की स्वच्छता रैंकिंग में नदियों की सेहत का ध्यान रखा जाएगा। 12,500 अंकों की इस परीक्षा में, नर ...और पढ़ें

नदियों का स्वच्छता तय करेगी शहरों की रैंकिंग।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। स्वच्छ सर्वेक्षण 2025-26 की नई गाइडलाइन ने साफ कर दिया है कि अब शहरों की स्वच्छता रैंकिंग सिर्फ झाड़ लगाने या कचरा उठाने तक सीमित नहीं रहेगी। 12,500 अंकों की इस राष्ट्रीय परीक्षा में इस बार रिवर टाउंस के लिए कड़े मानक तय किए गए हैं।
नर्मदा, शिप्रा, गंगा सहित प्रमुख नदियों के तट पर बसे शहरों को विशेष कसौटी पर परखा जाएगा। नदी घाटों, आसपास के क्षेत्रों और जल गुणवत्ता को स्वच्छता आकलन के केंद्र में रखा गया है। ऐसे में मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर बसी धार्मिक-पर्यटन नगरी उज्जैन और नर्मदा किनारे स्थित ओंकारेश्वर के लिए यह सर्वे अपनी स्वच्छता साख की सबसे बड़ी परीक्षा बन गया है।
शिप्रा नदी की अलग पहचान
उज्जैन में शिप्रा केवल नदी नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और पहचान का आधार है। सिंहस्थ महाकुंभ जैसी विश्वस्तरीय परंपरा इसी नदी से जुड़ी है। नई गाइडलाइन में रिवर टाउन अवधारणा को विस्तार मिलने के बाद शिप्रा सीधे स्वच्छ सर्वेक्षण के आकलन के केंद्र में आ गई है।
उज्जैन को मिली जगह
उज्जैन देश के चुनिंदा टॉप-छह मझोले शहरों (तीन से 10 लाख आबादी) में शामिल है, जिन्हें लगातार बेहतर प्रदर्शन के आधार पर 'सुपर स्वच्छता लीग' में स्थान मिला है। यहां शिप्रा की स्वच्छता में कान्ह नदी बड़ी चुनौती है। प्रदूषित कान्ह नदी का पानी शिप्रा में मिलता है। इसके साथ ही यहां भूमिगत सीवरेज प्रोजेक्ट का अपेक्षित गति से पूरा न होना प्रयुक्त जल प्रबंधन पर सवाल खड़े कर रहा है।
अब शिप्रा घाटों, मंदिर क्षेत्र और प्रमुख मार्गों पर आमजन का अनुभव ही उज्जैन की रैंकिंग तय करेगा। राज्य स्तर पर अब उज्जैन की स्वच्छता साख सीधे शिप्रा की जल गुणवत्ता से जुड़ गई है।
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